सचेतन, पंचतंत्र की कथा-17 : “बुनकर की वीरता और भगवान नारायण का हस्तक्षेप”
नमस्कार दोस्तों! आपका स्वागत है सचेतन के इस विचार के सत्र में में, जहाँ हम सुनते हैं अद्भुत और प्रेरणादायक कहानियाँ। आज की कहानी एक बुनकर की है, जिसने विष्णु का रूप धारण कर छल किया, लेकिन अंततः अपनी वीरता और बलिदान के लिए प्रसिद्ध हुआ। यह कहानी छल, साहस, और भगवान नारायण के हस्तक्षेप की है। तो चलिए, शुरू करते हैं।
बुनकर का संकल्प और युद्ध की तैयारी
सबेरे बुनकर ने दातुन करने के बाद राजकुमारी से कहा, “मैं सब शत्रुओं का नाश करने के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करूँगा। आज सबेरे तुम्हारे पिता को अपनी सेना के साथ नगर के बाहर युद्ध के लिए निकलना होगा। मैं आकाश में रहकर शत्रुओं को निस्तेज कर दूंगा। इसके बाद तुम उन्हें मार सकोगे। मैं खुद उन्हें नहीं मारूंगा, क्योंकि अगर मैं उन्हें मारता हूँ, तो वे स्वर्ग में चले जाएंगे। इसलिए ऐसा होना चाहिए कि वे भागते हुए मारे जाएं और स्वर्ग न पहुँच पाएं।”
राजकुमारी ने यह सारी बात अपने पिता को जाकर बताई। उसकी बातों में पूरा विश्वास करते हुए राजा ने सवेरे अपनी सुसज्जित सेना के साथ नगर के बाहर निकलने का निश्चय किया। बुनकर भी, जो मरने का संकल्प कर चुका था, लकड़ी के गरुड़ पर चढ़कर और धनुष हाथ में लेकर युद्ध के लिए निकला।
भगवान नारायण का हस्तक्षेप
उसी समय, भगवान नारायण, जो भूत, भविष्य और वर्तमान के जानकार थे, उन्होंने गरुड़ का ध्यान किया। गरुड़ तुरंत भगवान के पास आ पहुँचा। भगवान नारायण ने हँसते हुए उससे कहा, “हे गरुड़! क्या तुम जानते हो कि एक बुनकर ने लकड़ी के गरुड़ पर चढ़कर मेरा रूप धारण किया है और राजकुमारी के साथ विहार कर रहा है?”
गरुड़ ने भगवान से कहा, “हाँ, प्रभु, मैं जानता हूँ। लेकिन अब हमें क्या करना चाहिए?”
भगवान नारायण ने कहा, “उस बुनकर ने आज मरने का निश्चय कर लिया है। वह युद्ध के लिए निकला है और श्रेष्ठ क्षत्रियों के बाणों से घायल होकर उसे अवश्य ही मृत्यु मिलेगी।”
हमें कई महत्वपूर्ण सीख मिलती हैं:
- धैर्य और साहस: बुनकर ने भले ही छल किया था, लेकिन संकट के समय उसने अपना साहस नहीं खोया। उसने संकल्प कर लिया था कि वह अपने प्रिय के लिए मरने को भी तैयार है। यह सच्ची वीरता का प्रमाण है।
- कर्म और परिणाम: बुनकर ने भगवान विष्णु का रूप धारण कर लोगों को धोखा दिया। लेकिन अंत में उसके कर्मों का परिणाम उसे भुगतना पड़ा। यह कहानी हमें बताती है कि हम चाहे कितनी भी चालाकी क्यों न करें, अंततः हमारे कर्मों का फल हमें जरूर मिलता है।
- भगवान का न्याय: भगवान नारायण ने देखा कि बुनकर ने छल से काम लिया था और अब वह युद्ध में जा रहा है। भगवान ने उसकी चालबाजी को समझा और उसका परिणाम तय कर दिया। यह हमें बताता है कि कोई भी छल भगवान से छिपा नहीं रहता और हर किसी को उसके कर्मों का फल मिलता है।
“बुनकर, विष्णु और भगवान नारायण की लीला”
