सचेतन 118 : श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता- शरीर की महत्वपूर्ण ऊर्जाएं
अगर रुद्र समझना हो तो जीवन में हो रहे रूपांतरण को समझें।
रुद्र का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है जो सूक्ष्म जगत, अंतरिक्ष के गोले, पृथ्वी और सूर्य के बीच के मध्य क्षेत्र का देवता है। यह रचनात्मक ऊर्जा प्रदान करता है जिससे सूक्ष्म जगत से जुड़ने का स्त्रोत बन सकता है। जब हम दिव्यता को पाने के लिये जीवन-सांस (प्राण-वायु) को स्थिर करने का अभ्यास करेंगे तो ही रुद्र के रचनात्मक ऊर्जा और जीवन के सिद्धांत के बीच अपने भौतिक तत्वों और बुद्धि का मध्यस्थ कर पायेंगे हैं।
प्राण वायु के बारे में जागरूक होने से व्यक्ति को योगाभ्यास से इष्टतम लाभ प्राप्त करने में मदद मिल सकती है क्योंकि पूरे शरीर में प्राण की गति योग का सार है।
वायु एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है “हवा” और प्राण वायु का अर्थ है “आगे बढ़ने वाली हवा।” हिंदू परंपरा में, पांच तत्वों – अग्नि, पृथ्वी, जल, वायु (वायु) और ईथर – को वायु के रूप में दर्शाया गया है। प्राण वायु वायु तत्व से जुड़ी है और तीसरी/आध्यात्मिक आंख की ऊर्जा है। प्राण वायु हृदय केंद्र में स्थित है।
प्राण वायु और अपान वायु विपरीत तरीकों से आगे बढ़ते हुए एक साथ काम करते हैं – प्राण वायु ग्रहण करती है जबकि अपान वायु समाप्त हो जाती है – और इन्हें पांच वायुओं में से दो सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। प्राण वायु पदार्थों और सूचनाओं (जैसे विचार या इंद्रियों) की स्वीकृति को नियंत्रित करने वाली ऊर्जा है, साथ ही मस्तिष्क, इंद्रियों, हृदय, फेफड़े और गले के क्षेत्रों को संचालित करती है।
योग और ध्यान के अभ्यास के माध्यम से वायु को संतुलित करने से न केवल शारीरिक शक्ति को बढ़ावा मिलता है, बल्कि योगी को अपनी आध्यात्मिक आकांक्षाओं के करीब जाने में भी मदद मिलती है।
हमारे शरीर में महत्वपूर्ण ऊर्जाएं हैं जिसमें पुरुष प्राण और आत्मा महत्वपूर्ण ऊर्जा कहलाती है। ये ऊर्जाएं रुद्र हैं। जब एक व्यक्ति जीवित होता है तो अपने इंद्रियां और मन, व्यक्ति को उनकी मांगों के अधीन करते हैं, और अगर वह इंद्रियां और मन की बात नहीं मानता तो उसे पीड़ा में रोना पड़ता है।
हमारे जीवन के इस सिद्धांत में बहुत कुछ परिवर्तन होता जिसको हम ना ही देख पाते हैं। जब हम कर्म या क्रिया या कार्य या अपने लक्ष्य की ओर साधना करते हैं तो रुद्ररूप कहता है की मन पर नहीं, शरीर व ऊर्जा पर भरोसा कीजिए आध्यात्मिक साधना में मन, शरीर और ऊर्जा से जुड़े अलग-अलग मार्ग होते हैं।
शरीर की महत्वपूर्ण ऊर्जाएं कोई वस्तु नहीं है। इसको हम देख नहीं सकते, यह कोई जगह नहीं घेरती, न इसकी कोई छाया ही पड़ती है। संक्षेप में, अन्य वस्तुओं की भाँति यह द्रव्य नहीं है, यद्यापि बहुधा द्रव्य से इसका घनिष्ठ संबंध रहता है। फिर भी इसका अस्तित्व उतना ही वास्तविक है जितना किसी अन्य वस्तु का और इस कारण कि किसी पिंड समुदाय में, जिसके ऊपर किसी बाहरी बल का प्रभाव नहीं रहता, इसकी मात्रा में कमी बेशी नहीं होती।
अगर रुद्र समझना हो तो जीवन में हो रहे रूपांतरण को रुद्र समझें।
विज्ञान में, ऊर्जा वस्तुओं का एक गुण है, जो अन्य वस्तुओं को स्थानांतरित किया जा सकता है या विभिन्न रूपों में रूपांतरित किया जा सकता हैं। जीवन में हो रहे रूपांतरण को रुद्र समझें।