सचेतन, पंचतंत्र की कथा-37 : लोहे की तराजू और बनिए की कथा

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हमने धर्मबुद्धि और पापबुद्धि की कथा और बगला, सांप और केकड़े की कहानी सुना और यह जाना कि किस तरह बिना सोचे-समझे कोई उपाय करना विनाश को आमंत्रित कर सकता है।जिस स्थान पर छोटी-छोटी बातें अनदेखी की जाती हैं और मूर्खता या दुष्टता को बढ़ावा दिया जाता है, वहाँ बड़ी-बड़ी समस्याएँ स्वतः ही उत्पन्न हो जाती हैं। 

करटक ने आगे कहा:
मूर्ख व्यक्ति का स्वभाव ही ऐसा होता है कि वह बिना परिणाम सोचे अपने स्वार्थ और कुबुद्धि के कारण दूसरों का अहित कर बैठता है। जैसे पापबुद्धि ने सोचा था कि उसकी चालाकी काम आएगी, परंतु उसने अपने पिता की जान जोखिम में डाल दी और खुद भी नष्ट हो गया।इसलिए यह आवश्यक है कि किसी भी उपाय के साथ उसके विघ्नों (खतरों) पर भी ध्यान दिया जाए। मूर्खता और अधूरी योजना हमेशा विनाश का कारण बनती है।

इस प्रकार करटक ने दमनक को समझाया कि बुद्धिमान व्यक्ति को हर कदम सोच-समझकर उठाना चाहिए। और उसने लोहे की तराजू और बनिए की कथा शुरू किया। 

किसी नगर में जीर्णधन नाम का एक बनिया रहता था। व्यापार में घाटा होने के कारण उसके पास धन कम हो गया था। उसने देसावर (विदेश) जाकर नया काम करने की योजना बनाई। वह सोचने लगा –

“जिस देश या स्थान पर अपने पुरुषार्थ (मेहनत) से सुख भोगा हो, वहाँ गरीबी में रहना अपमानजनक है।
इसी तरह, जहाँ पहले अभिमान के साथ विलास किया हो, वहाँ अगर गरीबी में गिड़गिड़ाना पड़े तो वह निंदनीय समझा जाता है।”

उसके पास पुश्तैनी लोहे की बनी एक तराजू थी। जाने से पहले उसने वह तराजू सेठ के घर सुरक्षित रख दी और देसावर चला गया।

बहुत समय तक विदेशों में घूमने के बाद जब वह अपने नगर लौटा, तो सेठ के पास जाकर बोला – सेठ जी, मेरी जमा की हुई तराजू वापस दे दीजिए।”

सेठ ने झूठ बोलते हुए कहा – “अरे भाई, तुम्हारी तराजू तो चूहों ने खा ली!”

जीर्णधन ने शांतिपूर्वक उत्तर दिया – “सेठ, इसमें आपकी कोई गलती नहीं है। अगर चूहों ने तराजू खा ली तो इसमें क्या किया जा सकता है? यह संसार ऐसा ही है, यहाँ कुछ भी सदा के लिए नहीं रहता।”

फिर उसने चालाकी से कहा – “सेठजी, मैं नदी में स्नान करने जा रहा हूँ। कृपया अपने धनदेव नाम के लड़के को मेरे साथ स्नान का सामान देकर भेज दीजिए।”

सेठ को अपने झूठ का डर था, इसलिए उसने अपने बेटे को बनिए के साथ भेज दिया। उसने कहा – “वत्स! ये तुम्हारे चाचा हैं। नहाने के लिए नदी जा रहे हैं, तुम इनके साथ नहाने का सामान लेकर जाओ।”

“अहो, यह सच कहा गया है कि –
‘भय, लोभ या किसी कारण के बिना कोई व्यक्ति केवल भक्ति के कारण ही दूसरों का भला नहीं करता।
साथ ही, बिना किसी कारण अगर कहीं अधिक आव-भगत हो तो वहाँ शक करना चाहिए, क्योंकि ऐसी शंका का परिणाम सुखदायक होता है।”

इस प्रकार जीर्णधन ने सेठ के झूठ को पकड़ने के लिए चालाकी भरी योजना बनाई और सेठ के लड़के को अपने साथ नदी ले गया।

तब तक की यह कहानी हमें बताती है कि किसी भी व्यक्ति के असामान्य व्यवहार पर हमें शक जरूर करना चाहिए। कभी-कभी धोखा और चालाकी सत्य के पर्दे में छिपी होती है।

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