सचेतन- 49 वेदांत सूत्र: “उपरति: अनावश्यक चीज़ों से दूर होकर, अपना काम शांति से करना”
षट्संपत्ति को छः खजाने भी कहा जाता है—
ये साधना को स्थिर करने की ताकत देते हैं:
- शम – मन को शांति में रखना
- दम – इंद्रियों को नियंत्रण में रखना
- उपरति – अपना कर्तव्य शांति से करना, बाहरी भटकाव से दूर रहना
- तितिक्षा – सुख-दुःख, गर्म-ठंड को धैर्य से सहना
- श्रद्धा – गुरु, शास्त्र और आत्म-मार्ग पर पूर्ण विश्वास
- समाधान – मन को एक लक्ष्य पर स्थिर कर देना
ये छह गुण साधक को भीतर से मजबूत बनाते हैं। (और यह गुण बचपन से बड़े होने तक कैसे बदलता है)
नमस्कार साथियो,
आज हम षट्संपत्ति के तीसरे गुण—
उपरति (Uparati) की बात करेंगे।
उपरति का अर्थ है—
अनावश्यक चीज़ों से स्वाभाविक दूरी,
और अपने कर्तव्य को शांति से निभाना।
उपरति कोई त्याग नहीं,
कोई कठोर नियम नहीं,
न ही दुनिया छोड़ने की बात।
उपरति है—
जीवन को सरल बनाना।
भीड़भाड़, शोर और फालतू झंझटों से धीरे-धीरे दूर होना।
उपरति क्या है? — रोज़मर्रा की सबसे सरल भाषा में
सुबह उठते ही मोबाइल की खनक,
न्यूज़ की बहसें,
सोशल मीडिया की तुलना,
दफ़्तर की हड़बड़ाहट—
ये सब मिलकर हमारे मन को हर दिशा में खींचने लगते हैं।
उपरति कहती है—
“जो जरूरी नहीं, उसे मत उठाओ।
तुम्हारा मन अनमोल है।”
उपरति यह नहीं कहती कि भागो।
वह कहती है—
करो वही, जो सच में जरूरी है…
और उसे शांति से करो।
उपरति: उलझे बिना काम करने की कला
बहुत बार हम हर छोटी बात पर चिढ़ जाते हैं—
किसी की हॉर्न,
किसी की आइडिया,
किसी का कमेंट…
और उतनी ही बार हम देखते हैं कि कोई दूसरा व्यक्ति
उसी हालात में शांत रहता है।
यही फर्क है—
वह काम करता है, पर उलझता नहीं।
जैसे कमल का फूल—
पानी में है,
लेकिन पानी उसे गंदा नहीं कर पाता।
उपरति और हमारा रोज़मर्रा का जीवन
उपरति हमें सिखाती है:
1️⃣ फालतू बहस से बचना
हर मुद्दा हमारे जवाब का हकदार नहीं होता।
कई जगह बस “मुस्कुराकर निकल जाना” ही उपरति है।
2️⃣ तुलना से दूरी
दूसरों की लाइफस्टाइल, कमाई, शोहरत—
इनसे मन भारी होता है।
उपरति कहती है—
“अपना काम करो, शांति से।”
3️⃣ कम बोलना, कम सोचना
हर बात पर प्रतिक्रिया देना जरूरी नहीं।
कम बोलने से मन हल्का होता है।
4️⃣ कर्तव्य पर टिके रहना
घर, परिवार, काम—
जो हमारा असली कर्तव्य है,
उसे शांति से करना ही उपरति का सार है।
एक छोटी कहानी
एक व्यक्ति रोज़ ऑफिस जाते समय
हर छोटी बात में चिढ़ जाता था—
किसी की तेज़ हॉर्न,
किसी की रफ्तार,
किसी की बात।
एक दिन उसने खुद से पूछा—
“क्या इससे मेरी मंज़िल बदलती है?”
उसने प्रतिक्रिया देना बंद कर दिया।
अब न हॉर्न परेशान करता, न ट्रैफिक।
काम वही था—
पर मन में उलझनें कम हो गईं।
यह है उपरति—
काम वही,
पर मन शांत।
अब देखें—बच्चे में उपरति कैसे बदलती है?
उपरति सिर्फ दार्शनिक गुण नहीं,
यह हम सबके जीवन में धीरे-धीरे विकसित होती है—
जन्म से लेकर बड़े होने तक।
बचपन — मासूम उपरति
छोटा बच्चा अपने खिलौने में इतना डूब जाता है
कि TV, शोर, बातें—कुछ भी उसे नहीं हिलाता।
यह स्वाभाविक उपरति है—
क्योंकि मन साफ होता है।
स्कूल का समय — सीखने वाली उपरति
मोबाइल, कार्टून, खेल—
यह उम्र मन को पहली बार भटकाती है।
यहीं वह सीखता है—
“पहले होमवर्क, फिर खेल।”
“जरूरी काम पहले।”
यह उपरति का शुरुआती प्रशिक्षण है।
किशोरावस्था — संघर्ष की उपरति
यह सबसे मुश्किल चरण है।
दोस्त, सोशल मीडिया, तुलना—सब मन को खींचते हैं।
यहीं उपरति का असली अभ्यास होता है—
मोबाइल दूर रखकर पढ़ना,
बहस से बचना,
व्यस्तता में सही चुनना।
युवावस्था — जागरूक उपरति
अब व्यक्ति सीखता है—
किसे “हाँ” कहनी है
और किसे “ना”।
समय और ऊर्जा की कीमत अब समझ आती है।
जीवन को सरल रखना ही शक्ति बनता है।
उपरति का सार यही है—
जिसका महत्व नहीं, उसे छोड़ो…
जो जरूरी है, उसे शांति से करो।
यह गुण बचपन की मासूम एकाग्रता से शुरू होता है,
किशोर उम्र में संघर्ष बनता है,
और युवावस्था में गहरी परिपक्वता का रूप ले लेता है।उपरति मन को “अनावश्यक” से मुक्त करती है
ताकि “आवश्यक” खिल सके।
