सचेतन- 35 तैत्तिरीय उपनिषद् आत्मसंयम और ब्रह्मा

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सचेतन- 35 तैत्तिरीय उपनिषद् आत्मसंयम और ब्रह्मा

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विषय: ब्रह्म ही आनंद है

 नमस्कार मित्रों,
आप सुन रहे हैं “सचेतन यात्रा”
जहाँ हम उपनिषदों की वाणी से जीवन का सार खोजते हैं।

आज हम बात करेंगे तैत्तिरीय उपनिषद् की एक अद्भुत वाणी की —
“आनंदो ब्रह्मेति व्यजानात्।”
अर्थात् — आनंद ही ब्रह्म है।

हम सब जीवन में आनंद चाहते हैं —
कभी वस्तुओं में, कभी लोगों में, कभी उपलब्धियों में।
पर क्या आपने देखा है,
यह आनंद टिकता नहीं?
एक क्षण खुशी मिलती है,
फिर मन कुछ और चाहता है।

उपनिषद् कहता है —
जिस आनंद की तलाश तुम बाहर कर रहे हो,
वह वास्तव में तुम्हारे भीतर ही है।

 ब्रह्म — यानी परम सत्य,
कोई बाहर की वस्तु नहीं,
बल्कि हमारा ही शुद्ध, चैतन्य और आनंदस्वरूप अस्तित्व है।

बल्कि वही स्वयं हमारा सच्चा स्वरूप है —

शुद्ध (अविकार),

चैतन्य (साक्षी-भाव में जाग्रत),

और आनंदस्वरूप (नित्य, पूर्ण, संतोषदायक)।

जब मन शांत होता है,
इच्छाएँ मिट जाती हैं,
और आत्मा अपनी असली अवस्था में रहती है —
तभी सच्चा आनंद प्रकट होता है।

यह आनंद आँखों से देखा नहीं जा सकता,
कानों से सुना नहीं जा सकता,
पर भीतर महसूस किया जा सकता है —
जैसे कोई धीमी लौ जो हमेशा जल रही हो।

 यह आनंद इंद्रियों का सुख नहीं है।
इंद्रिय-सुख तो आता-जाता है,
पर यह आनंद — न घटता है, न बढ़ता है,
न किसी कारण से आता है, न खोता है।

यह आत्मा का स्वभाव है —
जैसे सूर्य का प्रकाश,
या सागर की गहराई —
हमेशा मौजूद, स्थायी, अडोल।

 उपनिषद् कहता है —
जब साधक जान लेता है कि —
“मैं ही वह आनंद हूँ, जो सबमें व्याप्त है,”
तो उसके भीतर न कुछ पाने की चाह रहती है,
न कुछ खोने का भय।

ऐसा व्यक्ति हर पल में पूर्ण होता है,
शांत होता है,
और संसार में रहकर भी उससे परे होता है।

यही अवस्था है — ब्रह्मानंद
जहाँ “मैं” और “मेरा” समाप्त हो जाते हैं,
और बस आनंद ही शेष रह जाता है।

 मित्रों,
उपनिषद् के तीन चरण याद रखिए —
सत्य, संयम और आनंद।
सत्य से जीवन में प्रकाश आता है,
संयम से स्थिरता,
और आनंद से पूर्णता।

ये तीनों मिलकर हमें भीतर से मुक्त करते हैं।
और जब हम भीतर से मुक्त होते हैं,
तभी सच्चा सुख मिलता है।

 याद रखिए —
“सुख बाहर से नहीं, भीतर से आता है।”
बाहर की वस्तुएँ बदलती रहती हैं,
पर भीतर का आनंद — सदा एक सा, शाश्वत रहता है।

तो आइए,
आज एक पल रुकें,
गहरी साँस लें,
और अपने भीतर झाँकें —
वहीं कहीं एक शांति है, एक प्रकाश है,
जो कह रहा है —
“मैं ही आनंद हूँ।”

 इसी के साथ, आज की सचेतन यात्रा यहीं समाप्त होती है।
अगले एपिसोड में हम फिर मिलेंगे
उपनिषदों की किसी और वाणी के साथ —
जो हमें भीतर की ओर ले जाए।तब तक याद रखिए —
सत्य जिएँ, संयम साधें, और आनंद में स्थित रहें —
क्योंकि ब्रह्म ही आनंद है।

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