सचेतन, पंचतंत्र की कथा-44 : परिव्राजक और चूहे की यह कहानी
“नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आपका ‘सचेतन पॉडकास्ट’ के इस खास एपिसोड में, जहाँ हमने सुनी पंचतंत्र की कथा ‘विश्वास और मित्रता की परीक्षा।’ पिछले सत्र में हमने जाना कि कैसे लघुपतनक नामक कौए और हिरण्यक नामक चूहे के बीच सतर्कता और विवेक से भरोसेमंद मित्रता का आरंभ हुआ, और कैसे उन्होंने सच्चे मित्र की तरह एक-दूसरे का साथ दिया। इस कहानी में हमने देखा कि लघुपतनक की दुखभरी स्थिति ने उसे अपने मित्र हिरण्यक के पास अपनी समस्या साझा करने पर मजबूर किया, और दोनों ने एक साथ मिलकर समाधान ढूंढा। मंथरक कछुए से मिलन के दौरान यह स्पष्ट हुआ कि सच्ची मित्रता समय, स्थान, और परिस्थिति की सीमाओं को पार करती है। इस कथा से हमें यह भी सीख मिलती है कि मित्रता का सही अर्थ है – बिना किसी स्वार्थ के एक-दूसरे का सहारा बनना और अपने साथी की भावनाओं को समझना। आज के एपिसोड में, हिरण्यक की दुखभरी कहानी और उसके वैराग्य का कारण जानेंगे।
आज हम आपको सुनाने जा रहे हैं एक अनोखी कथा – ‘परिव्राजक और चूहे की।’ यह कहानी बुद्धिमानी, मेहनत और चतुराई का अद्भुत संगम है। आइए, इस कहानी का आनंद लेते हैं।”
दक्षिण जनपद में महिलारोप्य नाम का एक नगर था। उस नगर के पास भगवान शिव का एक मठ था। उस मठ में ताम्रचूड़ नाम का एक संन्यासी रहता था।
संन्यासी अपनी आजीविका के लिए नगर में भीख मांगता था। जो कुछ भी उसे भीख में मिलता, वह उसे एक भिक्षा पात्र में रखकर मठ की दीवार पर खूंटी पर टांग देता और फिर रात में सो जाता। सबेरे उठकर वह उस अन्न को मजदूरों को बांटता, जो मंदिर की सफाई, लिपाई-पुताई और सजावट का काम करते थे।
मठ में चूहों का एक समूह भी रहता था। उनमें से एक चूहे ने मुझसे कहा:
“स्वामी! ताम्रचूड़ संन्यासी का यह मठ हमारे लिए बहुत उपयुक्त है। लेकिन वह भिक्षा पात्र खूंटी पर लटकाकर रखता है, इसलिए हमें उसका अन्न नहीं मिल पाता। स्वामी, आप महान हैं। अगर आप कृपा करें तो हम इस अन्न का आनंद ले सकते हैं।”
पहला प्रयास
इस विचार पर हमने उसी दिन एक योजना बनाई। मैंने अपने साथियों के साथ मठ में प्रवेश किया। जैसे ही संन्यासी ने भिक्षा पात्र खूंटी पर टांगा और सो गया, मैंने ऊंचाई पर कूदकर उस भिक्षा पात्र को छुआ।
फिर मैंने उस पात्र को गिरा दिया और अपने साथियों के साथ उसमें रखा हुआ सारा अन्न खा लिया। मैंने खुद भी भरपेट खाया और अपने साथियों को भी तृप्त किया।
आदत बन गई
इसके बाद यह हमारी नियमित आदत बन गई। हम हर रात मठ में जाकर उस भिक्षा पात्र में रखा सारा अन्न खा लेते।
संन्यासी ने कई बार रखवाली करने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही वह सो जाता, मैं अपने साथियों के साथ आकर सारा अन्न खा जाता।
सावधानी आवश्यक है: अपनी चीजों की सुरक्षा के लिए हमेशा सतर्क रहना चाहिए।
योजना बनाकर कार्य करें: कोई भी काम बुद्धिमानी और संगठित प्रयास से सफल होता है।
परिश्रम और चतुराई का मेल: चूहों ने मिल-जुलकर और चतुराई से अपने लिए भोजन की व्यवस्था कर ली।
चतुराई और मेहनत से हर समस्या का हल निकाला जा सकता है, लेकिन दूसरों की मेहनत का सम्मान करना भी जरूरी है। 😊
