सचेतन 243: शिवपुराण- वायवीय संहिता – मंत्रयोग में मातृका शक्ति स्वरूप है

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मंत्र साधना में वर्ण का महत्व सर्वोपरि है 

मंत्र,वर्ण या अक्षर ‘शब्द-ब्रह्म’ या ‘वाग्-शक्ति’ के स्वरुप हैं और इनका सूक्ष्म रुप ‘विमर्श-शक्ति’ है।

आपका विमर्श-शक्ति यानी चिंतन से उत्पन्न शब्द और ज्ञान आपकी ‘परा वाक्’ कही जाती है और जिसमें स्फुरणा यानी अंतःप्रेरणा या आपके भीतर की स्वाभाविक प्रेरणा  होती है। यह स्वाभाविक प्रेरणा ही आपकी मातृका या चैतन्यात्मक शब्द-ब्रह्म ‘कुण्डलिनी’ के रुप में व्यक्त हुई है। वर्णमाला के ‘अ’ से लेकर ‘क्ष’ बावन अक्षरों को मातृका कहते हैं। इन मातृका वर्णों से ही सभी मन्त्रों का निर्माण हुआ है।

मातृका के बावन अक्षर में सबसे प्रथम अक्षर ॐकार है। उसके सिवा चौदह स्वर, तैतीस व्यंजन, अनुस्वर, विसर्ग, जिव्हामूलीय तथा उप्षमानीय – ये सब मिला कर बावन मातृका वर्ण माने गए हैं । 

वर्ण और उसके स्वरूप में निहित शक्ति स्वरूप को समझना आवश्यक है। 

अ – स्वर्ण वर्ण, चतुर्मुख, कूर्मवाहन 

आ – श्वेतवर्ण, कमलासन, पाशहस्त, हस्तिवाहन 

इ – पीतवर्ण, परशुधारी, कच्छप वाहन 

ई – श्वेतवर्ण, मौक्तिक युक्ता, हंसवाहन 

उ-ऊ – कृष्णवर्ण, गदाधारी, काकवासन 

ऋ-ऋ – रक्‍त वर्ण, पाश धारा, उष्ट्रवाहन 

लु-लू – पुष्पवर्ण, वज्नधारी, कमलाहन 

ए – श्यामवर्ण, हारभूषण, चक्रवाकवाहन 

ऐ – नवपुष्ष वर्ण, शूलवज्रधारिणी, द्विपवाहन

ओ – पीतवर्ण, सर्वंगत, वृषभवाहन 

औ – तप्तकांचन वर्ण, पाशधारी, व्याप्रवाहन 

अं – कुंकुंभ वर्ण, रक्तभूषण, रिपुनाशक द्विभुज, खरवाहन

क – नवकुंकुंमवर्ण, शूलवज्ञधा री, गजवाहन 

ख – वर्णं, पाशतोम रहस्त-मेषवाहन 

ग – अरुण वर्ण, पाशअंकुश धारिणी, सपंवाहन 

घ – कृष्ण वर्ण, गदाधारिणी, उष्ट्रवाहन 

डः – कृष्ण वर्ण, काकवाहन 

च – श्वेतवर्ण, कपर्दिका भूषणादि मंडित 

छ – श्वेतवर्ण, चतुर्भुज

ज-झ – श्वेतवर्ण, चतुर्बाहु 

– कृष्ण वर्ण, द्विभुज, काकवाहन 

ट – द्विभुज, क्रौंचवाहन 

ठ – उज्ज्वल वर्ण, द्विर्भुज, गजेन्द्र वाहन 

ड – अष्टबाहु, श्वेत कमलासन 

ढ – ज्वलत्‌ कान्तिवर्ण, दशबाहु, अजवाहन 

ण – व्याप्रवाहन, विस्तृत देह 

त – कुंकुम वर्ण, चतुर्बाहु, स्वलंकृत 

थ – पीतवर्ण, चतुर्बाहु, वृषारुढ़ 

द – षडभुज, महिषवाहन 

ध – चतुर्बाहु, सिहवाहन 

न – द्विभुज, काकवाहन 

प – विशभुज , वकवाहन 

फ – दयभूज, श्वेतवर्ण, सिहवाहंन 

ब – अरुणवर्ण, द्विभुज, हंसवाहन 

भ – त्रिहस्त, त्रिमुख, व्याप्रवाहन 

म – चतुर्भुज, विषयुक्तसवंत 

य- धूम्रवर्ण , चतुर्मुख, मृगवाहन 

र- चतुर्भुज, मेषवाहन 

ल- केश रवर्ण, चतुर्भुज, गज वाहन 

व- श्वेतवाहन, द्विवाहन, नक्रवाहन 

श- हेमवर्ण, कमलासन, द्विवर्ण 

स श्वेतवर्ण, द्विभुज, हंसवाहन 

ष- कृष्णवर्ण, द्विभुज

ह- श्वेतवर्ण, त्रिबाहु 

क्ष- दशबाहु, मणिप्रभावसदृश 

मंत्र साधना में वर्ण का महत्व सर्वोपरि है और वर्ण साधना हेतु उसमें स्थित

शक्ति के स्वरूप, महिमा एवं मण्डल का ध्यान आवश्यक है ।

वर्ण प्रभाव प्रत्येक वर्ण अपने आप में एक निश्चित प्रभाव एवं सामथ्यें लिए हुए है.

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