सचेतन- 48 वेदांत सूत्र: “दम: इंद्रियों का स्वामी बनने की कला”

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सचेतन- 48 वेदांत सूत्र: “दम: इंद्रियों का स्वामी बनने की कला”

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नमस्कार साथियो,
आज हम बात करेंगे षट्सम्पत्ति के दूसरे सुंदर गुण—
दम (Dama) के बारे में।
दम का साधारण अर्थ है—
इंद्रियों पर नियंत्रण,
पर वेदांत में इसका मतलब इससे कहीं गहरा है।

इंद्रियाँ हमें कहाँ खींचकर ले जाती हैं?

हमारी पाँच ज्ञानेंद्रियाँ—आँखें, कान, नाक, जीभ और त्वचा—
हर पल हमें दुनिया की ओर खींचती रहती हैं।

● कोई स्वादिष्ट चीज़ दिखे तो जीभ बोलती है—“चलो खाएँ।”
● कोई आवाज़ सुनाई दे तो कान कहता है—“जरा सुनो क्या हो रहा है।”
● सोशल मीडिया पर एक नया नोटिफिकेशन आए… और उधर मन भाग जाता है।

इसीलिए वेदांत कहता है—
इंद्रियाँ छोटी हैं, पर उनका असर बहुत बड़ा है।
वे मन को पकड़कर बाहर की दुनिया की तरफ दौड़ाने लगती हैं।

दम का असली अर्थ — नियंत्रण, दमन नहीं

दम का मतलब यह नहीं कि इंद्रियों को दबा दिया जाए।
न यह कि स्वादिष्ट भोजन कभी न खाओ,
न यह कि सुंदर चीजें मत देखो।

दम का अर्थ है—
“मैं अपने मन और इंद्रियों का स्वामी बनूँ,
वे मेरे पीछे नहीं भागें—मैं उन्हें सही दिशा दूँ।”

इंद्रियाँ घोड़े की तरह हैं,
और मन उस गाड़ी का सारथी।
अगर लगाम आपके हाथ में है—
यात्रा सुंदर है।
अगर लगाम घोड़े के हाथ में है—
यात्रा दुर्घटना बन जाती है।

दम का सार यही है—
“लगाम अपने हाथ में रखो।”

एक छोटा उदाहरण — मिठाई की प्लेट

मान लीजिए आपके सामने मिठाई रखी है।
आपको वह पसंद भी है।
मन कहता है—“खा लो…एक बार से क्या होगा?”
आप खाते हैं—अच्छा लगता है।
मन कहता है—“एक और खा लो…”
आप फिर खाते हैं।
तीसरी बार—फिर…
और कुछ देर बाद भारीपन, ग्लानि, और असंतुलन महसूस होता है।

अब यही स्थिति दम के साथ देखें—
आपके सामने मिठाई है।
आप मुस्कुरा कर कहते हैं—
“मुझे अच्छा लगता है, पर मैं अपना स्वामी हूँ,
इच्छाओं का गुलाम नहीं।”
आप एक मिठाई लेते हैं और फिर रोक पाते हैं।
यही दम है—
इच्छा को संभालना, न कि इच्छा द्वारा संभाले जाना।

दम कैसे विकसित होता है?

दम किसी कठोर अनुशासन से नहीं आता।
यह धीरे-धीरे, छोटे-छोटे अभ्यासों से आता है।

1️⃣ रुककर सोचना

जब इंद्रियाँ आपको खींचें—
बस 5 सेकंड रुककर पूछें:
“क्या यह मेरे लिए सही है?
क्या यह मुझे मेरी शांति के करीब ले जाएगा?”
यह छोटा ठहराव ही नियंत्रण की शुरुआत है।

2️⃣ सीमाएँ तय करना

स्वयं से छोटे व्रत लें:
“आज 20 मिनट ही सोशल मीडिया।”
“आज चाय सिर्फ एक बार।”
सीमा ही नियंत्रण का आधार बनती है।

3️⃣ विकल्प देना

इंद्रियों को दमन की जगह विकल्प दें:
मीठे की जगह फल।
गुस्से की जगह एक गहरी साँस।
शोर की जगह थोड़ी शांति।
मन को विकल्प पसंद आते हैं।

4️⃣ जागरूकता

जैसे ही आप सचेत होते हैं—
इंद्रियाँ अपना असर खो देती हैं।
जागरूकता = शक्ति।

दम का फल — आजादी

दम हमें बाँधता नहीं,
बल्कि हमें स्वतंत्र बनाता है।

● cravings हमें नहीं चलाती
● भावनाएँ हमें नहीं उछालती
● बाहरी वस्तुएँ हमें नहीं हिलाती

हम अपने आप के मालिक बन जाते हैं।
और यही स्वतंत्रता आगे चलकर
ध्यान, शांति और आत्म-साक्षात्कार का आधार बनती है।

वेदांत कहता है—
जब इंद्रियाँ शांत होती हैं,
तभी मन भीतर के सत्य को सुन पाता है।

दम का अभ्यास कठिन नहीं—
बस सजगता चाहिए।

आज से एक मंत्र अपनाएँ—
“इंद्रियाँ मेरी दासी हैं… मैं उनका स्वामी हूँ।”देखिए…
कैसे धीरे-धीरे आपका मन
मजबूत, शांत और उज्ज्वल होने लगता है।

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