सचेतन- 46 वेदांत सूत्र: 🌼 “आत्म-साक्षात्कार का मार्ग और षट्सम्पत्ति की तैयारी”
सचेतन सुनने वाले सभी साथियों को मेरा प्रणाम।
आज हम बात करेंगे—आत्म-साक्षात्कार, यानी अपने असली स्वरूप को पहचानने की यात्रा के बारे में।वेदांत इसे मानव जीवन की सबसे सुंदर और सबसे सच्ची खोज कहता है।
हम सब अपने जीवन में बहुत कुछ खोजते हैं—सुख, शांति, सफलता, मान-सम्मान…
लेकिन धीरे-धीरे एक सवाल भीतर उठता है—
“मैं सच में कौन हूँ?”
यही सवाल हमें आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाता है।
पहला चरण — विवेक: क्या स्थायी, क्या अस्थायी?
यात्रा की शुरुआत होती है विवेक से।
यह वह क्षमता है, जिससे हम पहचानते हैं कि—
- शरीर बदलता रहता है
- मन और भावनाएँ बदलती रहती हैं
- परिस्थितियाँ भी बदलती रहती हैं
लेकिन एक चीज़ नहीं बदलती—
हमारे भीतर की चेतना, आत्मा।
जब यह समझ भीतर उतरने लगती है कि
“जो बदलता है, वह मैं नहीं; जो नहीं बदलता, वही मेरा सत्य है”—
तब मन अपनी उलझनों से बाहर आने लगता है।
दूसरा चरण — वैराग्य: पीछे भागना छोड़ देना
वैराग्य का अर्थ वस्तुओं को छोड़ देना नहीं है।
बल्कि उनके पीछे भागने की आदत से मुक्त होना।
यानी—
चीजें जीवन में रहें तो अच्छा,
न रहें तो भी मन परेशान न हो।
जब मन को समझ आ जाता है कि बाहरी वस्तुएँ हमें स्थायी सुख नहीं देतीं,
तब वह भीतर की शांति की ओर मुड़ने लगता है।
यही वैराग्य है।
तीसरा चरण — षट्सम्पत्ति: मन और इंद्रियों की तैयारी
वेदांत कहता है—
“मन तैयार हो जाए, तो सत्य का अनुभव सहज हो जाता है।”
इस तैयारी के लिए छह गुण बताए गए हैं, जिन्हें षट्सम्पत्ति कहते हैं।
1️⃣ शम — मन की शांति
इधर-उधर भागते हुए मन को शांत करना।
जैसे पानी शांत हो जाए तो प्रतिबिंब साफ दिखता है।
2️⃣ दम — इंद्रियों पर नियंत्रण
आँखें, कान, जिह्वा, सब हमें खींचते हैं।
दम का अर्थ है—
“मैं अपने मन और इंद्रियों का स्वामी बनूँ।”
3️⃣ उपरति — अनावश्यक चीजों से दूरी
यह भागना नहीं,
बल्कि स्वाभाविक रूप से फालतू झंझटों से दूर होना है।
अपने कर्तव्य करते हुए सरल जीवन जीना।
4️⃣ तितिक्षा — सहनशीलता
सुख-दुख, गर्म-ठंड, मान-अपमान…
जीवन के द्वंद्व को शांति से सहना।
परिस्थितियाँ बदलें, पर मन शांत रहे।
5️⃣ श्रद्धा — विश्वास
गुरु, शास्त्र और सत्य पर भरोसा।
श्रद्धा रास्ता रोशन करती है।
6️⃣ समाधान — मन की स्थिरता
मन एक जगह टिक पाए—
यही समाधान है।
इसी से ध्यान गहरा होता है।
ये छह गुण मन को ऐसा बना देते हैं कि वह ज्ञान के लिए तैयार हो जाए।
चौथा चरण — मुमुक्षुता: मुक्ति की चाह
जब भीतर यह तीव्र पुकार उठती है—
“मुझे सत्य जानना है… मुझे मुक्त होना है…”
तो यही इच्छा पूरी यात्रा का ईंधन बनती है।
यही मुमुक्षुता है।
पाँचवाँ चरण — श्रवण, मनन और निदिध्यासन
🔹 श्रवण (सुनना)
गुरु और शास्त्रों से आत्मा के ज्ञान को श्रद्धा से सुनना।
यह बीज बोने जैसा है।
🔹 मनन (सोचना)
उस ज्ञान पर गहराई से विचार करना।
शंकाएँ मिटाना।
यह बीज को अंकुर बनाता है।
🔹 निदिध्यासन (ध्यान में उतरना)
ज्ञान को अपने अनुभव में बदलना।
बार-बार मन को उसी सत्य पर स्थिर करना—
“मैं चेतना हूँ, शरीर-मन नहीं।”
धीरे-धीरे अहंकार घुलने लगता है।
मन शांत होता है।
भीतर का प्रकाश बढ़ता है।
अंतिम चरण — आत्म-साक्षात्कार (Self-Realization)
और अंत में वह क्षण आता है—
जब मन बिल्कुल शांत हो जाता है…
जब विचार रुक जाते हैं…
जब भीतर गहरा प्रकाश प्रकट होता है…
और अनुभव होता है—
“अहं ब्रह्मास्मि — मैं वही चेतना हूँ।”
इसमें कोई ‘दूसरा’ नहीं रहता।
डर नहीं रहता।
दुख नहीं छूता।
भीतर अनंत शांति और आनंद होता है—
जिसे वेदांत ब्रह्मानंद कहता है।
आत्म-साक्षात्कार कोई दूर की यात्रा नहीं है।
यह अपने भीतर उसी सत्य को पहचानने की यात्रा है
जो हमेशा से हमारे साथ है—
शांत, अचल, आनंदस्वरूप चेतना।विवेक, वैराग्य, षट्सम्पत्ति और ध्यान—
ये चार सीढ़ियाँ हमें धीरे-धीरे उस सत्य तक ले जाती हैं।
