सचेतन :87 श्री शिव पुराण- अर्धनारीश्वर रहस्य
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हमने बात किया था की कामवासना भी एक उपासना, साधना है। काम, जीवन के चार पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) में से एक है। पुरुष का तात्पर्य विवेक संपन्न मनुष्य से है अर्थात विवेक शील मनुष्यों के लक्ष्यों की प्राप्ति ही पुरुषार्थ है।
वैदिक दर्शन के अनुसार काम सृष्टि के पूर्व में जो एक अविभक्त तत्व था। सृष्टि के आरंभ में प्रजापति अकेले थे।
विश्वरचना के लिए भी दो विरोधी भाव चाहिए। विरोध के बाद हमारे मन में परिकल्पना और किसी उद्देश्य का उद्गम होता है। फिर जब आप उस उद्देश्य की पूर्ति हेतु काम करते हैं तो उससे आनंद का अनुभव होता है।
प्रत्येक प्राणी के भीतर रागात्मक प्रवृत्ति की संज्ञा काम है। रागात्मक प्रवृत्ति के लिए शक्ति और शिव दोनों अभिभाज्य ट्र्ह से मौजूद होना चाहिए। राग यानी प्रेम उत्पन्न करने या बढ़ाने वाला प्रेममय प्रीतिवर्धक।
शिव नर के द्योतक हैं तो शक्ति नारी की। वे एक दुसरे के पूरक हैं। शिव के बिना शक्ति का अथवा शक्ति के बिना शिव का कोई अस्तित्व ही नहीं है। शिव अकर्ता हैं। वो संकल्प मात्र करते हैं; शक्ति संकल्प सिद्धी करती हैं।
शिव कारण हैं तो शक्ति कारक है
शिव संकल्प करते हैं; शक्ति संकल्प सिद्धी।
शक्ति जागृत अवस्था हैं तो शिव सुसुप्तावस्था है।
शक्ति मस्तिष्क हैं तो शिव हृदय है
शिव ब्रह्मा हैं तो शक्ति सरस्वती है
शिव विष्णु हैं तो शक्त्ति लक्ष्मी है
शिव महादेव हैं तो शक्ति पार्वती है
शिव रुद्र हैं तो शक्ति महाकाली है
शिव सागर के जल सामन हैं तो शक्ति सागर की लहर हैं।
शिव सागर के जल के सामान हैं तथा शक्ति लहरों के सामान हैं। लहर है जल का वेग। जल के बिना लहर का क्या अस्तित्व है? और वेग बिना सागर अथवा उसके जल का? यही है शिव एवं उनकी शक्ति का संबंध।
अर्धनारीश्वर ब्रह्मांड ( पुरुष और प्रकृति ) की पुलिंग और स्त्री ऊर्जा के संश्लेषण का प्रतिनिधित्व करता है और दिखाता है कि कैसे शक्ति, भगवान का स्त्री सिद्धांत, भगवान के पुरुष सिद्धांत शिव से (या कुछ व्याख्याओं के अनुसार) अविभाज्य है। इन सिद्धांतों के मिलन को सारी सृष्टि के मूल और गर्भ के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। एक अन्य दृष्टिकोण यह है कि अर्धनारीश्वर शिव के सर्वव्यापी स्वभाव का प्रतीक है।