सचेतन :11. श्रीशिवपुराण- शिव पुराण के श्रवण की विधि
सचेतन :11. श्रीशिवपुराण- शिव पुराण के श्रवण की विधि
Sachetan: Method of listening to Shiva Purana
उस परमपुण्यमय शिवपुराण को सुनकर उस बिंदुग पिशाच ने अपने सारे पापोंं को धोकर उस पैशाचिक शरीर को त्याग दिया। फिर तो शीघ्र ही उसका रुप दिव्य हो गया। अंगकान्ती गौर वर्ण की हो गयी। शरीर पर स्वेत वस्त्र तथा सब प्रकार से सुशोभित आभुषण उसको अंगो को उद्धासित करने लगे। वह त्रिनेत्रधारी चन्द्रशेखर रुप हो गया। इस प्रकार दिव्य देहधारी रुप होकर श्रीमान बिन्दुग अपनी प्राणवल्लभा चंचुला के साथ स्वयं भी पार्वतीवल्लभ भगवान शिव का गुनगान करने लगा। उसकी स्त्री को इस प्रकार से सुशोभित देख वे सभी देवर्षि बडे विस्मित हुए। उनका चित परमानन्द से परिपूर्ण हो गया। भगवान महेश्वर का वह अद्भुत चरित्र सुनकर वे सभी श्रोता परम कृतार्थ हो प्रेमपुर्वक श्री शिव का यशोगान करते हुए अपने अपने धाम को चले गये। दिव्यरुपधारी श्रीमान बिन्दुग भी सुन्दर विमान पर अपनी प्रियतमा के पास बैठकर सुखपुर्वक आकाश मे स्थित हो बडी शोभा पाने लगे।
तदनन्तर महेश्वर के सुन्दर एवं मनोहर गुणोंं का गान करता हुआ वह अपनी प्रियतमा तथा तुम्बुरु के साथ शिघ्र ही शिवधाम मे जा पहुचा। वहाँ भगवान महेश्वर तथा पार्वती देवी ने प्रसन्नतापुर्वक बिन्दुग का बडा सत्कार किया और उसे अपना पार्षद बना लिया। उसकी पत्नी चंचुला पार्वतीजी की सखी हो गयी। उस घनीभुत ज्योति स्वरुप परमानन्दमय सनातनधाम मे अविचल निवास पाकर वे दोनो दम्पति परम सुखी हो गये।
शौनकजी कहते हैं-महाप्राज्ञ व्यासशिष्य सूतजी ! आपको नमस्कार है। आप धन्य हैं, शिवभक्तोंमें श्रेष्ठ हैं। आपके महान् गुण वर्णन करनेयोग्य हैं। अब आप कल्याणमय शिवपुराणके श्रवणकी विधि बतलाइये, जिससे सभी श्रोताओंको सम्पूर्ण उत्तम फलकी प्राप्ति हो सके।
कहते हैं की जीवन को सुधारने के लिए और मनोरथ कि पूर्ति के लिए तीन सारभूत साधन हैं: कान से भगवान के नाम गुण और लीलाओं का श्रवण, वाणी द्वारा कीर्तन और मन के द्वारा मनन।
सूतजीने कहा- मुने शौनक ! अब मैं तुम्हें सम्पूर्ण फलकी प्राप्तिके लिये शिव पुराणके श्रवणकी विधि बता रहा हूँ। पहले किसी ज्योतिषीको बुलाकर दान मान से संतुष्ट करके अपने सहयोगी लोगों के साथ बैठकर बिना किसी विघ्न-बाधाके कथाकी समाप्ति होनेके उद्देश्यसे शुद्ध मुहूर्तका अनुसंधान कराये और प्रयत्नपूर्वक देश-देशमें स्थान-स्थानपर यह संदेश भेजे कि ‘हमारे यहाँ शिवपुराणकी कथा होनेवाली है।अपने कल्याणकी इच्छा रखनेवाले लोगोंको उसे सुननेके लिये अवश्य पधारना चाहिये ।’कुछ लोग भगवान् श्रीहरिकी कथासे बहुत दूर पड़ गये हैं। कितने ही स्त्री, शूद्र आदि भगवान् शंकरके कथा कीर्तनसे वंचित रहते हैं। उन सबको भी सूचना हो जाय, ऐसा प्रबन्ध करना चाहिये। देश-देशमें जो भगवान् शिव के भक्त हों तथा शिवकथाके कीर्तन और श्रवणके लिये उत्सुक हों, उन सबको आदरपूर्वक बुलवाना चाहिये और आये हुए लोगोंका सब प्रकारसे आदर-सत्कार करना चाहिये।सही समय पर अपने उद्देश्य और कार्य को आरंभ करके जनजन तक पहुँचाना चाहिए।
