सचेतन 154 : श्री शिव पुराण- उमा संहिता – कठिनाइयों से स्वयं ही लड़ कर नया निर्माण करना पड़ेगा।
एकाग्रता के अभ्यास द्वारा वह सम्भावनायें अब भी जागृत की जा सकती हैं।
किसी समय भारतवर्ष ने मन की शक्तियों का सम्पादन करके अनेकों आश्चर्यजनक शक्तियाँ और सिद्धियां प्राप्त की थीं। एकाग्रता के अभ्यास द्वारा वह सम्भावना अब भी जागृत की जा सकती हैं। इसके लिये अपने आपको गति देने की आवश्यकता है। जी-तोड़ परिश्रम करने की आवश्यकता है। प्रयत्न और सिर्फ़ प्रयत्न करने की जरूरत है। हमारे भीतर जो सिद्धियां बिखरी हुई पड़ी हैं उन्हें कार्य क्षेत्र में लगाने भर की देर है, बस हमारी यह विषम परिस्थितियाँ अधिक दिनों तक ठहरने वाली नहीं हैं।
उन्नति के लिये चाहे कितने ही व्यक्ति सहानुभूति व्यक्त क्यों न करें पर यह निर्विवाद है कि हमारा इससे कुछ काम न चलेगा। हमें अपनी स्थिति स्वयं सुधारनी होगी। स्वयं कठिनाइयों से लड़कर नया निर्माण करना पड़ेगा। विश्रृंखलित शक्तियों को जुटाकर आगे बढ़ने का कार्यक्रम बनाना पड़ेगा। यह बात यदि समझ में आ जाय तो सफलता की आधी मंजिल तय करली, ऐसा समझना चाहिये। शेष आधे के लिये मनोबल जुटाकर यत्नपूर्वक आगे बढ़िये आपका सौभाग्य आपके मंगल मिलन के लिये प्रतीक्षा कर रहा है, स्वागत के लिये आगे खड़ा है।
प्रकृति व सृष्टि जड़ होने के कारण इस परम शक्ति के बारे में ज्ञान का सर्वथा अभाव होता है। हम कहते हैं की ईश्वर निराकार है। निराकार का अर्थ होता है कि जिसका आकार न हो। सिर्फ़ और सिर्फ़ ऊर्जा का कोई आकर नहीं होता है। आपके अंदर की स्त्री शक्ति परम सत्य के रूप में है और वह ‘निर्गुण’ (बिना आकार के) के रूप में ब्रह्मांड का परम स्रोत है और साथ ही सभी का शाश्वत अंत है। उन्हें शक्तिशाली रचियता और दयालु सर्वव्यापी के रूप में पूजा जाता है।
हमारे शरीर का एक आकार है जिसका कैमरे से चित्र बनाया जा सकता है। आकार को आकृति कह सकते हैं। हमारे शरीर की तो आकृति है परन्तु शरीर में स्थित जो जीवात्मा है उसका आकार स्पष्ट नहीं होता।
जीवात्मा एक बहूत सूक्ष्म बिन्दुवत है जो सत, रज व तम गुणों वाली परमाणु रूप प्रकृति से भी सूक्ष्म है। अतः जीवात्मा का निश्चित आकार वा आकृति नहीं है परन्तु एक देशीय सत्ता होने के कारण हमारे कुछ विद्वान जीवात्मा का आकार मानते हैं तथा कुछ नहीं भी मानते।
इसका अर्थ यही है कि जीवात्मा एक एकदेशीय, असीम व अति सूक्ष्म सत्ता है जिसके आकार का वर्णन नहीं किया जा सकता। अतः जीवात्मा निराकार के समान ही है परन्तु एक देशीय होने के कारण उसका आकार एक सूक्ष्म बिन्दू व ऐसा कुछ हो सकता है व है, इसलिए कुछ विद्वान जीवात्मा को साकार भी मान लेते हैं।
मन की शक्ति को और क़रीब से जानने के लिए हम सब शिव पुराण के उमा संहिता का वर्णन आगे आने वाले सचेतन के क्रम में करेंगे।
उमा संहिता (शिवपुराण) में भगवान शिव के लिए तप, दान और ज्ञान का महत्व समझाया गया है। यदि निष्काम कर्म से तप किया जाए तो उसकी महिमा स्वयं ही प्रकट हो जाती है। अज्ञान के नाश से ही सिद्धि प्राप्त होती है। ‘शिवपुराण’ का अध्ययन करने से अज्ञान नष्ट हो जाता है। इस संहिता में विभिन्न प्रकार के पापों का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि कौन-से पाप करने से कौन-सा नरक प्राप्त होता है। पाप हो जाने पर प्रायश्चित्त के उपाय आदि भी इसमें बताये गये हैं। ‘उमा संहिता’ में देवी पार्वती के अद्भुत चरित्र तथा उनसे संबंधित लीलाओं का उल्लेख किया गया है. चूंकि पार्वती भगवान शिव के आधे भाग से प्रकट हुई हैं और भगवान शिव का आंशिक स्वरूप हैं, इसीलिए इस संहिता में उमा महिमा का वर्णन कर अप्रत्यक्ष रूप से भगवान शिव के ही अर्द्धनारीश्वर स्वरूप का माहात्म्य प्रस्तुत किया गया है।
‘उमा संहिता’ में देवी पार्वती के अद्भुत चरित्र तथा उनसे संबंधित लीलाओं का उल्लेख किया गया है। इसके आरम्भ में शिव-शिवा द्वारा श्रीकृष्ण को अभीष्ट वर देने की कथा है। तदंतर यमलोक की यात्रा, एक सौ चालीस नरकों, नरकों में गिराने वाले पापों और उसके फलस्वरूप मिलने वाली नरक यातनाओं का वर्णन कर मृत्यु के बाद के गूढ़ रहस्य का प्रतिपादन किया गया है।
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