सचेतन :56 श्री शिव पुराण- रूद्र संहिता: नारद जी भी मोह माया के चुम्बकीय आकर्षण में फंस गए थे
सचेतन :56 श्री शिव पुराण- रूद्र संहिता: नारद जी भी मोह माया के चुम्बकीय आकर्षण में फंस गए थे
#RudraSamhita
सूतजी कहते हैं कि जो नारद मुनि पर कामदेव का कोई प्रभाव नहीं पड़ा उसका कारण ये था की उसी स्थान पर एक समय भगवान शिव ने तपस्या की थी और कामदेव को अपने तीसरे नेत्र से भस्म कर दिया था।
नारद मुनि के मन में काम विजय का अहंकार उपज गया की मैं कामदेव पर विजय प्राप्त कर चुका हूँ।
कुछ समय बीतने पर जब नारद मुनि की साधना पूर्ण हुई तब उनके मन में कामदेव पर विजय पाने का गर्व हो गया और वे इस वृतांत को भगवान शिव को सुनाने कैलाश पहुँचे और कामदेव पर विजय पाने का सारा वृतांत भगवान शंकर को सुनाया।
ये सुनकर भक्तवत्सल भगवान शिव जो नारद के कामदेव पर विजय का कारण जानते थे कहा –“हे नारद, तुम मुझे अत्यंत प्रिय हो इसलिए तुम्हें ये शिक्षा दे रहा हूँ कि इस घटना के विषय में किसी और के पास चर्चा मत करना और इसे गुप्त रखना।”
पर मन में अहंकार हो जाने के कारण नारद मुनि ने भगवान शिव के परामर्श को नहीं माना और ब्रह्मलोक पहुँचे, वहां पहुँचकर उन्होंने ब्रह्मा जी की स्तुति करके उनसे भी इस घटना की चर्चा की।
नारद मुनि ने सोचा की उनके द्वारा काम विजय का समाचार सुनकर पिता ब्रह्मा उनकी प्रशंसा करेंगे पर ब्रह्मा जी ने भी भगवान शिव के समान ही नारद से इस विषय को गुप्त रखने को कहा।
निराश होकर नारद मुनि विष्णुलोक पहुँचे, वहाँ नारद मुनि को आए देखकर अंतर्यामी भगवान विष्णु ने नारद मुनि का बहुत प्रकार से स्वागत किया और उन्हें उचित आसन देकर उनके आगमन का कारण पुछा।
तब नारद मुनि ने भगवान विष्णु को अपने काम विजय का सारा वृतांत कह सुनाया। नारद मुनि के अहंकार युक्त वचन सुनकर विष्णु भगवान ने नारद मुनि की बहुत प्रशंसा की।
तब नारद मुनि भगवान विष्णु को प्रणाम करके गर्वित भाव से वहाँ से चल दिए।
भगवान विष्णु द्वारा माया सृष्टि की रचना
भगवान विष्णु अपने भक्तों की हर प्रकार से रक्षा करते हैं, अहंकार पतन के द्वार खोल देता है इसलिए अपने परम भक्त नारद के कल्याण के उद्देश्य से भगवान विष्णु ने एक माया रची।
उन्होंने नारद मुनि के मार्ग में एक विशाल नगरी की रचना की जो हर प्रकार से सुन्दर, सुशोभित और रमणीक था।
जब नारद मुनि वहाँ पहुँचे तो देखा की वहाँ के राजा ने अपनी पुत्री के विवाह के लिए स्वयंवर का आयोजन किया है जिसमें बहुत से राजा और राजकुमार पहुँचे हैं।
तब नारद मुनि उस राजा के महल में पहुँचे, नारद मुनि को देखकर राजा ने उनको सिंघासन पर बिठाया और उनकी हर प्रकार से सेवा सत्कार की।
इसके बाद राजा ने अपनी पुत्री को बुलाया और नारद मुनि से कहा की हे मुनि विशारद, आप तो ज्योतिष के महाज्ञानी हैं मैंने अपनी पुत्री के विवाह के लिए स्वयंवर का आयोजन किया है कृपया इसका भाग्य बताइये, इसे कैसा वर मिलेगा आदि आदि।
जब नारद मुनि ने उस परम सुंदरी राजकुमारी का भाग्य देखा तो चकित हो गए। सब प्रकार के सुन्दर लक्षणों से संपन्न उस राजकन्या को देखकर नारद मुनि ने कहा –
“हे राजन, आपकी कन्या समस्त शुभ लक्षणों से युक्त, परम सौभाग्यशालिनी और साक्षात लक्ष्मी के समान ही है। जो भी इस कन्या से विवाह करेगा वो चक्रवर्ती सम्राट बनेगा। देवता और असुर भी उसे पराजित नहीं कर पाएंगे।”
ऐसा कहकर नारद मुनि राजा से विदा लेकर वहाँ से चल दिए और मन ही मन उस कन्या से स्वयं विवाह करने की इक्षा करने लगे।
इस प्रकार तत्वज्ञानी नारद मोह माया के चुम्बकीय आकर्षण में फंस गए।
भगवान विष्णु द्वारा नारद मुनि को वानर रूप देना
समस्त नारीयों को सौन्दर्य सर्वथा प्रिय होता है और इस संसार में भगवान विष्णु से सुन्दर कौन है ऐसा सोचकर नारद मुनि विष्णुलोक पहुँचे।
उनको आया देखकर भगवान विष्णु अपनी ही माया से मोहित नारद मुनि से उनके आने का कारण पुछा। तब नारद मुनि ने भगवान विष्णु से सारा वृत्तांत सुनाया और कहा –
“हे नाथ, मुझे अपने ही समान सुन्दर रूप दें जिससे वह कन्या स्वयंवर में मेरा ही वरण करे।”
ये सुनकर भगवान मंद मंद मुस्काने लगे और कहा – “हे मुनिराज, जिसमें भी तुम्हारा भला हो मैं वही काम करूँगा तुम उस स्थान को जाओ।”