शिवमन्दिरमें, तीर्थमें, वनप्रान्तमें अथवा घरमें शिवपुराणकी कथा सुननेके लिये उत्तम स्थानका निर्माण करना चाहिये।
सूत जी कहते हैं-साधु महात्माओं! आपने बहुत अच्छी बात पूछी है। यह प्रश्न तीन लोकों का हित करने वाला है। आप लोगों के नेह पूर्ण आग्रह पर गुरुदेव व्यास का स्मरण कर मैं समस्त पाप राशियों से उद्धार करने वाले शिव पुराण की अमृत कथा का वर्णन कर रहा हूँ। ये वेदांत का सारसर्वस्व है। यही परलोक में परमार्थ को देने वाला है तथा दुष्टों का विनाश करने वाला है। इसमें भगवान शिव के उत्तम यश का वर्णन है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष आदि पुरुषार्थों को देने वाला पुराण अपने प्रभाव की दृष्टि से वृद्धि तथा विस्तार को प्राप्त हो रहा है। शिव पुराण के अध्ययन से कलियुग के सभी पापों में लिप्त जीव उत्तम गति को प्राप्त होंगे। इसके उदय से ही कलियुग का उत्पात शांत हो जाएगा। शिव पुराण को वेद तुल्य माना जाएगा। इसका प्रवचन सर्वप्रथम भगवान शिव ने ही किया था। इस पुराण के बारह खण्ड या भेद हैं। ये बारह संहिताएं है- (1) विद्येश्वर संहिता (2) रुद्र संहिता (3) विनायक सहित (4) उमा संहिता, (5) सहस्रकोटिरूद्र संहिता (6) एकादशरूद्र संहिता (7) कैलास संहिता (8) शतरुद्र संहिता (9) कोटिरुद्र संहिता (10) मातृ संहिता (11) वायवीय संहिता तथा (12) धर्म संहिता
विद्येश्वर संहिता में दस हजार श्लोक है। रुद्र संहिता, विनायक सहिता, उमा सहिता और मातृ संहिता प्रत्येक में आठ-आठ हजार श्लोक है। एकादश रूद्र संहिता में तेरह हजार, कैलाश संहिता में छः हजार, शतरुद्र संहिता में तीन हजार, कोटिरुद्र सहिता में नौ हजार सहस्रकोटिरुद्र संहिता में ग्यारह हजार, वायवीयसंहिता में चार हजार तथा धर्म संहिता में बारह हजार श्लोक है।
मूल शिव पुराण में कुल एक लाख श्लोक है परंतु व्यास जी ने इसे चौबीस हजार श्लोकों में संक्षिप्त कर दिया है। पुराणों की क्रम संख्या में शिव पुराण का चौथा स्थान है, जिसमें साल संहिताएं हैं।
पूर्वकाल में भगवान शिव ने सौ करोड़ श्लोकों का पुराणग्रन्थ ग्रथित किया था। सृष्टि के आरंभ में निर्मित यह पुराण साहित्य अधिक विस्तृत था। द्वापर युग में द्वैपायन आदि महर्षियों ने पुराण को अठारह भागों में विभाजित कर चार लाख श्लोकों में इसको संक्षिप्त कर दिया।
इसके उपरांत व्यास जी ने चौबीस हजार श्लोकों में इसका प्रतिपादन किया।