सचेतन- 04: आत्मबोध की यात्रा – “मैं सीमित नहीं हूँ— यह सिर्फ़ भ्रम है”
“क्या आपको कभी ऐसा लगता है…
कि मैं कमज़ोर हूँ, मैं अकेला हूँ, मैं अधूरा हूँ?
जैसे जीवन में कुछ ‘कम’ पड़ रहा हो…
जैसे मैं ‘सीमित’ हूँ…
शंकराचार्य कहते हैं—
यह सच नहीं है।
यह सिर्फ़ अज्ञान का पर्दा है।”
अवच्छिन्न इवाज्ञानात्तन्नाशे सति केवलः।
स्वयं प्रकाशते ह्यात्मा मेघापायेंऽशुमानिव॥४॥
सरल अर्थ
“अज्ञान के कारण आत्मा सीमित-सी लगती है।
जब अज्ञान नष्ट हो जाता है,
तो आत्मा— जो वास्तव में एक है, पूर्ण है—
स्वयं ही प्रकाशित हो जाती है,
जैसे बादल हटने पर सूर्य अपने आप चमक उठता है।”
समस्या कहाँ है?
“दोस्तों, यह श्लोक बहुत गहरी बात कहता है—
हमारा दुख क्या है?
हमारा भय क्या है?
हमारी बेचैनी क्या है?
असल में—
एक भावना: ‘मैं सीमित हूँ।’
- मैं कम हूँ
- मेरे पास पर्याप्त नहीं
- मैं अकेला हूँ
- मैं अधूरा हूँ
- मैं टूट सकता हूँ
शंकराचार्य कहते हैं—
यह ‘सीमित होना’ तथ्य नहीं है…
यह भ्रम है…
और इस भ्रम का कारण है— अज्ञान।”
मोक्ष का मतलब क्या है?
“बहुत लोग सोचते हैं—
मोक्ष मतलब कहीं और पहुँचना,
किसी लोक में जाना,
या कोई अलग अनुभव पाना।
लेकिन वेदांत कहता है—
मोक्ष का अर्थ है—
सीमित होने के भ्रम से मुक्त होना।
समस्या ‘बाहर’ नहीं है,
समस्या ‘मैं’ के भीतर बैठी हुई है—
‘मैं अधूरा हूँ।’
और जब समस्या ‘मैं’ में है,
तो समाधान भी ‘मैं’ में ही होगा।”
सबसे सुंदर उदाहरण: सूर्य और बादल
“अब शंकराचार्य एक अद्भुत उदाहरण देते हैं—
सूर्य हमेशा चमकता है।
उसकी रोशनी कभी कम नहीं होती।
लेकिन जब बादल आ जाते हैं,
तो हमें लगता है—
सूर्य ढक गया,
सूर्य कमज़ोर हो गया,
सूर्य गायब हो गया।
सच क्या है?
सूर्य वही है।
बदलाव सूर्य में नहीं— हमारी दृष्टि में है।
फिर हवा चलती है…
बादल हटते हैं…
और सूर्य ‘फिर’ चमकता दिखाई देता है।
ध्यान दीजिए:
हवा ने सूर्य को चमकाया नहीं।
हवा ने सिर्फ़ बादल हटाए।
ठीक वैसे ही—
ज्ञान हमें ‘नई आत्मा’ नहीं देता।
ज्ञान सिर्फ़ अज्ञान का पर्दा हटाता है।
और आत्मा—
जो पहले भी प्रकाश थी,
वह स्वयं प्रकाशित हो जाती है।”
हमारे जीवन में ‘बादल’ क्या हैं?
“ये बादल क्या हैं?
- ‘मैं शरीर हूँ’
- ‘मैं मन हूँ’
- ‘मैं यह भूमिका हूँ’
- ‘मैं यह सफलता/असफलता हूँ’
- ‘मेरे बिना मैं कुछ नहीं’
- ‘लोगों के बिना मैं अधूरा हूँ’
ये सब ‘बादल’ हैं—
जो आत्मा की रोशनी पर नहीं,
हमारी पहचान पर छा जाते हैं।
जब ये बादल हटते हैं—
तो भीतर एक शांति उतरती है:
मैं हूँ। बस मैं हूँ।
यहीं एक पूर्ण विराम लग जाता है।”
“आज का छोटा अभ्यास:
दिन में किसी भी समय 30 सेकंड रुकें,
और अपने आप से कहें—
- मैं यह शरीर नहीं हूँ— शरीर मेरा है।
- मैं मन नहीं हूँ— मन मेरा है।
- मैं वह हूँ जो सबको देख रहा है— साक्षी।
बस इतना।
यही ‘हवा’ है—
जो धीरे-धीरे ‘बादल’ हटाती है।”
“दोस्तों,
आप अधूरे नहीं हैं।
आप सीमित नहीं हैं।
आपको बस यह भ्रम हुआ है—
जैसे बादलों में सूर्य छिपा हुआ लगता है।
जैसे ही अज्ञान हटता है,
आत्मा अपने आप चमकती है—
स्वयं प्रकाशते आत्मा।Stay Sachetan…
Stay Aware…
Stay in Light.
