सचेतन, पंचतंत्र की कथा-34 : धर्मबुद्धि और पापबुद्धि की कथा

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नमस्कार दोस्तों!
आप सभी का “सचेतन” के इस नए एपिसोड में हार्दिक स्वागत है। पिछले एपिसोड में हमने “बंदर और गौरैया” की कहानी सुनी, जिसमें यह संदेश दिया गया था कि दूसरों को कष्ट देकर खुशी पाने की कोशिश करने वाला व्यक्ति अपने विनाश की ओर अग्रसर होता है। इसके साथ ही हमने शास्त्रों में वर्णित संतानों के चार प्रकार—जात, अनुजात, अतिजात, और अपजात के बारे में चर्चा की थी।

पंचतंत्र की ये कहानियाँ न केवल मनोरंजन का साधन हैं, बल्कि जीवन के गूढ़ सिद्धांतों को सरलता से समझाने का माध्यम भी हैं। आज हम धर्मबुद्धि और पापबुद्धि की एक ऐसी कहानी सुनाने जा रहे हैं, जो हमें यह सिखाती है कि ईमानदारी और विवेक का रास्ता हमेशा सही होता है।

किसी नगर में धर्मबुद्धि और पापबुद्धि नाम के दो मित्र रहते थे। पापबुद्धि स्वभाव से चालाक और स्वार्थी था, जबकि धर्मबुद्धि सच्चा और बुद्धिमान था। एक दिन पापबुद्धि ने सोचा, “मैं गरीब और मूर्ख हूँ। क्यों न धर्मबुद्धि को साथ लेकर परदेश जाऊं, उसकी मदद से धन कमाऊं और फिर उसे धोखा देकर सारा धन हड़प लूं।” उसने धर्मबुद्धि से कहा, “मित्र, क्या तूने कभी सोचा है कि बुढ़ापे में जब तू अपनी जिंदगी को याद करेगा, तो क्या सोचेगा? अगर तूने अलग-अलग देशों को नहीं देखा और उनकी भाषाओं व परंपराओं को नहीं जाना, तो अपने बच्चों से क्या बातें करेगा?”

धर्मबुद्धि को यह सुझाव सही लगा। उसने अपने बड़ों की आज्ञा लेकर पापबुद्धि के साथ यात्रा पर निकलने का निश्चय किया।

यात्रा और पापबुद्धि की योजना

दोनों मित्र परदेश गए। धर्मबुद्धि की ईमानदारी और समझदारी की वजह से पापबुद्धि ने बहुत सारा धन कमाया। जब वे अपने नगर लौटने लगे, तो पापबुद्धि ने कहा, “मित्र, यह सारा धन घर ले जाना सही नहीं होगा। परिवार और रिश्तेदार इसे मांगने लगेंगे। चलो, इसे जंगल में गाड़ देते हैं। जब जरूरत होगी, तब इसे निकाल लेंगे।” धर्मबुद्धि ने इस पर सहमति जताई, और दोनों ने जंगल में धन गाड़ दिया।कहा भी गया है कि बुद्धिमान व्यक्ति को अपना धन दूसरों को नहीं दिखाना चाहिए, क्योंकि धन देखकर मुनि का मन भी विचलित हो सकता है।” धर्मबुद्धि ने पापबुद्धि की बात मान ली, और दोनों ने धन को जंगल में गाड़ दिया।

कुछ दिनों बाद पापबुद्धि ने धर्मबुद्धि से कहा, “मित्र! अब हमें उस धन की जरूरत है। चलो, उस स्थान पर चलें और थोड़ा धन निकाल लें।” धर्मबुद्धि तैयार हो गया।

जब वे दोनों उस स्थान पर पहुंचे और गड्ढा खोदा, तो पाया कि धन गायब है। पापबुद्धि तुरंत चिल्लाने लगा, “अरे धर्मबुद्धि! यह धन तेरे सिवा और कोई नहीं चुरा सकता। अगर तूने इसे चुराया है, तो आधा धन दे दे, नहीं तो मैं राजा के पास जाकर शिकायत करूंगा।” धर्मबुद्धि ने शांत होकर उत्तर दिया, “मैं धर्मबुद्धि हूं, मैं चोरी नहीं कर सकता। धार्मिक व्यक्ति पर-स्त्री को माँ समान, दूसरों के धन को मिट्टी के समान, और सब जीवों को अपने समान समझता है।”

इसके बाद दोनों राजा के दरबार पहुंचे। आगे क्या होता है, यह जानने के लिए सुनिए “सचेतन” का अगला एपिसोड। यह कहानी हमें सिखाती है कि झूठ और धोखे की उम्र लंबी नहीं होती।

आज के एपिसोड को यहीं समाप्त करते हैं। अगली बार मिलेंगे इस कहानी के अगले भाग को लेकर और जीवन का नया संदेश लेकर। तब तक के लिए धन्यवाद और खुश रहिए।

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