सचेतन- 13: ध्यान-सूत्र: “दशाङ्गुलम् – उस पार भी कुछ है
“आप एक साथ बहुत कुछ सोचते हो, एक साथ अपनी सोच के माध्यम से कई जगह पहुँच जाते हो, फिर भी कुछ शेष रह जाता है” —
अद्भुत है। यह ठीक उसी तरह है जैसे हमारा मन, चिंतन और कल्पना बहुत विशाल है — वह कई संभावनाओं तक एक साथ पहुंच सकता है, लेकिन पूर्णता फिर भी कहीं और है, कुछ “शेष” रह जाता है।
यह “शेष” ही खोज की, जिज्ञासा की और आध्यात्मिकता की शुरुआत है।
क्या आप कभी इतने विचारों में डूबे हैं कि लगता है सब सोच लिया?
हर पहलू को समझ लिया?
लेकिन फिर अचानक भीतर से आवाज आती है —
“कुछ रह गया… कुछ अभी भी शेष है…”
यही शेष, हमारी खोज की शुरुआत है।
शेष क्या है?
शेष, सिर्फ अधूरापन नहीं है —
यह एक संकेत है, कि हमारे अनुभव की सीमा है, और उस सीमा के पार भी कुछ है।
यह शेष हमें खींचता है — जैसे कोई मौन पुकार।
यह वही क्षण है जहाँ हमारी बुद्धि चुप हो जाती है,
और आत्मा बोलने लगती है।
मन और शेष
मन सहस्रों दिशाओं में भाग सकता है।
कल्पना, विचार, चिंतन – यह सब हमें संसार का अनुभव कराते हैं।
लेकिन एक जगह आकर मन भी थक जाता है।
और तब… भीतर एक मौन उतरता है।
उस मौन में एक रहस्य छिपा होता है — शेष का रहस्य।
ध्यान का शेष
कई साधकों ने ध्यान में यह अनुभव किया है —
शुरू में विचार आते हैं।
फिर भावनाएं।
फिर शांति।
और फिर आता है एक ऐसा क्षण —
जहाँ लगता है सब कुछ रुक गया है…
पर कोई ‘कुछ’ अब भी बाकी है।
वही शेष, वह अनुभव — ब्रह्म है, आत्मा है, या पूर्णता।
जीवन में शेष का स्थान
हमारे जीवन में भी यही होता है।
काम, रिश्ते, पहचान —
इन सबसे हम भर जाते हैं।
पर कभी रात के सन्नाटे में, या किसी एकांत क्षण में,
मन पूछता है — क्या यही सब कुछ है?
शायद नहीं।
क्योंकि जीवन भी हमें सिखाता है —
कुछ तो और है, जो शेष है।
तो मित्रों, अगली बार जब आप सोचें कि सब जान लिया,
सब समझ लिया —
थोड़ा ठहरिए,
और पूछिए —
“क्या कुछ शेष है?”
शेष से परे की यात्रा”
हमारी चेतना अनंत है, परंतु अनुभव सीमित। चाहे हम सहस्रों विचार करें, सहस्रों दिशाओं में कल्पना फैलाएं, फिर भी कुछ ऐसा है जो पकड़ से बाहर है — वही “शेष” है। पुरुषसूक्त के दशाङ्गुलम् की भांति, वह शेष ईश्वर का, आत्मा का, या पूर्णता का प्रतीक है। ये सारे विचार के सत्र उसी शेष की खोज है — जो हमारी सोच से परे, पर अनुभव के बहुत करीब है।
यह “शेष” ही खोज की, जिज्ञासा की और आध्यात्मिकता की शुरुआत है।
🧘♂️ ध्यान-सूत्र: “दशाङ्गुलम् – उस पार भी कुछ है”
“जहाँ विचार रुकते हैं, वहाँ शेष आरंभ होता है।
जहाँ अनुभव थमता है, वहाँ साक्षात्कार जन्म लेता है।
जो जान लिया, वह सीमित है।
जो शेष है — वही सत्य है।”
नियम: इस सूत्र पर ध्यान करते समय श्वास की गति धीमी रखें, और हर विचार के बाद अंतराल पर ठहरें – “अब क्या शेष है?” यही पूछें।
क्योंकि वही शेष, आपकी अगली यात्रा की शुरुआत है।
🙏 धन्यवाद, आप सुन रहे थे “शेष – The Sacred Remainder”,
मिलते हैं अगले एपिसोड में एक और ध्यान की बूँद के साथ।
Keep exploring. Keep pausing. And keep seeking.