एक बुनकर की, जिसने छल-कपट से भगवान विष्णु का रूप धारण किया और राजकन्या के साथ विवाह किया। लेकिन जब शत्रुओं ने राजा पर हमला किया, तब भगवान नारायण ने बुनकर की मदद की और इस पूरी कहानी को एक नई दिशा दी। तो चलिए, शुरू करते हैं।
बुनकर का संकल्प और भगवान नारायण का हस्तक्षेप
बुनकर ने युद्ध का संकल्प लिया था, और सबको यकीन था कि वह स्वयं विष्णु हैं। लेकिन असल में, भगवान नारायण को यह पता था कि बुनकर ने उनका रूप धारण किया है और छल से काम लिया है। भगवान ने गरुड़ को बुलाया और कहा, “हे गरुड़, बुनकर ने हमारा रूप धारण किया है और अब युद्ध के लिए जा रहा है। अगर वह मारा गया, तो लोग कहेंगे कि विष्णु और गरुड़ को क्षत्रियों ने मार डाला। इससे हमारी पूजा बंद हो जाएगी। इसलिए तुम लकड़ी के गरुड़ में प्रवेश कर जाओ और मैं बुनकर के शरीर में प्रवेश करूंगा।”
गरुड़ ने भगवान की आज्ञा मानी और लकड़ी के गरुड़ में प्रवेश किया। भगवान नारायण ने बुनकर के शरीर में प्रवेश किया और क्षण-भर में सभी शत्रुओं को निस्तेज कर दिया। राजा और उसकी सेना ने उन शत्रुओं को हराकर जीत हासिल की।
बुनकर की सच्चाई का खुलासा और उसका विवाह
युद्ध के बाद, जब लोग बुनकर को देखते हैं, तो वे हैरान रह जाते हैं। राजा, आमात्य और नागरिक सब उसे बुनकर के रूप में पहचानते हैं और उससे पूछते हैं, “यह क्या हुआ?” बुनकर ने भी सारा हाल बता दिया—कैसे उसने विष्णु का रूप धारण किया और कैसे भगवान ने उसकी सहायता की।
राजा ने बुनकर के साहस और शत्रुओं के नाश से खुश होकर उसे अपनी बेटी का विवाह विधि से दे दिया और साथ में कुछ देश भी उसे दे दिया। बुनकर और राजकन्या ने सुखमय जीवन बिताना शुरू किया और राजमहल में अपनी जगह बनाई।
कहानी का संदेश और शिक्षा
यह कहानी हमें कई महत्वपूर्ण बातें सिखाती है:
- चालाकी और धैर्य: बुनकर ने चालाकी और धैर्य से काम लिया। उसने विष्णु का रूप धारण कर राजकन्या के साथ विवाह किया, लेकिन जब संकट आया तो उसने भगवान नारायण का ध्यान किया और उनकी कृपा से शत्रुओं को निस्तेज कर दिया।
- भगवान का न्याय: भगवान नारायण ने देखा कि बुनकर ने छल किया था, लेकिन उसके साहस और संकल्प को देखते हुए उसे मदद दी। यह हमें सिखाता है कि सच्चाई और साहस से किए गए प्रयास का परिणाम हमेशा अच्छा होता है।
- संघर्ष में स्थिरता: बुनकर का संघर्ष हमें यह सिखाता है कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों, हमें अपने संकल्प पर अडिग रहना चाहिए और धैर्यपूर्वक उनका सामना करना चाहिए।
समाप्ति:
तो दोस्तों, यह थी आज की कहानी—एक बुनकर की साहस, छल, और भगवान नारायण की कृपा की। इस कहानी से हमें यह समझने को मिलता है कि चालाकी और धैर्य का सही उपयोग कैसे किया जा सकता है और सच्चाई के मार्ग पर चलते हुए किस तरह भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
अगली बार फिर एक नई और प्रेरणादायक कहानी के साथ मिलेंगे। तब तक के लिए खुश रहिए, सावधान रहिए, और अपने संकल्प पर अडिग रहिए। धन्यवाद और नमस्कार!