सचेतन 2.96 : रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – हनुमान जी ने ब्रह्मास्त्र के बन्धन का सम्मान किया

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“धर्म युद्ध की गाथा: हनुमानजी का पराक्रम”

नमस्कार श्रोताओं! स्वागत है आपका “धर्मयुद्ध के बारे में सचेतन के इस विचार के सत्र में। मेघनाद ने विचार किया कि हनुमान जी को किसी तरह कैद करना चाहिए। उसने अपने धनुष पर ब्रह्माजी के दिए हुए अस्त्र का संधान किया और हनुमान जी को बाँध लिया। ब्रह्मास्त्र से बँध जाने पर हनुमान जी निश्चेष्ट होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। उन्हें ब्रह्मास्त्र से कोई पीड़ा नहीं हुई क्योंकि वे ब्रह्मा के वरदान से संरक्षित थे।

हनुमान अब सोचते हैं की – “ब्रह्मा के वरदान से मैं सुरक्षित हूँ। मुझे इस बन्धन का सम्मान करना चाहिए।”

ब्रह्म अस्त्र तेहिं साँधा कपि मन कीन्ह बिचार ।

जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार। 

अंत मे  मेघनाद ब्रह्मास्त्र का संधान ( प्रयोग ) किया , तब हनुमान् जी ने मन मे विचार किया कि यदि ब्रह्मास्त्र को नही मानता हूँ तो उसकी अपार महिमा मिट जाएगी ।।  ब्रह्मबान कपि कहुँ तेहि मारा। परतिहुँ बार कटकु संघारा।।

तेहि देखा कपि मुरुछित भयऊ। नागपास बाँधेसि लै गयऊ ।। 

जासु नाम जपि सुनहु भवानी। भव बंधन काटहिं नर ग्यानी।।

तासु दूत कि बंध तरु आवा। प्रभु कारज लगि कपिहिं बँधावा ।। 

 मेघनाद ने हनुमान् जी को ब्रह्मबाण मारा, ( जिसके लगते ही वे वृक्ष से नीचे गिर पड़े ) परंतु गिरते समय भी उन्होने बहुत सी सेना मार डाली । जब उसने देखा कि हनुमान् जी मूर्छित हो गए है, तब वह उनको नागपाश से बाँधकर ले गय़ा ।।

( शिवाजी कहते है – ) हे भवानी सुनो, जिनका नाम जपकर ज्ञानी ( विवेकी ) मनुष्य संसार ( जन्म-मरण ) के बंधन को काट डालते है, उनका दूत कहीं बंधन मे आ सकता है ? किन्तु प्रभु के कार्य के लिए हनुमान् जी ने स्वयं अपने को बँधा लिया ।

हनुमान जी ने ब्रह्मास्त्र के बन्धन का सम्मान करते हुए उसी में बँधे रहने का निश्चय किया। उनके मन में आया कि ब्रह्मा, इन्द्र और वायुदेवता तीनों उनकी रक्षा कर रहे हैं।

यह कहानी महात्मा हनुमान जी की वीरता और साहस की अद्भुत गाथा है। 

हनुमान अब सोचने लगे -की राक्षसों द्वारा पकड़े जाने में भी मुझे महान लाभ ही दिखता है, क्योंकि इससे मुझे राक्षसराज रावण के साथ बातचीत करने का अवसर मिलेगा। यह सोचकर हनुमान जी निश्चेष्ट हो गए। फिर राक्षस निकट आकर उन्हें पकड़ने और डांटने लगे। हनुमान जी चीखते और कटकटाते हुए, मानो कष्ट पा रहे हों, राक्षसों द्वारा पकड़े जाने लगे।

हनुमान जी के मन में सिर्फ़ ये विचार था की अब मुझे रावण से मिलने का मौका मिलेगा। चारों ओर राक्षसों की चिल्लाहट और हनुमान जी की चीखों की आवाजें सुनाई दे रही थी।  राक्षसों ने देखा कि अब हनुमान जी हाथ-पैर नहीं हिला रहे, तो उन्होंने उन्हें सुतरी और वृक्षों के वल्कल से बांधना शुरू किया। हनुमान जी का तिरस्कार करते हुए, राक्षस उन्हें खींचते और मारते हुए रावण के पास ले गए।

राक्षसों ने अपनी बड़प्पन में बोला “इसे पकड़कर ले चलो! इसे सबक सिखाना होगा।”

वल्कल के रस्से से बंधने पर हनुमान जी ब्रह्मास्त्र के बंधन से मुक्त हो गए। वीर इन्द्रजित ने जब देखा कि हनुमान जी सिर्फ वल्कल से बंधे हैं, तो उसे बड़ी चिंता हुई। वह सोचने लगा कि अब इस वानर को कैसे रोका जाए।

इन्द्रजित सोचते हैं की – “ओह! इन राक्षसों ने मेरा किया हुआ बड़ा काम चौपट कर दिया। हनुमान जी ने बंधन में रहते हुए भी ऐसा बर्ताव किया, मानो वे इस बात को जानते ही न हों। राक्षस उन्हें पीड़ा देते हुए, खींचकर रावण के पास ले गए। इन्द्रजित ने हनुमान जी को रावण के सामने प्रस्तुत किया।

राक्षस पूछते हैं की – “यह कौन है? किसका पुत्र है? यहाँ क्यों आया है?”

हनुमान जी ने रावण के पास पहुँचते ही उसके चरणों के समीप बहुत-से बड़े-बूढ़े सेवकों को और बहुमूल्य रत्नों से विभूषित सभा भवन को देखा। महातेजस्वी रावण ने विकट आकार वाले राक्षसों द्वारा खींचे जा रहे हनुमान जी को देखा।

रावण ने पूछा – “बताओ, तुम कौन हो? यहाँ क्यों आए हो?”

हनुमान जी ने भी रावण को तपते हुए सूर्य के समान तेज और बल से सम्पन्न देखा। हनुमान जी को देखकर रावण की आँखें रोष से लाल हो गईं। उसने अपने मंत्रियों को आदेश दिया कि हनुमान जी से उनका परिचय पूछें।

हनुमान ने कहा की – “मैं वानरराज सुग्रीव के पास से उनका दूत होकर आया हूँ।”

रावण ने पुनः कहा – “कौन है यह वानर, जिसने मेरी सेना को तहस-नहस कर दिया? इसे लाओ, मैं इसका न्याय करूंगा।”

अब रावण के पूरे दरबार में हलचल मच  चुकी थी – हनुमान जी ने धैर्यपूर्वक रावण के समक्ष खड़े होकर अपनी शक्ति और पराक्रम का परिचय दिया। उन्होंने कहा:

“रावण! मैं श्रीराम का दूत हूँ और तुम्हारे अनाचार का अंत करने आया हूँ। तुम्हारे हर अत्याचार का न्याय होगा।”

इस प्रकार, हनुमान जी ने अपने साहस और धैर्य से रावण और उसकी सभा को चुनौती दी। उनकी वीरता और श्रीराम के प्रति उनकी निष्ठा ने राक्षसों के दरबार में हड़कंप मचा दिया।

श्रोताओं, यह थी हनुमान जी और इन्द्रजित के युद्ध की कहानी। हमें उम्मीद है कि आपको यह कथा पसंद आई होगी। अगले एपिसोड में हम एक और रोमांचक गाथा लेकर आएंगे। तब तक के लिए, नमस्कार!

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