सचेतन 3.09 : नाद योग: ॐ की चार मात्राएँ और बारह कलाएँ

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नमस्कार श्रोताओं, और स्वागत है इस हमारे विशेष नाद योग (योग विद्या) पर सचेतन के इस विचार के सत्र  में “असंख्य नाद” के एक और रोचक विचार के सत्र में। 

कलाएँ हमारे जीवन और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं। वे केवल रचनात्मकता और सौंदर्य का ही नहीं, बल्कि मानव चेतना और समाज के विभिन्न पहलुओं को भी दर्शाती हैं। आइए, विस्तार से समझते हैं कि कलाएँ क्या होती हैं और उनका महत्व क्या है।

नाद योग, जिसे ध्वनि योग भी कहा जाता है, योग का एक प्राचीन और महत्वपूर्ण अंग है। नाद का मतलब होता है ध्वनि या कंपन, और योग का मतलब होता है जुड़ना। इस प्रकार, नाद योग का अर्थ है ध्वनि या संगीत के माध्यम से आत्मा और परमात्मा के साथ जुड़ना। यह योग की एक ऐसी पद्धति है जिसमें ध्वनि के माध्यम से ध्यान और आत्मसाक्षात्कार की प्रक्रिया होती है।

आज का हमारा विषय है ॐ की चार मात्राएँ और उनसे संबंधित बारह कलाएँ। यह विषय गहन और पवित्र है, और आज हम इस पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

पहली मात्रा ‘अ’: इसका संबंध अग्नि के देवता से है, जिन्हें अध्यक्ष देवता भी कहा जाता है। अग्नि हमें प्रकाश और ऊर्जा प्रदान करती है, और ‘अ’ इसी ऊर्जा का प्रतीक है। इस मात्रा में तीन कला (भाग) होते हैं।

दूसरी मात्रा ‘ऊ’: यह वायु के देवता का प्रतिनिधित्व करती है। वायु जीवनदायिनी है और ‘ऊ’ इस जीवनदायिनी वायु का प्रतीक है। यह मात्रा भी तीन कलाओं में विभाजित होती है।

तीसरी मात्रा ‘म’: यह सूर्य के तेज की तरह चमकती है। सूर्य हमारी चेतना का प्रतीक है और ‘म’ इस चेतना का प्रतीक है। इसमें भी तीन कला होती हैं।

अर्ध-मात्रा: अर्ध-मात्रा को बुद्धिमान लोग वरुण (जल के अधिष्ठाता देवता) के रूप में जानते हैं। जल जीवन का स्रोत है और अर्ध-मात्रा इस जीवन स्रोत का प्रतीक है।

इन चार मात्राओं के साथ ही बारह कलाओं की अवधारणा आती है।

ॐ की पहली मात्रा ‘अ’:

  1. अकार का संबंध अग्नि के देवता से है:
    • अग्नि को अध्यक्ष देवता भी कहा जाता है।
    • अग्नि हमें प्रकाश और ऊर्जा प्रदान करती है, और ‘अ’ इसी ऊर्जा का प्रतीक है।
    • अकार में तीन कलाएँ होती हैं:
      1. घोषिनी (Ghoshini): यह ध्वनि या नाद की अनुभूति कराती है।
      2. विद्युत माली (Vidyut Mali): यह चेतना को ऊर्जावान बनाती है।
      3. पतंगिनी (Patangini): यह स्वतंत्रता और उड़ान का अनुभव कराती है।

ॐ की दूसरी मात्रा ‘ऊ’:

  1. ऊकार का संबंध वायु के देवता से है:
    • वायु जीवनदायिनी है और ‘ऊ’ इस जीवनदायिनी वायु का प्रतीक है।
    • ऊकार में भी तीन कलाएँ होती हैं:
      1. वायुवेगिनी (Vayuvegini): यह प्राण (श्वास) को नियंत्रित करती है।
      2. नामधेय (Namadheya): यह आत्मा की पहचान को प्रकट करती है।
      3. ऐंद्री (Aindri): यह शक्ति और साहस प्रदान करती है।

ॐ की तीसरी मात्रा ‘म’:

  1. मकार का संबंध सूर्य से है:
    • सूर्य हमारी चेतना का प्रतीक है और ‘म’ इस चेतना का प्रतीक है।
    • मकार में तीन कलाएँ होती हैं:
      1. वैष्णवी (Vaishnavi): यह संरक्षित और सुरक्षित रखती है।
      2. शंकरी (Shankari): यह शांति और स्थिरता लाती है।
      3. महती (Mahati): यह महानता और उदात्तता का अनुभव कराती है।

अर्ध-मात्रा:

  1. अर्ध-मात्रा का संबंध वरुण (जल के अधिष्ठाता देवता) से है:
    • जल जीवन का स्रोत है और अर्ध-मात्रा इस जीवन स्रोत का प्रतीक है।
    • अर्ध-मात्रा में भी तीन कलाएँ होती हैं:
      1. धृति (Dhriti) या ध्रुव (Dhruva): यह धैर्य और स्थिरता प्रदान करती है।
      2. नारी (Naari) या मौनी (Mauni): यह शांति और मौन को प्रकट करती है।
      3. ब्राह्मी (Brahmi): यह ब्रह्म की शक्ति को प्रकट करती है और आत्म-साक्षात्कार की दिशा में अग्रसर करती है।

इन चार मात्राओं के साथ बारह कलाओं की अवधारणा:

ॐ की प्रत्येक मात्रा में तीन-तीन कलाएँ होती हैं, जो मिलकर बारह कलाओं की अवधारणा को पूर्ण बनाती हैं। यह बारह कलाएँ हमारे आध्यात्मिक विकास और आत्म-साक्षात्कार की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इन कलाओं के अभ्यास से हम अपने जीवन को शुद्ध और पवित्र बना सकते हैं।

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