सचेतन :66 श्री शिव पुराण- स्वर और व्यंजन की ध्वनि मात्र से महादेव व भगवती उमा के दर्शन।
सचेतन :66 श्री शिव पुराण- स्वर और व्यंजन की ध्वनि मात्र से महादेव व भगवती उमा के दर्शन।
#RudraSamhita
माना जाता है कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड से सदा ॐ की ध्वनी निसृत होती रहती है. हमारी और आपके हर श्वास से ॐ की ही ध्वनि निकलती है. यही हमारे-आपके श्वास की गति को नियंत्रित करता है. ‘ॐ’ नाद का साक्षात दर्शन एवं अनुभव चिंता रहित रुद्र के समान है। भगवान शिव को रूद्र नाम से जाता है रुद्र का अर्थ है रुत दूर करने वाला अर्थात दुखों को हरने वाला अतः भगवान शिव का स्वरूप कल्याण कारक है।
ब्रह्माजी ने महर्षि नारद जी को बताया की इसका ज्ञान एक ऋषि प्रकट होने से हुआ। ऋषि अर्थात “दृष्टा” भारतीय परंपरा में श्रुति ग्रंथों को दर्शन करने (यानि यथावत समझ पाने) वाले जनों को कहा जाता है। श्रुति का शाब्दिक अर्थ है सुना हुआ, यानि ईश्वर की वाणी जो प्राचीन काल में ऋषियों द्वारा सुनी गई थी और शिष्यों के द्वारा सुनकर जगत में फैलाई गई थी।
जब आपके आंतरिक शरीर में ऋषि जैसे विशिष्ट व्यक्ति के समान अपकी विलक्षण एकाग्रता हो जाएगा तो उसके बल पर गहन ध्यान में आप विलक्षण शब्दों के दर्शन करके उनके गूढ़ अर्थों को जान सकेंगे। आप स्वयं और मानव अथवा प्राणी के कल्याण के लिये ध्यान में देखे गए शब्दों को लिखकर प्रकट कर पायेंगे। जिसे हम सभी विनियोग यानी किसी फल के उद्देश्य से या किसी विषय के प्रयोग हेतु किसी वैदिक कृत्य के लिए इस मंत्र का प्रयोग कर सकते हैं।
इसकी सिद्धि यजुर्वेद में भी होती है। देवेश्वर शिव को जानकर विष्णुजी ने शक्ति संभूत मंत्रों द्वारा उत्तम एवं महान अभ्युदय से शोभित भगवान शिव की स्तुति करनी शुरू कर दी। ब्रह्माजी कहते हैं की ही नारद! इसी समय मैंने और विश्वपालक भगवान विष्णु ने एक अद्भुत व सुंदर रूप देखा। जिसके पांच मुख, दस भुजा, कपूर के समान गौरवर्ण, परम कांतिमय, अनेक आभूषणों से विभूषित, महान उदार, महावीर्यवान और महापुरुषों के लक्षणों से युक्त था और जिसके दर्शन पाकर मैं और विष्णुजी धन्य हो गए। तब परमेश्वर महादेव भगवान प्रसन्न होकर अपने दिव्यमय रूप में स्थित हो गए।
‘अकार’ उनका मस्तक और आकार ललाट है। इकार दाहिना और ईकार बायां नेत्र है। उकार दाहिना और ऊकार बायां कान है। ऋकार दायां और ऋकार बायां गाल है। ऌ, र्लिं उनकी नाक के छिद्र हैं। एकार और ऐकार उनके दोनों होंठ हैं। ओकार और औकार उनकी दोनों दंत पक्तियां हैं। अं और अः देवाधिदेव शिव के तालु हैं। ‘क’ आदि पांच अक्षर उनके दाहिने पांच हाथ हैं और ‘च’ आदि बाएं पांच हाथ हैं। ‘त’ और ‘ट’ से शुरू पांच अक्षर उनके पैर हैं। पकार पेट है, फकार दाहिना और बकार बायां पार्श्व भाग है। भकार कंधा, मकार हृदय है। हकार नाभि है। ‘य’ से ‘स’ तक के सात अक्षर सात धातुएं हैं जिनसे भगवान शिव का शरीर बना है।
ब्रह्माजी ने महर्षि नारद जी से कहा की इस प्रकार भगवान महादेव व भगवती उमा के दर्शन कर हम दोनों कृतार्थ हो गए। हमने उनके चरणों में प्रणाम किया तब हमें पांच कलाओं से युक्त ॐकार जनित मंत्र का साक्षात्कार हुआ।