सचेतन :14. श्रीशिवपुराण- प्रचंड कलियुग आने पर मनुष्य पुण्य कर्मों से दूर रहेंगे
सचेतन :14. श्रीशिवपुराण- प्रचंड कलियुग आने पर मनुष्य पुण्य कर्मों से दूर रहेंगे
Sachetan: Humans will avoid virtuous deeds when the fierce Kalyug arrives.
विद्येश्वर संहिता में
गंगा-यमुना के संगम स्थल परम पुण्यमय प्रयागमें, सत्यव्रतमें तत्पर रहनेवाले महातेजस्वी महाभाग महात्मा मुनियोंने एक विशाल ज्ञानयज्ञका आयोजन किया गया। महात्मा मुनियोंने श्री सूत जी से कहा की तीनों लोकों में भूत, वर्तमान और भविष्य तथा और भी जो कोई वस्तु है, वह आपसे अज्ञात नहीं है, आप हमारे सौभाग्यसे इस यज्ञका दर्शन करनेके लिये यहाँ पधार गये हैं और इसी व्यास से हमारा कुछ कल्याण करनेवाले हैं; क्योंकि आपका आगमन निरर्थक नहीं हो सकता। हमने पहले भी आपसे शुभाशुभ तत्त्वका पूरा-पूरा वर्णन सुना है; किंतु उससे तृप्ति नहीं होती, हमें उसे सुननेकी बारंबार इच्छा होती है।
महाभाग महात्मा मुनियोंने आग्रह किया की हे! उत्तम बुद्धि वाले सूतजी! इस समय हमें एक ही बात सुननी है। यदि आपका अनुग्रह हो तो गोपनीय होने पर भी आप उस विषय का वर्णन करें। घोर कलयुग आने पर मनुष्य पुण्यकर्मसे दूर रहेंगे, दुराचारमें फँस जायँगे और सब-के-सब सत्य-भाषणसे मुँह फेरलेंगे, दूसरोंकी निंदा में तत्पर होंगे। पराये धनको हड़प लेनेकी इच्छा करेंगे। उनका मन परायी स्त्रियोंमें आसक्त होगा तथा वे दूसरे प्राणियोंकी हिंसा किया करेंगे। अपने शरीर को ही आत्मा समझेंगे। मूढ़, नास्तिक और पशु बुद्धि रखने वाले होंगे, माता-पिता से दूर हो जायँगे। वेद बेचकर जीविका चलायेंगे। धनका उपार्जन करनेके लिये ही विद्याका अभ्यास करेंगे और मदसे मोहित रहेंगे। अपनी जातिके कर्म छोड़ देंगे। प्रायः दूसरोंको ठगेंगे, तीनों कालकी संध्योपासनासे दूर रहेंगे और ब्रह्मज्ञानसे शून्य होंगे। समस्त क्षत्रिय भी स्वधर्मका त्याग करनेवाले होंगे। कुसंगी, पापी और व्यभिचारी होंगे। उनमें शौर्यका अभाव होगा। वे कुत्सित चौर्य- कर्मसे जीविका चलायेंगे, शूद्रों का-सा बर्ताव करेंगे और उनका चित्त कामका किंकर बना रहेगा। वैश्य संस्कार- भ्रष्ट, स्वधर्मत्यागी, कुमार्गी, धनोपार्जन -परायण तथा नाप-तौलमें अपनी कुत्सित वृत्तिका परिचय देनेवाले होंगे। इसी तरह शूद्र ब्राह्मणोंके आचारमें तत्पर होंगे उनकी आकृति उज्ज्वल होगी अर्थात् वे अपना कर्म-धर्म छोड़कर उज्ज्वल वेश-भूषासे विभूषित हो व्यर्थ घूमेंगे। वे स्वभावतः ही अपने धर्मका त्याग करनेवाले होंगे। उनके विचार धर्मके प्रतिकूल होंगे। वे कुटिल और द्विजनिन्दक होंगे। यदि धनी हुए तो कुकर्ममें लग जायँगे। विद्वान् हुए तो वाद-विवाद करनेवाले होंगे। अपनेको कुलीन मानकर चारों वर्णोंके साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करेंगे, समस्त वर्णोंको अपने सम्पर्क से भ्रष्ट करेंगे। वे लोग अपनी अधिकार – सीमासे बाहर जाकर द्विजोचित सत्कर्मोंका अनुष्ठान करनेवाले होंगे। कलियुगकी स्त्रियाँ प्रायः सदाचारसे भ्रष्ट और पतिका अपमान करनेवाली होंगी। सास- ससुरसे द्रोह करेंगी। किसीसे भय नहीं मानेंगी। मलिन भोजन करेंगी। कुत्सित हाव-भावमें तत्पर होंगी। उनका शील-स्वभाव बहुत बुरा होगा और वे अपने पतिकी सेवासे सदा ही विमुख रहेंगी। सूतजी ! इस तरह जिनकी बुद्धि नष्ट हो गयी है, जिन्होंने अपने धर्मका त्याग कर दिया है, ऐसे लोगों को इहलोक और परलोकमें उत्तम गति कैसे प्राप्त होगी – इसी चिन्तासे हमारा मन सदा व्याकुल रहता है।
परोपकार के समान दूसरा कोई धर्म नहीं है। अतः जिस छोटे-से उपायसे इन सबके पापोंका तत्काल नाश हो जाय, उसे इस समय कृपापूर्वक बताइये; क्योंकि आप समस्त सिद्धान्तोंके ज्ञाता हैं।
व्यासजी कहते हैं – उन भावितात्मा मुनियोंकी यह बात सुनकर सूतजी मन- ही मन भगवान् शंकरका स्मरण करके साध्य-साधन आदिका विचार करते हुए तथा श्रवण, कीर्तन और मनन- इन तीन साधनोंकी श्रेष्ठता का प्रतिपादन के बारे में बताया।
पहला कानों के द्वारा भगवान के गुणों और लीलाओं का श्रवण करना, दूसरा वाणी द्वारा सदा प्रभु नाम का जाप करना और तीसरा मन के द्वारा उन्हीं के स्वरूप का मनन करना। यदि व्यक्ति सदा यह तीन साधन करता रहे तो उसे शीघ्र ही परम तत्व का बोध हो सकता है।
व्यासजी कहते हैं – सूतजीका यह वचन सुनकर वे सब महर्षि बोले– ‘अब आप हमें वेदान्तसार-सर्वस्वरूप अद्भुत शिवपुराण- की कथा सुनाइये।’
सूतजीने कहा- आप सब महर्षिगण रोग- शोकसे रहित कल्याणमय भगवान् शिवका स्मरण करके पुराणप्रवर शिवपुराणकी, जो वेदके सार-तत्त्वसे प्रकट हुआ है, कथा सुनिये।