सचेतन 2.2: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – हे रघुनाथ जी आप सबके अंतरात्मा हैं

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सचेतन 2.2: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – हे रघुनाथ जी आप सबके अंतरात्मा हैं

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मनोवैज्ञानिक रूप में सुन्दरकाण्ड मानवीय जीवन में आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति बढ़ाने वाला है।

रामान्य त्रेतायुग की कथा है और सुंदरकांड लंका में त्रिकूटांचल पर्वत शृंखला में एस एक के सुंदर पर्वत के क्षेत्र की कथा है इस पर्वत में दो अन्य शृंखला हैं सुबैल पर्वत क्षेत्र जहां पर भगवान राम और राक्षस राज रावण का युद्ध स्थल है और नील पर्वत क्षेत्र पर राक्षसों का निवास एवं महल। सुंदर पर्वत के क्षेत्र पर राक्षस राज रावण की प्रिय अशोक वाटिका थी जहां माता सीता रहती थी । सुन्दरकाण्ड का अध्ययन या पाठ करने से सर्वार्थसिद्धि की प्राप्ति होती है । 

पवननंदन व अंजली पुत्र रामभक्त हनुमान द्वारा माता सीता की खोज में त्रिकुटांचल पर्वत पर बसी लंका में परिभ्रमण किया गया था। त्रिकूटपर्वत समूह की सुंदर पर्वत क्षेत्र में स्थित अशोक वाटिका में हनुमान जी और माता सीता से मुलाकात हुई थी।

अशोकवाटिका में माता सीता द्वारा हनुमान जी को अष्ट सिद्धि एवं नाव निधि का वरदान दी गयी थी। रामायण और श्रीरामचरितमानस में भगवान श्रीराम के गुणों और पुरूषार्थ को दर्शाती लेकिन सुंदरकांड श्रीराम के भक्त हनुमान की विजय का कांड है ! 

मनोवैज्ञानिक रूप में सुन्दरकाण्डम व सुन्दरकाण्ड मानवीय जीवन में आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति बढ़ाने वाला है। सुंदरकांड के अध्ययन एवं पाठ से व्यक्ति को मानसिक शक्ति प्राप्ति एवं कार्य को पूर्ण करनें के लिए आत्मविश्वास मिलता है ! हनुमानजी की उपासना से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
हनुमानजी समुद्र को लांघ कर लंका पहुंच गए | सुंदर पर्वत की अशोकवाटिका में रह रही माता सीता की खोज की, लंका को जलाया, सीता का संदेश लेकर भगवान श्रीराम के पास लौट आए थे। भक्त की जीत का सुंदरकाण्ड है। हनुमान जी अपनी इच्छाशक्ति के बल पर इतना बड़ा चमत्कार कर सकते है यही सर्वार्थसिद्धि की प्राप्ति का उदाहरण है।

शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशांतिप्रदं

ब्रह्मशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम

रामाख्यं जगदीश्वरं सरगुरुं माया मनुष्यं हरिं

वंदे$हं करुणाकरं रघुवरं भूपाल चूणामणिम ।।१।।

भावार्थ– शांत, सनातन, अप्रमेय (प्रमाणों से परे), निष्पाप, मोक्षरूप परम् शांति देने वाले, ब्रह्मा, शम्भु और शेषजी से निरन्तर सेवित, वेदान्त के द्वारा जानने योग्य, सर्वव्यापक, देवताओं में सबसे बड़े, माया से मनुष्य रूप में दीखने वाले, समस्त पापों को हरने वाले, करुणा की खान, रघुकुल में श्रेष्ठ तथा राजाओं के शिरोमणि , राम कहलाने वाले जगदीश्वर की मैं वंदना करता हूँ ।।१।।

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