सचेतन:बुद्धचरितम्-3: “भगवत्प्रसूतिः
आदि से अनंत तक, सृष्टि के हर एक पल में कुछ कहानियाँ ऐसी होती हैं जो अमरता को छू जाती हैं। “भगवत्प्रसूतिः” सर्ग ऐसी ही एक दिव्य गाथा का वर्णन करता है, जिसमें महान गौतम बुद्ध के जन्म की घटनाएँ शामिल हैं। यह कथा हमें वह समय सुनाती है जब इक्ष्वाकुवंश के शाक्य राज्य में राजा शुद्धोदन के घर जन्मे थे एक अवतार, जिसने धरा पर अवतरित होकर इतिहास की दिशा और दशा को बदल दिया।
रानी माया के स्वप्न में जिस सफेद हाथी ने प्रवेश किया, वह न केवल उनके गर्भ की शुभता का प्रतीक था, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए एक अग्रदूत भी था। लुम्बिनी वन में जिस क्षण उन्होंने बालक को जन्म दिया, उस क्षण से ही बुद्ध के चरित्र में वह दिव्यता और ज्ञान की चमक दिखाई दी जो संसार को नई रोशनी देने वाली थी।
जन्म लेते ही यह बालक अद्भुत था; उसने सप्तर्षि तारा की तरह सात कदम चले और फिर बोला कि उसने विश्व के कल्याण और ज्ञान प्राप्ति के लिए जन्म लिया है और यह उसका अंतिम जन्म है। बालक के जन्म के साथ ही जिन चमत्कारिक घटनाओं का आरंभ हुआ, वे न केवल राजा शुद्धोदन को बल्कि समस्त राज्य को आश्चर्यचकित कर गए। ब्राह्मणों ने जब उनके दिव्य गुणों का वर्णन किया, तो सभी ने स्वीकार किया कि यह बालक कोई साधारण बालक नहीं बल्कि एक महान आत्मा है।
सप्तर्षि मंडल” यह हमारे नक्षत्र मंडल का एक हिस्सा है। इस तारा समूह में सात प्रमुख तारे होते हैं, जिनका नाम वैदिक साहित्य में वर्णित सप्त ऋषियों – कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और वशिष्ठ – के नाम पर रखा गया है।
ये तारे न केवल खगोल विज्ञान में महत्वपूर्ण हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति और ज्योतिष में भी इनका गहरा महत्व है। वैदिक काल से ही सप्तर्षि मंडल को एक आध्यात्मिक और आकाशीय महत्व दिया गया है, जिसे धर्म, ज्ञान और ऋषियों के जीवन के सिद्धांतों के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
यह सर्ग हमें बताता है कि कैसे एक असामान्य जन्म ने एक युग का निर्माण किया और सम्पूर्ण मानवता को एक नई दिशा प्रदान की। आइए, इस अद्भुत और रोचक कथा में हम डूब जाएँ और जानें कि कैसे बुद्ध ने इस धरती पर अपने कर्मों से अमरता प्राप्त की।
जन्म के कुछ समय बाद, राजा शुद्धोदन ने ब्राह्मणों को धन दान किया, ताकि उनकी प्रसन्नता से उनका बालक राजा बने और उसकी दीर्घायु हो। उसी समय, महर्षि असित जो कि एक तपस्वी संत थे, उन्हें यह खबर मिली कि एक असाधारण बालक का जन्म हुआ है जो भविष्य में बुद्धत्व की प्राप्ति करेगा। वे तुरंत शाक्यराज के घर पहुंचे। राजा ने महर्षि का स्वागत किया और उन्हें आसन पर बिठाया।
महर्षि ने बालक को गोद में लिया और उसके पैरों पर चक्र के निशान देखकर आश्चर्यचकित हो गए। उन्होंने बालक के शरीर पर विशेष लक्षण देखे जो उसे एक महान आत्मा होने का संकेत दे रहे थे। महर्षि ने राजा से कहा कि आपका पुत्र बहुत ही विशेष है और वह भविष्य में धर्म का राजा बनेगा और बुद्धत्व प्राप्त करेगा। उसके बाद महर्षि ने राजा को आशीर्वाद दिया और उसी रास्ते से लौट गए जिससे आए थे।
राजा ने इस शुभ घटना के उपलक्ष्य में अपने राज्य के सभी कैदियों को छोड़ दिया और बालक के लिए विशेष मंगल क्रियाएँ की गईं। बालक के लिए जप, होम और दान किया गया ताकि उसका जीवन मंगलमय हो। इसके बाद एक मंगल शुभ मुहूर्त पर राजा ने अपने पुत्र के साथ राज्य में प्रवेश किया, जहां सभी ने उनका स्वागत किया।
इस प्रकार, बुद्ध के जन्म और उनके बचपन की यह कहानी उनके दिव्य और विशेष होने के संकेत देती है, और यह दिखाती है कि किस प्रकार से उनके जीवन में अध्यात्मिकता का महत्व था।
“भगवत्प्रसूतिः” सर्ग में बुद्ध के जन्म की गाथा का बड़े ही भव्य और आध्यात्मिक ढंग से वर्णन किया गया है। इस सर्ग में कई महत्वपूर्ण बिंदु हैं जो बुद्ध के दिव्य चरित्र और उनके जीवन के महान उद्देश्य को उजागर करते हैं।
मुख्य बिंदुओं का विवरण:
- दिव्य गर्भाधान: रानी माया का स्वप्न में सफेद हाथी द्वारा गर्भाधान, जो बुद्ध के जन्म के दिव्य स्वरूप को दर्शाता है। सफेद हाथी प्राचीन भारतीय परंपरा में शुभता और दिव्यता का प्रतीक है
- जन्म का प्राकृतिक सौंदर्य: बुद्ध का जन्म नन्दन वन के समान सुंदर लुम्बिनी वन में होना, जो प्रकृति के साथ उनके गहरे संबंध को बताता है।
- बुद्ध के जन्म के चमत्कारिक प्रसंग: जन्म लेते ही बुद्ध द्वारा सात कदम चलना और ब्रह्माण्ड के लिए उनके आगमन का उद्घोष। यह दर्शाता है कि बुद्ध का जन्म साधारण मानवीय जन्म नहीं था, बल्कि एक महान आध्यात्मिक उद्देश्य के लिए था।
- ब्राह्मणों की भविष्यवाणी: ब्राह्मणों द्वारा बालक के दिव्य लक्षणों की पहचान और उनके महान भविष्य की भविष्यवाणी। इसमें बालक को भविष्य में या तो महान राजा या बुद्ध (ज्ञानी) होने की बात कही गई है।
- महर्षि असित का आगमन और भविष्यवाणी: महर्षि असित का बालक के जन्म की खबर सुनकर आगमन और बालक के दिव्य लक्षणों को देखकर उनकी बुद्धत्व की भविष्यवाणी करना। इस प्रसंग में बुद्ध की आध्यात्मिक यात्रा के आरंभ की भूमिका निर्धारित होती है।
इस प्रकार, “भगवत्प्रसूतिः” सर्ग बुद्ध के जीवन के प्रारंभिक और आध्यात्मिक महत्व को बड़े ही रोचक और प्रेरणादायक ढंग से प्रस्तुत करता है, जो पाठकों और श्रोताओं को उनके जीवन और शिक्षाओं के प्रति गहराई से आकर्षित करता है।