सचेतन 2.12: रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – हनुमान जी अप्रत्यक्ष उपमान अलंकार हैं।

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हनुमान जी से आप सीख ले कर सिर्फ़ कर्म को विशिष्टता और उत्कृष्टता के साथ करते रहें। 

अलंकार चारुत्व को कहते हैं। यह हनुमान जी  का सौंदर्य, चारुत्व, काव्य रूप में उनकी शोभा का धर्म ही अलंकार का व्यापक अर्थ है। यह अलंकार को महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में प्राणभूत तत्त्व के रूप में लिखा है। 

सीता माता की खोज में चलते हुए वे परम तेजस्वी महाकाय महाकपि हनुमान् आलम्बन हीन आकाश में पंखधारी पर्वत के समान उड़ रहे थे। वे बलवान् कपिश्रेष्ठ जिस मार्ग से वेग पूर्वक निकल जाते थे, उस मार्ग से संयुक्त समुद्र सहसा कठौते या कड़ाह के समान हो जाता था (उनके वेगसे उठी हुई वायु के द्वारा वहाँ का जल हट जाने से वह स्थान कठौते आदि के समान गहरा-सा दिखायी पड़ता था)। पक्षी-समूहों के उड़ने के मार्ग में पक्षिराज गरुड़ की भाँति जाते हुए हनुमान् वायु के समान मेघमालाओं को अपनी ओर खींच लेते थे।

आप हनुमान जी का हरेक वर्णन विशिष्टता और उत्कृष्टता उपमा अलंकार के समान है और अपने जीवन में यह सीखना चाहिए। जब आपके कार्य की तुलना अत्यंत समानता के कारण किसी अन्य प्रसिद्ध वस्तु या अवस्था या लोगों से या प्राणी से की जाती है तो वहाँ उपमा अलंकार माना जाता है।

हनुमान्जी के द्वारा खींचे जाते हुए वे श्वेत, अरुण, नील और मजीठ के रंगवाले बड़े-बड़े मेघ वहाँ बड़ी शोभा पाते थे। वे बारम्बार बादलों के समूह में घुस जाते और बाहर निकल आते थे। इस तरह छिपते और प्रकाशित होते हुए चन्द्रमाके समान दृष्टिगोचर होते थे।

जिसके साथ भी आपकी तुलना की जाती है वह  वस्तु या अवस्था या लोगों से या प्राणी अपेक्षित और प्रत्यक्ष रूप में होते हैं। अगर आज भी देखें तो पर्वत, समुद्र आदि जिसकी तुलना हनुमान जी के साथ किए गये हैं जिसका वर्णन प्रत्यक्ष रूप में दिख पड़ता है।  

उस समय तीव्र गति से आगे बढ़ते हुए वानरवीर हनुमान्जी को देखकर देवता, गन्धर्व और चारण उनके ऊपर फूलों की वर्षा करने लगे। वे श्रीरामचन्द्रजी का कार्य सिद्ध करने के लिये जा रहे थे, अतः उस समय वेग से जाते हुए वानरराज हनुमान्को सूर्यदेव ने ताप नहीं पहुँचाया और वायुदेव ने भी उनकी सेवा की। आकाश मार्ग से यात्रा करते हुए वानरवीर हनुमान्की ऋषि-मुनि स्तुति करने लगे तथा देवता और गन्धर्व उनकी प्रशंसाके गीत गाने लगे। 

हनुमान जी उपमान अलंकार हैं क्योंकि आज के युग में वह अप्रत्यक्ष हैं। वह प्रसिद्ध बिन्दु या प्राणी या पर्वत या समुद्र आदि जिसके साथ उपमेय रूप में हनुमान जी की तुलना किए गए हैं वह तो है लेकिन हनुमान जी उपमान या अप्रत्यक्ष रूप में हैं।

वह वस्तु या व्यक्ति जिससे उपमा दी जाए।उपमा यानी वह अर्थालंकार का एक भेद जिसमें दो वस्तुओं में भेद होते हुए भी धर्मगत समता दिखाई जाए।

हनुमान जी का उदाहरण बहुत सरल है की आप सिर्फ़ कर्म को विशिष्टता और उत्कृष्टता के साथ करते रहें। विशिष्ट बनने की कोशिश मत कीजिए। अगर आप बस साधारण हैं, दूसरों से ज्यादा साधारण हैं, तो आप असाधारण बन जाएंगे।

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