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सचेतन 163 : श्री शिव पुराण- उमा संहिता- तप की बड़ी भारी महिमा

दूसरों की भलाई के लिये अपने सूखों की परवाह न करना यही तप है। श्री शिव पुराण के उमा संहिता में तप की बड़ी भारी महिमा बताते हुए सनत्कुमारजीने कहा-मुने!  तप की महिमा अपार है। तपस्या या तप का मूल अर्थ था प्रकाश अथवा प्रज्वलन जो सूर्य या अग्नि में स्पष्ट होता है।आजकल धीरे-धीरे उसका […]

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सचेतन 162 : श्री शिव पुराण- उमा संहिता- सत्य यानि सभी का कल्याण।

प्रत्येक निर्णय सत्य होने का दावा करता है। सत्य इस संसार में बड़ी शक्ति और दृढ़ता है। सत्य के बारे में व्यवहारिक बात यह है कि सत्य परेशान हो सकता है किन्तु पराजित नहीं।भारत में कई सत्यवादी विभूतियाँ हुईं जिनकी दुहाई आज भी दी जाती हैं जैसे राजा हरिश्चन्द्र, सत्यवीर तेजाजी महाराज आदि। इन्होने अपने […]

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सत्य की महिमा

कल्याण की भावना को हृदय में बसाकर ही व्यक्ति सत्य बोल सकता है सत्य ही परब्रह्म है, सत्य ही परम तप है, सत्य ही श्रेष्ठ यज्ञ है और सत्य ही उत्कृष्ट शास्त्रज्ञान है। सोये हुए पुरुषों में सत्य ही जागता है, सत्य ही परमपद है, सत्य से ही पृथ्वी टिकी हुई है और सत्य में […]

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सचेतन 160 : श्री शिव पुराण- उमा संहिता- सत्य भाषण की महिमा

कल्याण की भावना को हृदय में बसाकर ही व्यक्ति सत्य बोल सकता है जलदान, जलाशय-निर्माण और वृक्षारोपण की महिमा के बारे में सुना। जलदान आनन्द की प्राप्ति के लिए करना चाहिए और वृक्ष लगाने वाले को संतान प्राप्ति का सुख मिलता है। सत्य ही परब्रह्म है, सत्य ही परम तप है, सत्य ही श्रेष्ठ यज्ञ है […]

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सचेतन 159 : श्री शिव पुराण- उमा संहिता- जलदान, जलाशय-निर्माण और वृक्षारोपण की महिमा

जलदान आनन्द की प्राप्ति के लिए करना चाहिए और वृक्ष लगाने वाले को पुत्र प्राप्ति का सुख मिलता है  सनत्कुमार जी कहते हैं-व्यास जी! जलदान सबसे श्रेष्ठ है। वह सब दानों में सदा उत्तम है; क्योंकि जल सभी जीव समुदाय को तृप्त करने वाला जीवन कहा गया है।इसलिये बड़े स्नेह के साथ अनिवार्य रूप से […]

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सचेतन 157-158 : योग सूत्र

यम, नियम, आसान, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि     योग सूत्र, योग दर्शन का मूल ग्रंथ है। यह छः दर्शनों में से एक शास्त्र है और योग शास्त्र का एक ग्रंथ है। योग सूत्रों की रचना 3000 साल के पहले पतंजलि ने की। योगसूत्र में चित्त को एकाग्र करके ईश्वर में लीन करने का विधान है। […]

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सचेतन 156 : श्री शिव पुराण- उमा संहिता- महादेवी पार्वती जी का भगवान शिव के द्वारा वरण करना 

अशोक वृक्ष की पत्तियों का उपयोग पूजा के लिए या बंधनहार के रूप में क्यों किया जाता है? कश्यप ऋषि के कहने पर गिरिराज हिमालय ने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की।  तपस्या से प्रसन्न हो कर ब्रह्मा जी ने गिरिराज हिमालय को दर्शन दे कर उनसे वर माँगने को कहा। गिरिराज हिमालय ने सब […]

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सचेतन 155 : श्री शिव पुराण- उमा संहिता- पार्वती जी के सहस्र नाम उनके गुण और ऊर्जा को सूचित करता है

ब्रह्मा जी के वरदान से गिरिराज की पत्नी मैना ने एक कन्या उत्पन्न की जिसका नाम अपर्णा रखा गया। पार्वती, उमा या गौरी मातृत्व, शक्ति, प्रेम, सौंदर्य, सद्भाव, विवाह, संतान की देवी हैं।देवी पार्वती कई अन्य नामों से जानी जाती है, वह सर्वोच्च देवी परमेश्वरी आदि पराशक्ति (शिवशक्ति) की साकार रूप है और शाक्त सम्प्रदाय […]

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सचेतन 154 : श्री शिव पुराण- उमा संहिता – कठिनाइयों से स्वयं ही लड़ कर नया निर्माण करना पड़ेगा।

एकाग्रता के अभ्यास द्वारा वह सम्भावनायें अब भी जागृत की जा सकती हैं। किसी समय भारतवर्ष ने मन की शक्तियों का सम्पादन करके अनेकों आश्चर्यजनक शक्तियाँ और सिद्धियां प्राप्त की थीं। एकाग्रता के अभ्यास द्वारा वह सम्भावना अब भी जागृत की जा सकती हैं। इसके लिये अपने आपको गति देने की आवश्यकता है। जी-तोड़ परिश्रम […]

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सचेतन 153 : श्री शिव पुराण- ‘मनोयोग’ से मन की शक्ति को श्रेष्ठ बना सकते हैं

आत्म संयम करें, इससे बिखरा हुआ मानसिक संस्थान जागेगा। यह ठीक है कि आज अपनी दशा अच्छी नहीं, कोई विशेष गुण भी दिखाई नहीं देता फिर भी निराशा का कोई कारण नहीं। एक शक्ति अभी भी अपने पास है और वह अन्त तक पास रहेगी। वह है मन। मन की शक्ति को सम्पादन करने का […]