चूहे का आतंक और ताम्रचूड़ का संघर्ष
ताम्रचूड़ नामक एक परिव्राजक अपने मठ में अकेला रहता था। लेकिन उसका जीवन एक चूहे के कारण बेहद कठिन हो गया था। चूहा रातभर उसका भोजन चुराता और उसकी शांति भंग करता। ताम्रचूड़ ने चूहे को भगाने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन सब बेकार गए।
चूहे को भगाने की तरकीब
ताम्रचूड़ ने एक तरकीब के तहत फटा हुआ बांस लाया और सोते समय भी उस बांस से अपने भिक्षा-पात्र को ठकठकाने लगा। उसका सोचना था कि भिक्षा-पात्र की आवाज से चूहा डरकर भाग जाएगा। लेकिन चूहा भी हार मानने वाला नहीं था।
रातभर चलती लड़ाई
रातभर ताम्रचूड़ और चूहे के बीच लड़ाई चलती रहती। ताम्रचूड़ भिक्षा-पात्र ठकठकाता रहता, और चूहा बार-बार वापस आता। इस लड़ाई के कारण ताम्रचूड़ बिना खाए-पिए परेशान हो गया, लेकिन चूहे का आतंक खत्म नहीं हुआ।
मठ में अतिथि का आगमन
एक दिन ताम्रचूड़ के मठ में उसका मित्र बृहत्स्फिक्, जो एक परिव्राजक था, तीर्थ-यात्रा के दौरान अतिथि बनकर आया। ताम्रचूड़ ने उसका सत्कार किया, उसे भोजन कराया और धर्म-कथा की चर्चा के लिए रात में उसके साथ बैठा।
धर्म-कथा और चूहे का डर: जब वे दोनों कुश की चटाई पर बैठकर धर्म-कथा कहने लगे, तो ताम्रचूड़ का ध्यान लगातार भिक्षा-पात्र और चूहे पर था। वह फटे बांस से भिक्षा-पात्र को ठकठकाता रहा, ताकि चूहा पास न आए।
इस विचलित व्यवहार से बृहत्स्फिक् नाराज हो गया। उसने गुस्से में कहा: “ताम्रचूड़! तू मेरा सच्चा मित्र नहीं है। तेरी यह उदासीनता मुझे दिखा रही है कि तू मेरे साथ हंसी-खुशी से बात करने में दिलचस्पी नहीं रखता। यदि तू इसी तरह व्यवहार करेगा, तो मैं इसी रात तेरा मठ छोड़कर किसी और मठ में चला जाऊंगा।”
अतिथि सत्कार का महत्व
बृहत्स्फिक् ने कहा: “जो व्यक्ति अपने घर आए स्नेही जनों को ‘पधारिए’, ‘विश्राम कीजिए’, ‘क्या समाचार है?’ जैसे प्रेम भरे शब्दों से आदर देता है, वही सच्चा मित्र होता है। ऐसे व्यक्ति के घर में स्नेहीजन बिना किसी डर के हमेशा आते हैं।”
अतिथि सत्कार का महत्व: अपने मेहमानों का स्वागत प्रेम और सम्मान से करें।
ध्यान और विनम्रता: मित्रता में ध्यान भटकाना और अनादर करना रिश्तों को कमजोर कर सकता है।
समस्याओं का समाधान: छोटी-छोटी समस्याओं को तुरंत हल करने का प्रयास करें, ताकि वे रिश्तों पर असर न डालें।
मित्रता और अतिथि सत्कार में सच्चा मन और सम्मान आवश्यक है। 😊
चूहे का रहस्य
बृहत्स्फिक् ने कहा: “क्या तू जानता है कि उस चूहे का बिल कहाँ है?”
ताम्रचूड़ ने उत्तर दिया: “नहीं, मुझे इसका पता नहीं।”
बृहत्स्फिक् ने कहा: “निश्चय ही उसका बिल किसी खजाने के ऊपर है। धन की गर्मी से ही वह इतना तेज और कूदने में सक्षम है।”
“दोस्तों, इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है:
- मेहनत और बुद्धिमानी से बड़ी से बड़ी समस्या का हल निकाला जा सकता है।
- धन या संसाधन किसी भी जीव को ताकतवर बना सकते हैं, लेकिन उसका सही उपयोग करना चाहिए।
- सच्ची मित्रता में सहयोग और समझदारी आवश्यक है।
अगले एपिसोड में जानेंगे कि कैसे ताम्रचूड़ और बृहत्स्फिक् ने चूहे की समस्या का समाधान निकाला। तब तक, अपनी मेहनत और मित्रता को संजोएं। धन्यवाद!”