सचेतन- 34 तैत्तिरीय उपनिषद् आत्मसंयम और ब्रह्मा
विषय: आत्मसंयम — भीतर की शक्ति
नमस्कार दोस्तों!
आप सुन रहे हैं “सचेतन यात्रा” — जहाँ हम उपनिषदों की गहराई से जीवन के सरल सत्य खोजते हैं।
आज का विषय है — “आत्मसंयम — भीतर की शक्ति।”
क्या आपने कभी सोचा है कि हमारी ज़िंदगी की सबसे बड़ी लड़ाई कहाँ होती है?
कहीं बाहर नहीं… बल्कि अपने ही भीतर।
हमारा मन, हमारी इच्छाएँ, हमारी भावनाएँ — यही असली रणभूमि हैं।
और इस युद्ध को जीतने का नाम है आत्मसंयम।
तैत्तिरीय उपनिषद् कहता है —
“तपसा ब्रह्म विजिज्ञासस्व।”
अर्थात् — तप या आत्मसंयम से ही ब्रह्म को जाना जा सकता है।
अब यहाँ “तप” का मतलब केवल उपवास या कठोर साधना नहीं है।
बल्कि इसका अर्थ है —
अपने विचारों, शब्दों और कर्मों को सही दिशा देना।
उदाहरण:
जैसे अगर हमें गुस्सा आता है, तो उसे दबाना आत्मसंयम नहीं है।
बल्कि यह समझना कि गुस्सा क्यों आया, और उसे सही तरीके से व्यक्त करना — यही असली संयम है।
संयम का मतलब है —
“अपने मन को गुलाम नहीं, मित्र बनाना।”
जब हम अपनी इच्छाओं को दिशा देते हैं, तो ऊर्जा बिखरती नहीं, बल्कि केंद्रित होती है।
यही केंद्रित ऊर्जा हमें स्थिरता देती है, शांति देती है, और विवेक भी।
आपने देखा होगा —
जो व्यक्ति आत्मसंयमी होता है, उसकी आँखों में गुस्सा नहीं, बल्कि स्पष्टता होती है।
उसका चेहरा शांत रहता है, क्योंकि उसका मन शांत होता है।
उपनिषद् कहता है —
“सत्यं तपः, तपः सत्यं।”
यानि सत्य ही तप है, और तप ही सत्य है।
जब सत्य और संयम साथ चलते हैं,
तो जीवन में प्रकाश फैलता है।
मन में शुद्धि आती है, और आत्मा में आनंद प्रकट होता है।
आत्मसंयम कोई बाहर से लाया हुआ नियम नहीं है,
यह हमारी अपनी भीतर की यात्रा है।
हम जब हर दिन थोड़ी देर अपने मन को देखते हैं —
अपनी सोच, अपनी प्रतिक्रियाओं को समझते हैं —
तो धीरे-धीरे हमारा संयम बढ़ता है।
संयम का मतलब खुद को रोकना नहीं,
बल्कि खुद को सही दिशा में ले जाना है।
तो दोस्तों, आज से एक छोटा प्रयोग कीजिए —
जब कोई बात आपको परेशान करे,
तो तुरंत प्रतिक्रिया देने से पहले बस एक साँस लें।
एक गहरी साँस।
वो एक पल ही आपका आत्मसंयम है।
धीरे-धीरे वही एक पल आपकी सबसे बड़ी ताकत बन जाएगा।
यही भीतर की शांति है, यही भीतर की शक्ति है।
जाने से पहले उपनिषद् की यह पंक्ति याद रखिए —
“तपसा ब्रह्म विजिज्ञासस्व।”
तप से, संयम से ही सत्य का अनुभव होता है।
सत्य और संयम —
जब दोनों साथ हों,
तो जीवन आनंदमय बन जाता है। 🌿धन्यवाद!
फिर मिलेंगे “सचेतन यात्रा” के अगले एपिसोड में —
जहाँ हम मन की गहराइयों में उतरेंगे, और जीवन के सत्य को समझेंगे।
