सचेतन- 03 महापुरुषों का संग – आत्मज्ञान की सीढ़ी
महापुरुषों का संग।
अगर हमें जीवन का सत्य जानना है, तो हमें किसी ज्ञानी गुरु के पास जाना होगा, जिससे हम यह अनुभव कर सकें कि — हम ब्रह्म हैं, हम वही चेतना हैं जो सब में व्याप्त है।
गुरु की कृपा से ही अज्ञान मिटता है।
महापुरुषों का संग – आत्मज्ञान की सीढ़ी
अगर हमें इस जीवन का सत्य जानना है,
अगर हम यह समझना चाहते हैं कि
“मैं कौन हूँ?” — तो अकेले किताबें पढ़ने या तर्क-वितर्क करने से वह नहीं मिलेगा।
हमें चाहिए —
एक ज्ञानी महापुरुष का संग,
एक सच्चे गुरु का मार्गदर्शन।
गुरु ही वह दीपक हैं
जो अज्ञान के अंधकार को चीरकर
हमारे भीतर का प्रकाश दिखाते हैं।
उपनिषदों में कहा गया है:
“तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत्… श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम्”
— आत्मज्ञान के लिए ऐसे गुरु के पास जाओ जो शास्त्र जानता हो और ब्रह्म में स्थित हो।
🌱 गुरु क्यों आवश्यक हैं?
- क्योंकि अज्ञान हमारा सबसे गहरा पर्दा है।
- क्योंकि हम अपनी ही सोच में उलझे रहते हैं।
- क्योंकि सत्य केवल “समझा” नहीं, अनुभव किया जाता है।
- और वह अनुभव तब होता है जब
गुरु कृपा से हमारी दृष्टि भीतर की ओर जाती है।
गुरु का संग कैसा होता है?
- वह शब्दों से नहीं, मौन से सिखाते हैं।
- वह तुम्हारे भीतर छिपे हुए ब्रह्म को जगाते हैं।
- वह कहते हैं —
“तुम वही हो, जिसकी तुम तलाश कर रहे हो।”
महापुरुषों का संग कोई बाहरी साधन नहीं,
बल्कि आत्मा का सौभाग्य है।
जैसे बीज को सूरज की किरण चाहिए,
वैसे ही आत्मा को गुरु का प्रकाश चाहिए।
गुरु नहीं मिलते तो जीवन केवल जानकारी में बीतता है,
गुरु मिल जाएँ तो वही जानकारी — अनुभव बन जाती है।
शास्त्र कहते हैं –
“नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यः, न मेधया, न बहुना श्रुतेन…”
अर्थात आत्मा न भाषण से मिलती है, न बहुत सुनने से, न बुद्धि की चतुराई से।
वह मिलती है — श्रद्धा, भक्ति और समर्पण से।
तो आइए, इस जीवन को केवल जीने के लिए नहीं, बल्कि जागने के लिए प्रयोग करें।
हर सुबह, हर सांस, हर क्षण — एक अवसर है अपने भीतर उस सत्य को पहचानने का जिसे हम भगवान, ब्रह्म, आत्मा या परमानन्द कहते हैं।
आपसे यही निवेदन है:
• अपने जीवन के उद्देश्य पर विचार करें,
• अपने भीतर की शक्ति को पहचानें,
• और जहाँ भी सत्संग, ज्ञान या प्रेम मिले — वहां रुके बिना जुड़ जाएँ।