सचेतन- 05: आत्मबोध की यात्रा – “ज्ञान शुद्ध करता है… और फिर स्वयं विलीन हो जाता है”
“क्या आपने कभी महसूस किया है—
कि भीतर कुछ धुँधला-सा है?
जैसे मन साफ़ होना चाहता है…
लेकिन कोई परत, कोई मैल, हट नहीं रही?
शंकराचार्य कहते हैं—
यह मैल अज्ञान का है।
और इसे हटाने का एक ही उपाय है—
ज्ञान का अभ्यास।”
अज्ञानकलुषं जीवं ज्ञानाभ्यासाद्विनिर्मलम्।
कृत्वा ज्ञानं स्वयं नश्येज्जलं कतकरेणुवत्॥५॥
सरल अर्थ
“अज्ञान से मलिन हुआ जीव
निरंतर ज्ञान-अभ्यास से शुद्ध हो जाता है।
और फिर वह ज्ञान स्वयं भी विलीन हो जाता है—
जैसे गंदे पानी को साफ़ करने के बाद
कतक-बीज का चूर्ण
खुद नीचे बैठ जाता है।”
(‘कतक-बीज’ (Katak Beej), जिसे निर्मली बीज (Nirmali Seeds) या क्लीयरिंग नट (Clearing Nut) भी कहते हैं, स्ट्राइकोनस पोटेटोरम (Strychnos Potatorum) नामक पौधे के बीज हैं, जो आयुर्वेद में अपने जल-शुद्धि और विष-नाशक गुणों के लिए प्रसिद्ध हैं)
‘जीव’ की समस्या क्या है?
“दोस्तों,
यह श्लोक बहुत करुणा के साथ
हमारी स्थिति बताता है।
हम जन्म से बुरे नहीं हैं।
हम दोषी नहीं हैं।
बस एक बात हुई है—
हम अपने सत्य को भूल गए हैं।
इस भूल की वजह से
हम खुद को सीमित मानने लगे—
यही ‘जीव’ कहलाता है।
‘मैं कम हूँ’
‘मुझे चाहिए’
‘मैं अधूरा हूँ’
शंकराचार्य इसे कहते हैं—
अज्ञान से मलिन जीव।”
ज्ञान-अभ्यास का अर्थ
“यहाँ ‘ज्ञान-अभ्यास’ का मतलब
सिर्फ़ किताब पढ़ना नहीं है।
वेदांत कहता है—
ज्ञान-अभ्यास तीन चरणों से होता है:
श्रवण – सत्य को सुनना
मनन – उस पर सोचना
निदिध्यासन – उसे जीवन में बैठने देना
बार-बार,
धैर्य के साथ,
निरंतर।
यह अभ्यास
धीरे-धीरे अज्ञान की धूल को
धो देता है।”
अद्भुत उदाहरण: कतक-बीज और पानी
“अब शंकराचार्य एक बहुत सुंदर उदाहरण देते हैं—
पुराने समय में
गंदे पानी को साफ़ करने के लिए
कतक-बीज का चूर्ण डाला जाता था।
यह चूर्ण क्या करता है?
✔️ पानी की सारी गंदगी को अपने में खींच लेता है
✔️ और फिर…
✔️ खुद भी नीचे बैठ जाता है
ध्यान दीजिए—
पानी साफ़ हो गया,
और चूर्ण भी गायब हो गया।
ठीक यही काम
ज्ञान करता है।
ज्ञान आता है—
अज्ञान की गंदगी को समेटता है—
‘मैं शरीर हूँ’,
‘मैं मन हूँ’,
‘मैं अधूरा हूँ’—
और जब अज्ञान समाप्त हो जाता है,
तो ज्ञान भी
अलग से टिके रहने की ज़रूरत नहीं रखता।
ज्ञान ने अपना काम कर लिया।”
ज्ञान टिकता क्यों नहीं?
“बहुत लोग पूछते हैं—
क्या हमें हर समय
‘अहं ब्रह्मास्मि’ दोहराते रहना चाहिए?
शंकराचार्य कहते हैं—
नहीं।
जब अज्ञान नष्ट हो गया,
तो ज्ञान-वृत्ति भी
अपने-आप शांत हो जाती है।
जैसे—
जब आप जान लेते हैं कि
2 + 2 = 4,
तो आपको हर समय
यह सोचते रहने की ज़रूरत नहीं।
अज्ञान गया—
काम पूरा।”
हमारे जीवन के लिए संदेश
“इस श्लोक का संदेश बहुत सरल है—
हमें कुछ नया बनना नहीं है
हमें कुछ जोड़ना नहीं है
हमें बस
अज्ञान की परतें हटानी हैं।
निरंतर सुनना,
सोचना,
और उसी में जीना—
यही ज्ञान-अभ्यास है।
और एक दिन—
अचानक नहीं,
पर निश्चित रूप से—
भीतर एक स्पष्टता आ जाती है:
मैं वही हूँ
जो हमेशा से पूर्ण था।”
“दोस्तों,
ज्ञान कोई बोझ नहीं है।
यह एक शुद्धि की प्रक्रिया है।
ज्ञान आता है,
अज्ञान हटाता है,
और फिर स्वयं भी
शांत हो जाता है।
जैसे साफ़ पानी—
बिना कुछ जोड़े।
यही आत्मबोध का रहस्य है।
यही Sachetan की दिशा है।Stay Sachetan…
Stay Aware…
Stay Pure.”
