सचेतन:बुद्धचरितम्-2: “भगवत्प्रसूतिः
“बुद्धचरितम्” संस्कृत का एक प्रसिद्ध महाकाव्य है, जिसे महान कवि अश्वघोष ने रचा। यह महाकाव्य गौतम बुद्ध के जीवन और उनकी शिक्षाओं पर आधारित है। इसमें बुद्ध के जन्म से लेकर उनके बोधिसत्व प्राप्ति तक के महत्वपूर्ण प्रसंगों का विस्तृत वर्णन किया गया है। इस महाकाव्य की शैली वाल्मीकि रामायण से मिलती-जुलती है, जो इसे भारतीय काव्य परंपरा में एक महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करती है।
“बुद्धचरितम्” का कथानक विभिन्न बौद्ध ग्रंथों से प्रेरित है। प्रमुख स्रोतों में महापरिनिर्वाणसूत्र, ललितविस्तर, महावस्तु, निदानकथा, और जातक कथाएँ शामिल हैं।
पाँचवीं शताब्दी में धर्मरक्षा ने इसका चीनी भाषा में अनुवाद किया। सातवीं और आठवीं शताब्दी में इसका तिब्बती भाषा में अनुवाद किया गया।अठारहवीं शताब्दी में इसका अंग्रेजी अनुवाद डॉ. जॉन्सटन ने किया।
“बुद्धचरितम्” के मूल संस्कृत ग्रंथ के केवल 13 सर्ग पूर्ण रूप से उपलब्ध हैं।शेष भाग तिब्बती और चीनी अनुवादों में सुरक्षित है।यह ग्रंथ बुद्ध के जीवन और उनकी शिक्षाओं को समझने के लिए अमूल्य धरोहर है।
यह महाकाव्य 28 सर्गों में विभाजित है, जिसमें बुद्ध के जन्म, युवावस्था, वैराग्य, तपस्या, ज्ञान प्राप्ति और उनके उपदेशों का विस्तार से वर्णन है।”बुद्धचरितम्” न केवल एक महान धार्मिक महाकाव्य है, बल्कि यह दार्शनिक चिंतन और मानवीय मूल्यों का भी अद्भुत संग्रह है। इसमें करुणा, सहानुभूति और ज्ञान की खोज को जिस सुंदरता से प्रस्तुत किया गया है, वह इसे विश्व साहित्य की एक कालजयी रचना बनाता है।
इस महाकाव्य का अध्ययन हमें बुद्ध के संघर्षपूर्ण जीवन, उनके त्याग, और उनके ज्ञान की महिमा को समझने में सहायक होता है। “बुद्धचरितम्” आज भी बौद्ध दर्शन और मानवीय मूल्यों को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण कृति बनी हुई है।
“भगवत्प्रसूतिः” सर्ग में गौतम बुद्ध के जन्म की महत्वपूर्ण और रोचक कथा है। इस सर्ग की कथा कुछ इस प्रकार है:
बहुत समय पहले, इक्ष्वाकुवंश के शाक्य राज्य में राजा शुद्धोदन शासन करते थे। उनकी पत्नी, रानी माया ने एक दिन एक अद्भुत स्वप्न देखा जिसमें एक सफेद हाथी ने उनके शरीर में प्रवेश किया। यह स्वप्न उन्हें बहुत ही शुभ और मांगलिक लगा।
रानी माया ने लोक कल्याण के लिए गर्भधारण किया था और इस दिव्य संकेत के बाद, उन्होंने लुम्बिनी वन जाने की इच्छा प्रकट की। राजा ने रानी की इच्छा का सम्मान करते हुए उन्हें लुम्बिनी वन ले गए, जहाँ पुष्य नक्षत्र के अवसर पर रानी ने एक बालक को जन्म दिया।
जन्म लेते ही यह बालक अद्भुत था; उसने सप्तर्षि तारा की तरह सात कदम चले और फिर बोला कि उसने विश्व के कल्याण और ज्ञान प्राप्ति के लिए जन्म लिया है और यह उसका अंतिम जन्म है। इस घटना को देखकर सभी चकित रह गए।
ब्राह्मणों ने इस बालक के दिव्य लक्षणों की चर्चा की और राजा से कहा कि यह बालक बहुत ही विलक्षण है और बुद्धों में ऋषि बनेगा या फिर अत्यंत राज्य श्री प्राप्त करेगा। ब्राह्मणों ने कहा कि जिस प्रकार धातुओं में स्वर्ण, पर्वतों में सुमेरु, जलाशयों में समुद्र, तारों में चंद्रमा, और अग्नियों में सूर्य श्रेष्ठ होते हैं, उसी प्रकार इंसानों में यह बालक श्रेष्ठ होगा। जब ब्राह्मणों ने उसके भविष्य के बारे में बताया कि वह एक महान आध्यात्मिक गुरु बनेगा, तो राजा शुद्धोदन आश्चर्यचकित हो गए। उन्होंने सोचा कि ये गुण उनके पुरखों में नहीं थे, तो यह राजकुमार कैसे इतने महान बनेगा?
इस पर ब्राह्मणों ने कई उदाहरण देकर समझाया कि अक्सर नए और महान कार्य वे ही लोग करते हैं जो पहले कभी नहीं किए गए। उन्होंने वाल्मीकि और राजा जनक के उदाहरण दिए, जिन्होंने अपने जीवन में अद्वितीय कार्य किए थे। इससे राजा को समझ आया कि उत्कृष्टता किसी वंश या उम्र पर निर्भर नहीं होती। यह किसी भी व्यक्ति में कहीं भी और किसी भी समय विकसित हो सकती है।
इस प्रकार, “भगवत्प्रसूतिः” सर्ग में बुद्ध के जन्म की इस अद्भुत कथा का वर्णन है जो उनके दिव्य और असाधारण जीवन की शुरुआत दर्शाती है।