सचेतन 125 : श्री शिव पुराण- शतरुद्र संहिता- भीम रूप में शिव का वर्णन
भीम रूप भगवान शिव की आकाशरूपी मूर्ती का नाम है जिसकी अराधना से तामसी गुणों का नाश होता है
जीवन में हो रहे ऊर्जा के रूपांतरण को रुद्र समझें! रुद्र के आठ रूपों का उल्लेख सर्व, भव, भीम, उग्र, ईशान, पशुपति, महादेव, असनी के रूप में किया गया है। सर्व नाम जल को दर्शाता है, उग्र हवा है, असनी बिजली है, भव पर्जन्य (मेघ) है, पशुपति पौधा है, ईशान सूर्य है, महादेव चंद्रमा और प्रजापति हैं। ये सभी रूपांतरित होते रहते हैं।
आज हम भीम के बारे में कुछ चर्चा करते हैं। भीम रूप भगवान शिव की आकाशरूपी मूर्ती का नाम है जिसकी अराधना से तामसी गुणों का नाश होता है. भीम रूप में शिव के देह पर भस्म, जटाजूट, नागों की माला होती है और उन्हें बाघ की खाल पर विराजमान दिखाया जाता है.
भीमा: – आकाश लिंग, चिदंबरम , तमिलनाडु। यह क्षेत्र कावेरी के तट पर है। मंदिर के गर्भगृह में हमें कोई मूर्ति नहीं दिखती। पुराण में इस क्षेत्र की बहुत उच्च चर्चा किया जाता है। उच्चतम आध्यात्मिक आत्माओं को छोड़कर कोई भी भगवान की मूर्ति को नहीं देख सकता है। गर्भगृह में एक जगह है और कई अभ्यारण्य सजाए गए हैं और भक्त मानते हैं कि भगवान वहां विराजमान हैं। पूजा के लिए और भक्तों की संतुष्टि के लिए एक बहुत ही सुंदर नटराज मूर्ति बाहरी गर्भगृह में है।
वैसे तो बोलचाल में भीम महाभारत के पात्र हैं तो पहले इस पात्र के बारे में जानते हैं-
पाँची पांडवों में से एक जो वायु के संयोग से कुंती के गर्भ से उत्पन्न हुए थें । (जन्मकथा के लिये दे॰ ‘पांडु’) । विशेष—ये युधिष्ठिर से छोटे और अर्जुन से बड़े थे । ये बहुत बड़े वीर और बलवान थे। कहते हैं, जन्म के समय जब ये माता की गोद से गिरे थे, तब पत्थर टूटकर टुकड़े टुकड़े हो गया था।
इनका और दुर्योधन का जन्म एक ही दिन हुआ था । इन्हें बहुत बलवान देखकर दुर्योधन ने ईर्ष्या के कारण एक बार इन्हें विष खिला दिया था और इनके बेहोश हो जाने पर लताओं आदि से बाँधकर इन्हें जल में फेंक दिया था। जल में नागों के डसने के कारण इनका पहला विष उतर गया और नागराज ने इन्हें अमृत पिलाकर और इनमें दस हजार हाथियों का बल उत्पन्न कराके घर भेज दिया था।
घर पहुँचकर इन्होंने दुर्योधन की दुष्टता का हाल सबसे कहा। पर युधिष्ठिर ने इन्हें मना कर दिया कि यह वात किसी से मत कहना; और अपने प्राणों की रक्षा के लिये सदा बहुत सचेत रहना।
इसके उपरांत फिर कई बार कर्ण और शकुनि की सहायता से दुर्योधन ने इनकी हत्या करने का विचार किया पर उसे सफलता न हुई। गदायुद्ध में भीम पारंगत थे । जब दुर्योधन ने जतुगृह में पांडवों को जलाना चाहा था, तव भीम ही पहले से समाचार पाकर माता और भाइयों को साथ लेकर वहाँ से हट गए थे।
जंगल में जाने पर हिंडिंब की बहन हिडिंबा इन पर आसक्त हो गई थी। उस समय इन्होंने हिडंब को युद्ध में मार डाला था और भाई तथा माता की आज्ञा से हिड़िबा से विवाह कर लिया था। इसके गर्भ से इन्हें घटोत्कच नाम का एक पुत्र भी हुआ था ।
युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के समय ये पूर्व और वंग देश तक दिग्विजय के लिये गए थे और अनेक देशों तथा राजाओं पर विजयी हुए थे।
जिस समय दुर्योधन ने जूए में द्रौपदी को जीतकर भरी सभा में उसका अपमान किया था, और उसे अपनी जाँघ पर बैठाना चाहा था; उस समय इन्होंने प्रतिज्ञा की थी की मैं दुर्योधन की यह जाँघ तोड़ डालूँगा और दुःशासन से लड़कर उसका रक्तपान करूँगा।
वनवास में उन्होंने अनेक जंगली राक्षस और असुरों को मारा था। अज्ञातवास के समय ये वल्लभ नाम से सूपकार वनकर विराट के घर में रहे थे। जब कीचक ने द्रौपदी से छेड़छाड़ की थी, तब उसे भी उन्होंने मारा था।
महाभारत युद्ध के समय कुरुक्षेत्र में इन्होंने अपनी प्रतिज्ञा का पालन किया था । दुर्योधन के सब भाइयों को मारकर दुर्योधन की जाँघ तोड़ी थी और दुशासन की भुजा तोड़कर उसका रक्त पीया था।
महाप्रस्थान के समय भी ये युधिष्ठिर के साथ थे और सहदेव, नकुल तथा अर्जुन तीनों के मर जाने के उपरांत इनकी मृत्यु हुई थी। भीमसेन, वृकोदर आदि इनके नाम हैं । भीम के हाथी की कथा बहुत प्रचलित है ‘भीमसेन के फेंकें हुए हाथी’ कहा जाता है, एक बार भीमसेन ने सात हाथी आकाश में फेंक दिए थे जो आज तक वायुमंडल में ही घूमते हैं, लौटकर पृथ्वी पर नहीं आए। इसका व्यवहार ऐसे पदार्थ या व्यक्ति के लिये होता है जो एक बार जाकर फिर न लौटे। सुर दास जी ने कहा है की –
अब निज नैन अनाथ भए। मधुबन हू ते माधव सजनी कहियत दूरि गए। मथुरा बसत हुती जिय आशा यह लागत व्यवहार। अव मन भयौ भीम के हाथी सुपने अगम अपार।