सचेतन, “मेरा नया बचपन”

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नमस्कार दोस्तों, स्वागत है आप सबका हमारे आज के विचार के सत्र में। आज हम बात करेंगे एक ऐसी कविता के बारे में, जिसने हमारे दिल को छू लिया और हमें अपने बचपन के उन अनमोल पलों की याद दिलाई। आज का हमारा विषय है — “मेरा नया बचपन।” यह कविता हमें उन मधुर पलों की बात करती है, जिन्हें हम सभी ने महसूस किया है, जब जीवन पूरी तरह से चिंता-रहित, स्वतंत्र और खुशियों से भरा हुआ था।

बचपन के वे दिन… एक ऐसा समय था, जब हमें दुनिया की कोई चिंता नहीं थी। न ऊँच-नीच का फर्क था, न कोई जिम्मेदारी। अगर आप सोचें, तो बचपन का सबसे बड़ा उपहार है उसकी सरलता और खुशियों की मासूमियत। आज हम कवयित्री, सुभद्रा कुमारी चौहान जी, की कविता में अपनी उन बचपन की यादों को जीवंत करती हैं, जो किसी भी इंसान के दिल को छू सकती हैं।

कविता की शुरुआत में कवयित्री अपने बचपन की यादों को याद करती हैं। वे बताती हैं कि कैसे बचपन में बिना किसी चिंता के खेलने-कूदने और मस्ती करने का मजा कुछ और ही था। वह मस्त समय, जब कोई ऊँच-नीच नहीं थी, न कोई बंधन, न कोई बोझ। सिर्फ खुली हवा में हँसी-खुशी का आकाश था। उस समय में जीवन की मासूमियत का एक अनोखा स्वाद है, जिसे बड़े होने के बाद हम अक्सर भूल जाते हैं।

सुभद्रा जी की कविता का सबसे भावनात्मक हिस्सा तब आता है, जब वह अपनी बेटी के साथ अपने बचपन को फिर से जीती हैं। उनकी बेटी मिट्टी लेकर उनके पास आती है और कहती है, “माँ, आओ!”—जिसमें बच्ची के भोलेपन की मधुरता छिपी हुई है। उस पल में कवयित्री का दिल खुशी से भर जाता है। उन्हें लगता है जैसे उनका बचपन लौट आया हो। वह अपनी बेटी के साथ खेलने लगती हैं, तुतलाने लगती हैं, और इस प्रकार फिर से अपने ही बचपन को पाती हैं। यह क्षण उन्हें वापस उस सुकून और खुशी में ले जाता है, जो शायद समय के साथ खो गई थी।

कवयित्री की यह अनुभूति हमें याद दिलाती है कि बच्चों के साथ बिताया हुआ समय हमें हमारे ही बचपन की ओर खींच लेता है। उनके साथ खेलते, हँसते और तुतलाते हुए हम खुद भी एक बार फिर से वही मासूम बच्चा बन जाते हैं। बचपन की ये यादें हमें वास्तविक खुशी देती हैं—वह खुशी, जो हम कभी-कभी अपनी व्यस्त जिंदगी और जिम्मेदारियों के बीच खो देते हैं।

अब सोचिए, क्या यही कारण नहीं है कि हम अपने अंदर के बच्चे को कभी खोना नहीं चाहते? बच्चों में वह सच्चाई होती है, वह सरलता होती है, जो हमारे दिल को सुकून देती है। वे हमें सिखाते हैं कि कैसे हर पल को खुलकर जिया जाए, कैसे छोटी-छोटी चीजों में बड़ी खुशियाँ ढूँढी जाएं।

बाल दिवस विशेष: आज के इस सचेतन में, जब हम बचपन की बात कर रहे हैं, तो हमें बाल दिवस को भी याद करना चाहिए। बाल दिवस, जो 14 नवंबर को मनाया जाता है, हमें बच्चों के महत्व और उनकी खुशी की ओर ध्यान दिलाता है। पंडित जवाहरलाल नेहरू, जिन्हें बच्चे बहुत प्रिय थे, उनके जन्मदिन को हम बाल दिवस के रूप में मनाते हैं। बाल दिवस का संदेश है कि हर बच्चे को उसका बचपन स्वतंत्रता, खुशी, और प्यार के साथ बिताने का अधिकार मिलना चाहिए। जब हम अपने बच्चों के साथ समय बिताते हैं और उनके साथ उनके बचपन को जीते हैं, तब हम भी अपने अंदर के बच्चे को पुनः जीवित कर पाते हैं।

सुभद्रा जी की कविता का यही संदेश है कि हमें अपनी जीवन की कठिनाइयों और संघर्षों के बावजूद, अपने अंदर के बच्चे को जिन्दा रखना चाहिए। बच्चों के साथ उनके बचपन में जीना, उनके साथ खेलना, और उसी मासूमियत को फिर से महसूस करना—यही असली आनंद है। यह हमें बताता है कि खुशी केवल बड़ी चीजों में नहीं है, बल्कि उन छोटी-छोटी पलों में है, जब हम जीवन को पूरे दिल से जीते हैं।

इस कविता के माध्यम से हम यह भी समझ सकते हैं कि जीवन में चाहे कितनी भी चुनौतियाँ क्यों न हों, हमें अपने अंदर के उस मासूम बच्चे को जिन्दा रखना चाहिए। जब हम अपने बच्चों के साथ समय बिताते हैं, तो वे हमें सिखाते हैं कि कैसे बिना किसी चिंता के जीवन को जिया जाए। वे हमें दिखाते हैं कि सच्ची खुशी और शांति कहाँ छिपी है—वे हमारे दिल के अंदर ही है, हमारे अंदर के उस मासूम बच्चे में है।

इसलिए, दोस्तों, आइए हम सभी अपने अंदर के बच्चे को न भूलें। कभी-कभी अपने बच्चों के साथ खेलें, हँसें, तुतलाएँ, और जीवन को उनकी नजर से देखें। यकीन मानिए, वह अनुभव अनमोल होता है। क्योंकि अंत में, सच्ची खुशी उन छोटी-छोटी चीजों में ही मिलती है, जिन्हें हम अपनी व्यस्त जिंदगी में नजरअंदाज कर देते हैं।

तो दोस्तों, यही था आज का हमारा सचेतन —बचपन की मिठास और उसे फिर से पाने की अनमोल खुशी के बारे में। उम्मीद है, आपने भी इस सफर का आनंद लिया होगा और अपने बचपन की यादों में खो गए होंगे।

आशा है कि आपको हमारा आज का एपिसोड पसंद आया होगा। अगले एपिसोड में हम फिर मिलेंगे, एक नए अनुभव के साथ। तब तक के लिए खुश रहें, अपने अंदर के बच्चे को जिंदा रखें, और मुस्कुराते रहें। धन्यवाद!

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