सचेतन, पंचतंत्र की कथा-29 :सिंह, ऊँट, सियार और कौए की कथा-२
स्वागत है आपका “सचेतन” के विचार के सत्र में जहां हम सिंह, ऊँट, सियार और कौए की कथा के दूसरे एपिसोड में हैं। पिछली बार हमने देखा कि मदोत्कट सिंह बुरी तरह घायल हो गया था और उसके नौकर भूख से परेशान थे। यहां से कहानी एक और मोड़ लेती है, जहां लोभ और स्वामी-भक्ति के बीच का संघर्ष स्पष्ट हो जाता है। सिंह की गंभीर स्थिति और उसके नौकरों की भूख ने उन्हें कड़ी परीक्षा में डाल दिया है। सभी जानवर अपने स्वामी की सेवा के लिए तत्पर हैं, लेकिन उनके सुझावों में छिपे स्वार्थ और चालाकी की झलक भी मिलती है। विशेष रूप से सियार की चतुराई और छल-कपट को देखा जा सकता है, जिसने अपने स्वामी के आदेश के विपरीत ऊँट को मारने का सुझाव दिया।
आगे की कहानी में, सिंह के सामने एक कठिन परिस्थिति उत्पन्न होती है, जहां उसे अपने नौकरों की भक्ति का परीक्षण करना पड़ता है। ऊँट, जिसने सिंह के साथ सुरक्षा पाई थी, अब उसी सुरक्षा के कारण खतरे में है। सिंह के अन्य सेवक अपने लाभ और सिंह की भलाई के लिए ऊँट की बलि देने की बात करते हैं। इस द्वंद्व और ऊँट की नियति से हमें इस बात का अहसास होता है कि विश्वास और स्वार्थ के बीच का अंतर कितना सूक्ष्म हो सकता है और कैसे चालाक लोग अपनी बात मनवाने के लिए तरह-तरह के तर्क प्रस्तुत करते हैं।
मदोत्कट ने कहा, “जो तुम्हें सही लगे वही करो।” सियार दूसरे सेवकों के पास गया और कहा, “स्वामी बहुत बीमार हैं, और उन्हें बचाने के लिए हमें उनकी सेवा में अपनी जान देनी चाहिए। अगर सेवक स्वामी के कष्ट में होते हुए भी उसे नहीं बचाता, तो उसे नरक मिलता है।” इसके बाद सभी सेवक मदोत्कट के पास गए और उससे अपनी जान देने का प्रस्ताव रखा। कौआ बोला, “स्वामी, मुझे खाकर अपनी जान बचाइए, जिससे मुझे स्वर्ग प्राप्त हो सके।” लेकिन सियार ने कहा, “तुम्हारा शरीर छोटा है, तुम्हें खाने से स्वामी की भूख नहीं मिटेगी।”
यह सुनकर सियार ने कहा, “थोड़े-थोड़े और कमज़ोर कौए का मांस और कुत्ते का जूठा खाने से क्या फायदा जब उससे भूख नहीं मिटती? लेकिन जो स्वामी-भक्ति तुमने दिखाई है, उससे तुम स्वामी के ऋण से मुक्त हो गए और दोनों लोकों में तुम्हारी प्रशंसा होगी। अब तुम हट जाओ, मैं स्वामी से कुछ निवेदन करूं।” कौए के हटने के बाद सियार हाथ जोड़कर खड़ा हुआ और बोला, “स्वामी! मुझे खाकर अपनी जान बचाइए और मुझे इस लोक और परलोक का उद्धार करने दीजिए। कहा गया है कि खरीदे गए सेवक की जान हमेशा मालिक की होती है और उसे मारने से स्वामी को पाप नहीं लगता।”
यह सुनकर चीता बोला, “तुमने सही कहा, लेकिन तुम छोटे हो और कुत्ते की जात के हो, इसलिए तुम खाने योग्य नहीं हो।” उसने आगे कहा, “बुद्धिमान व्यक्ति को किसी भी हालत में ऐसी वस्तु नहीं खानी चाहिए जो उसे इस लोक और परलोक में हानि पहुँचाए, खासकर अगर वह वस्तु बहुत छोटी हो। तुमने अपनी कुलीनता दिखा दी है। राजा हमेशा कुलीनों को अपने पास रखते हैं, क्योंकि वे कभी भी अपनी मर्यादा नहीं छोड़ते।” इसके बाद चीते ने मदोत्कट से कहा, “स्वामी, मेरी जान से अपने शरीर को चलाइए, मुझे स्वर्गवास दीजिए और मेरा यश बढ़ाइए। जो सेवक स्वामी के कार्य करते हुए मरता है, उसे स्वर्ग में अमरता प्राप्त होती है।” ऊँट ने सोचा कि सभी ने अपनी जान देने की बातें की हैं, लेकिन स्वामी ने किसी को मारा नहीं है, इसलिए मैं भी ऐसा ही कहता हूँ। फिर वह आगे बढ़कर बोला, “स्वामी! ये सभी आपके लिए अखाद्य हैं, इसलिए मुझे मारकर अपना जीवन बचाइए। स्वामी के लिए जान देने वाले को जो गति मिलती है, वह यज्ञ करने वाले और योगी भी नहीं पाते।”
ऊँट ने अपनी जान देने का प्रस्ताव रखा था, और सियार और चीते ने तुरंत उसकी हत्या कर दी। बाद में सभी ने मिलकर उसे खा लिया। इस पूरी घटना से हमें यह सीखने को मिलता है कि छल-कपट से जीवन जीने वाले लोग अंततः अपने ही कर्मों से नष्ट हो जाते हैं।
इसलिए कहा गया है की “कपट से अपनी जीविका चलाने वाले छोटे पंडित ऐसे ही कपट और अकार्य करते हैं, जैसे कौओं और अन्य जानवरों ने ऊँट के साथ किया।” इससे हमें यह सिखने को मिलता है कि छल से जीवन जीने वाले छोटे बुद्धिमान लोग अपने ही अंत को बुलाते हैं। यहाँ पर आज की कहानी समाप्त होती है। अगले एपिसोड में हम जानेंगे कि इस कपटपूर्ण व्यवहार से हम क्या सीखते हैं।