सचेतन :57 श्री शिव पुराण- रूद्र संहिता: नारद जी मोह माया वश क्रोध में आकर भगवान विष्णु को स्त्री वियोग श्राप दिया
सचेतन :57 श्री शिव पुराण- रूद्र संहिता: नारद जी मोह माया वश क्रोध में आकर भगवान विष्णु को स्त्री वियोग श्राप दिया
#RudraSamhita
आराधना से नारद मुनि पर कामदेव का कोई प्रभाव नहीं पड़ा उसका कारण ये था की उसी स्थान पर एक समय भगवान शिव ने तपस्या की थी और कामदेव को अपने तीसरे नेत्र से भस्म कर दिया था।
नारद मुनि के मन में काम विजय का अहंकार उपज गया की मैं कामदेव पर विजय प्राप्त कर चुका हूँ। तो वृतांत सुनाने भगवान शिव को सुनाने कैलाश के पास पहुँचे और भक्तवत्सल भगवान शिव जो नारद को शिक्षा दिया कि इस घटना के विषय में किसी और के पास चर्चा मत करना और इसे गुप्त रखना।
पर मन में अहंकार हो जाने के कारण नारद मुनि ब्रह्मा जी से भी इस घटना की चर्चा की और नारद मुनि ने सोचा की उनके द्वारा काम विजय का समाचार सुनकर पिता ब्रह्मा उनकी प्रशंसा करेंगे पर ब्रह्मा जी ने भी भगवान शिव के समान ही नारद से इस विषय को गुप्त रखने को कहा।
निराश होकर नारद मुनि विष्णुलोक पहुँचे, नारद मुनि ने भगवान विष्णु को अपने काम विजय का सारा वृतांत कह सुनाया। नारद मुनि के अहंकार युक्त वचन सुनकर विष्णु भगवान ने नारद मुनि की बहुत प्रशंसा की।
भगवान विष्णु ने सोचा की अहंकार पतन के द्वार खोल देता है इसलिए अपने परम भक्त नारद के कल्याण के उद्देश्य से भगवान विष्णु ने एक माया रची।
उन्होंने नारद मुनि के मार्ग में एक विशाल नगरी की रचना की वहाँ के राजा ने अपनी पुत्री के विवाह के लिए स्वयंवर का आयोजन कर रहे थे और नारद मुनि ने उस परम सुंदरी राजकुमारी का भाग्य देखा तो चकित हो गए। सब प्रकार के सुन्दर लक्षणों से संपन्न उस राजकन्या को देखकर नारद मुनि मन ही मन उस कन्या से स्वयं विवाह करने की इक्षा करने लगे।
इस प्रकार तत्वज्ञानी नारद मोह माया के चुम्बकीय आकर्षण में फंस गए।
भगवान विष्णु द्वारा नारद मुनि को वानर रूप देना
नारद मुनि ने भगवान विष्णु से सारा वृत्तांत सुनाया और कहा – “हे नाथ, मुझे अपने ही समान सुन्दर रूप दें जिससे वह कन्या स्वयंवर में मेरा ही वरण करे।”
ये सुनकर भगवान मंद मंद मुस्काने लगे और कहा – “हे मुनिराज, जिसमें भी तुम्हारा भला हो मैं वही काम करूँगा तुम उस स्थान को जाओ।” ऐसा कहकर भगवान विष्णु ने नारद मुनि के सब अंग प्रत्यंग अपने ही समान कर दिया पर मुख वानर का दे दिया।
स्वयंवर में नारद मुनि का अपमान और उनका रुष्ट होना
अपने अंगों को भगवान के समान हुआ देखकर नारद मुनि अत्यंत प्रसन्न हुए और स्वयंवर में पहुँच कर जहाँ राजागण बैठे हुए थे वहीँ जाकर एक आसन पर विराजमान हो गए और मन में सोचने लगे की मैंने तो भगवान विष्णु के समान रूप धारण किया हुआ है अतः वह राजकुमारी अवश्य ही मेरा वरण करेगी पर नारद मुनि इस बात से अनभिज्ञ थे कि उनका मुँह कितना कुरूप है।
वहाँ नारद मुनि की रक्षा के लिए विष्णु भगवान ने अपने दो पार्षद भेजे थे जो ब्राह्मण का रूप धरकर नारद मुनि के पास ही बैठ गए।
वे दोनों पार्षद मुनि को उनके वास्तविक स्वरुप का भेद बताने के लिए आपस में बातचीत करते हुए नारद मुनि की हंसी उड़ाने लगे पर कामविह्वल नारद मुनि ने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया और राजकुमारी के आने की प्रतीक्षा करने लगे।
थोड़ी देर बाद राजकुमारी स्त्रियों से घिरी हुई वरमाला लेकर उस मंडप में आई और अपने इक्षानुसार वर को ढूंढते हुए उस सभा में भ्रमण करने लगी।
नारद मुनि के वानर रुपी मुख को देखकर वह राजकन्या कुपित हो गई और आगे बढ़ गई। पुरे सभा में अपने मन के अनुसार वर को न पाकर वह कन्या दुखी हो गई।
इतने में उस सभा में भगवान विष्णु प्रकट हुए, विष्णु भगवान को देखकर वह राजकन्या अत्यंत प्रसन्न हुई और वरमाला उनके गले में डाल दिया।
विष्णु भगवान उस कन्या को साथ लेकर तुरंत वहाँ से अंतर्ध्यान हो गए और अपने लोक चले गए।
ये देखकर नारद मुनि के मन में बहुत क्षोभ हुआ। तब भगवान के भेजे हुए ब्राह्मण रूपधारी पार्षदों ने नारद मुनि को आईने में अपना मुँह देखने को कहा।
अपना वास्तविक स्वरुप देखकर नारद मुनि के क्रोध की सीमा न रही और उन्होंने उन दोनों पार्षदों को राक्षस हो जाने का श्राप दे दिया और स्वयं क्रोध की अग्नि में जलते हुए विष्णुलोक पहुँचे।
वह कन्या वास्तव में स्वयं महालक्ष्मी ही थीं पर काम रुपी मेघ ने उनके ज्ञान रुपी सूर्य को ढक दिया था जिसके कारण नारद मोह माया के इस भेद को समझ नहीं पाए और क्रोधवश भगवान विष्णु को दुर्वचन सुनाने लगे और श्राप देते हुए कहा –
“हे विष्णु, आपने मेरे साथ छल किया है, मुझे वानर का रूप दे दिया और स्वयं उस कन्या का वरण कर लिया।
आपके कारण जिस प्रकार मैं स्त्री के लिए व्याकुल हुआ हूँ उसी प्रकार आप भी मनुष्य रूप में धरती पर जन्म लेंगे और स्त्री वियोग का दुःख प्राप्त करेंगे।”
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