सचेतन 3.39 : नाद योग: मोक्ष के लिए आंतरिक शांति और आनंद
सचेतन 3.39 : नाद योग: मोक्ष के लिए आंतरिक शांति और आनंद
आत्मा की अंतिम मुक्ति की यात्रा: राजा जनक और ऋषि याज्ञवल्क्य की कथा
नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आपके पसंदीदा पॉडकास्ट “सचेतन” कार्यक्रम में। आज हम चर्चा करेंगे एक अत्यंत गहरे और आध्यात्मिक विषय पर—मोक्ष के लिए आंतरिक शांति और आनंद। यह विषय हमें आत्मा की मुक्ति की दिशा में मार्गदर्शन करता है, जहाँ हम संसार के बंधनों से मुक्त होकर शाश्वत शांति और आनंद का अनुभव करते हैं। आइए, इस यात्रा के महत्व को समझते हैं।
मोक्ष का अर्थ
“मोक्ष” का शाब्दिक अर्थ है—मुक्ति, यानी आत्मा का संसार के जन्म-मरण के चक्र और बंधनों से पूर्ण रूप से मुक्त हो जाना। यह वह अवस्था है, जहाँ आत्मा परमात्मा के साथ एकाकार हो जाती है (अद्वैत) और संसार के मोह-माया से ऊपर उठकर शाश्वत शांति और आनंद की स्थिति में पहुँचती है। यह हमारी आत्मा का अंतिम लक्ष्य है, जिसे पाने के लिए आंतरिक शांति और आनंद की आवश्यकता होती है।
इसे समझने के लिए एक प्राचीन कथा के माध्यम से मोक्ष की यात्रा को जानेंगे। यह कथा हमें जीवन के असली अर्थ और मोक्ष की महत्ता को समझने में मदद करेगी।
कथा: राजा जनक और ऋषि याज्ञवल्क्य
यह कथा प्राचीन काल की है, जब मिथिला के राजा जनक एक प्रसिद्ध और ज्ञानवान राजा थे। उनके पास हर सांसारिक सुख-सुविधा थी, लेकिन फिर भी उनके मन में यह सवाल हमेशा बना रहता था: “मोक्ष क्या है?” राजा जनक ने कई विद्वानों से इसका उत्तर प्राप्त करने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें सही उत्तर नहीं मिला।
एक दिन राजा जनक ने अपने गुरु, महान ऋषि याज्ञवल्क्य को बुलाया और उनसे यह प्रश्न पूछा:
“गुरुदेव, संसार में इतना सब कुछ होते हुए भी मेरे मन में शांति नहीं है। मैं मोक्ष प्राप्त करना चाहता हूँ। कृपया मुझे बताएं, मोक्ष का वास्तविक अर्थ क्या है?”
ऋषि याज्ञवल्क्य का उत्तर
ऋषि याज्ञवल्क्य ने राजा जनक से कहा: “राजन, मोक्ष केवल एक स्थिति नहीं है, यह आत्मा की पूर्ण मुक्ति है। मोक्ष का अर्थ है जन्म और मृत्यु के चक्र से बाहर आना, जहाँ आत्मा शुद्ध होकर परमात्मा से एकाकार हो जाती है। लेकिन इस सत्य को केवल शब्दों से नहीं समझा जा सकता, इसे अनुभव करना होता है।”
राजा जनक इस उत्तर से संतुष्ट नहीं हुए। उन्होंने फिर पूछा, “गुरुदेव, यह अनुभव कैसे प्राप्त किया जा सकता है?”
परीक्षा की घड़ी
ऋषि याज्ञवल्क्य ने राजा जनक की परीक्षा लेने का निश्चय किया। उन्होंने राजा को आदेश दिया कि वह अपने महल की छत पर जलती हुई मशाल को लेकर टहलें, और ध्यान रखें कि मशाल न गिरे और न बुझे। साथ ही, उन्हें यह आदेश दिया गया कि महल में हो रही किसी भी घटना पर ध्यान न दें।
राजा जनक ने वैसा ही किया। महल की छत पर चलते समय उनके मन में बस एक ही चिंता थी—मशाल को गिरने या बुझने से बचाना। महल में संगीत बज रहा था, नाच-गाना हो रहा था, भोजन पकाया जा रहा था, लेकिन राजा जनक का ध्यान केवल मशाल पर था।
जब वह वापस ऋषि याज्ञवल्क्य के पास आए, तो ऋषि ने उनसे पूछा:
“राजन, महल में क्या हो रहा था?”
राजा जनक ने कहा: “गुरुदेव, मुझे नहीं पता। मेरा सारा ध्यान केवल मशाल पर था।”
मोक्ष का वास्तविक अर्थ
तब ऋषि याज्ञवल्क्य ने मुस्कुराते हुए कहा: “राजन, यही मोक्ष है। जब व्यक्ति संसार के सभी मोह, माया और विकारों से परे होकर अपनी आत्मा पर ध्यान केंद्रित करता है, तभी वह मोक्ष की दिशा में अग्रसर होता है। जैसे तुम्हारा ध्यान केवल मशाल पर था, उसी प्रकार जब आत्मा परमात्मा की ओर केंद्रित होती है और संसार की चिंता पीछे छूट जाती है, तब मोक्ष प्राप्त होता है।”
“मोक्ष का अर्थ यह है कि आत्मा सांसारिक इच्छाओं, बंधनों और द्वंद्वों से मुक्त हो जाती है। मोक्ष वह अवस्था है, जहाँ आत्मा परमात्मा के साथ एकाकार होकर शाश्वत शांति और आनंद का अनुभव करती है।”
कथा का संदेश
इस कथा के माध्यम से हमें यह समझने को मिलता है कि मोक्ष की प्राप्ति संसार से भागने में नहीं है, बल्कि संसार में रहते हुए आत्मा को परमात्मा की ओर एकाग्र करने में है। मोक्ष वह स्थिति है, जहाँ आत्मा को शांति, आनंद, और स्थिरता प्राप्त होती है। यह जीवन की अंतिम मुक्ति है, जहाँ आत्मा जन्म-मरण के चक्र से बाहर आकर परमात्मा में विलीन हो जाती है।
मोक्ष का अर्थ केवल शारीरिक मुक्ति नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धता और शांति की दिशा में यात्रा है। यह यात्रा हमारे भीतर की चेतना को जागृत करती है और हमें आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाती है। राजा जनक की तरह, जब हम संसार के मोह-माया से ऊपर उठकर अपनी आत्मा पर ध्यान केंद्रित करेंगे, तभी हमें मोक्ष की प्राप्ति होगी।
आज के इस “सचेतन” कार्यक्रम में इतना ही। हमें उम्मीद है कि इस कथा के माध्यम से आपको मोक्ष के गहरे अर्थ को समझने में मदद मिली होगी। मोक्ष की दिशा में यह यात्रा आपकी आत्मा को शुद्धि और शांति प्रदान करेगी।