सचेतन- 3: चिंतन और संशय निवारण चेतना का मार्ग खोलती है

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सचेतन- 3: चिंतन और संशय निवारण चेतना का मार्ग खोलती है

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चेतना को जानने के तीन मार्ग

  1. श्रवण (Shravanam)
    – गुरु से वेद, उपनिषद और शास्त्रों के उपदेश को श्रद्धा से सुनना।
  2. मनन (Mananam)
    – सुने हुए ज्ञान पर गहराई से विचार करना, संदेहों को दूर करना।
  3. निदिध्यासन (Nididhyasanam)
    – ध्यान और साधना द्वारा उस ज्ञान को आत्मसात करना और ब्रह्म का प्रत्यक्ष अनुभव करना।

मनन (Mananam) – “चिंतन और संशय निवारण”

परिभाषा:
श्रवण से प्राप्त ज्ञान पर गहराई से विचार करना और उसमें उत्पन्न संदेहों को दूर करना – यही मनन है।

महत्व:

  • मनन से ज्ञान मजबूत होता है।
  • यह भावात्मक और तार्किक दोनों स्तर पर होता है।
  • जब तक हम स्वयं नहीं सोचते, तब तक वह ज्ञान केवल सूचना रहता है, अनुभूति नहीं बनता।

कैसे करें:

  • जो सुना, उस पर बार-बार विचार करें।
  • स्वयं से प्रश्न पूछें: “मैं कौन हूँ?”, “क्या आत्मा और ब्रह्म एक हैं?”, “मुझे इसका क्या अनुभव है?”
  • तर्क और अनुभव के सहारे समाधान खोजें।

 यथा याज्ञवल्क्य और गार्गी के बीच संवाद में, गार्गी ने बार-बार प्रश्न पूछे। यह मनन का उदाहरण है – सत्य तक पहुँचने का तार्किक मार्ग।

🌼 कहानी: गार्गी का मनन – तर्क से सत्य की खोज

विधान सभा सजी हुई थी। जनक राजा ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया था और उसमें देश के सभी ज्ञानी ऋषि, मुनि और पंडितों को आमंत्रित किया गया था।
वहाँ एक अद्वितीय वाणी सुनाई दी — एक स्त्री की। नाम था गार्गी — अत्यंत बुद्धिमती, वैदिक ज्ञान की प्रकांड विदुषी।

सभा में जब याज्ञवल्क्य मुनि खड़े हुए, तो उन्होंने कहा:
“मैं ब्रह्मा-विद्या का ज्ञाता हूँ। जो चाहें मुझसे प्रश्न पूछ सकते हैं।”

तब गार्गी ने उठकर साहसपूर्वक कहा:
“हे याज्ञवल्क्य! यदि आप ब्रह्म को जानते हैं, तो मेरे प्रश्नों का उत्तर दीजिए।”

और फिर शुरू हुआ प्रश्नों का सिलसिला…

  • “यह पृथ्वी किस पर टिकी है?”
  • “आकाश किस पर टिका है?”
  • “वह धागा कौन सा है जिससे यह सम्पूर्ण सृष्टि बँधी है?”
  • “उस अंतिम तत्व की प्रकृति क्या है — जो न दिखाई देता है, न पकड़ा जा सकता है?”

याज्ञवल्क्य उत्तर देते गए, गार्गी तर्क करती रहीं।

यह कोई बहस नहीं थी — यह थी सत्य तक पहुँचने की विवेकपूर्ण यात्रा।

गार्गी केवल सुन नहीं रही थीं, वे सोच रही थीं, तौल रही थीं, फिर पूछ रही थीं।
यह था मननम् – गहराई से विचार करना, तर्क करना, और तब सत्य को स्वीकार करना।

आख़िरकार, जब याज्ञवल्क्य ने कहा:
“ओ गार्गी, इससे आगे मत पूछो — नहीं तो तुम्हारा मस्तिष्क फट जाएगा, क्योंकि यह विषय अत्यंत गूढ़ है।”
तो गार्गी मुस्कराईं — क्योंकि वह जान गई थीं कि सत्य का अनुभव बुद्धि से आगे का विषय है।

🌟 सीख:

गार्गी की जिज्ञासा, उनका तर्क, और विचारशील संवाद — यह दिखाता है कि मनन केवल विश्वास नहीं, सोचने और समझने की शक्ति है।
श्रवण से जो ज्ञान आता है, उसे जब हम अपने विवेक और अनुभव से पकाते हैं — तभी वह मनन कहलाता है।

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