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साक्षात् स्वयम्भू ब्रह्माजी ने निशाचरी लंका को वरदान दिया था निशाचरी लंका को स्त्री समझकर हनुमान् जी ने स्वयं ही अधिक क्रोध नहीं किया। किंतु हनुमान जी के लघु प्रहार से ही उस निशाचरी के सारे अंग व्याकुल हो गये। अत्यन्त उद्विग्न हुई लंका ने हनुमान जी से अभिमानशून्य हो कर बोली- कपिश्रेष्ठ! मेरी रक्षा कीजिये। सौम्य! महाबली सत्त्वगुणशाली वीर पुरुष शास्त्र की मर्यादा पर स्थिर रहते हैं (शास्त्र में स्त्री को अवध्य बताया है, इसलिये आप मेरे प्राण न लीजिये)। नाम लंकिनी एक निसिचरी। सो कह चलेसि मोहि निंदरी।। जानेहि नहीं मरमु सठ मोरा। मोर अहार जहाँ लगि चोरा।। मुठिका एक महा कपि हनी। रुधिर बमत धरनीं ढनमनी।। पुनि संभारि उठि सो लंका। जोरि पानि कर बिनय संसका।। नारियों के प्रति सम्मान को ह्रदय में ईश्वर का वास के समान माना जाता है। कहते हैं की आपने जीवन की सभी अष्ट सिद्धि नव निधि का आशीष माता से प्राप्त हो सकती है इसीलिए नारी का सम्मान और पूजा करनी चाहिए। आप अपने धीरज, धर्म, मित्र और नारी की परीक्षा कठिन परिस्थितियों में ले सकते हैं। जब हनुमान जी ने निशाचरी लंका को स्त्री होने का सम्मान दिया तो निशाचरी लंका ने गूढ़ रहस्य का बखान किया और बोली- महाबली वीर वानर ! मैं स्वयं लंकापुरी ही हूँ, आपने अपने पराक्रम से मुझे परास्त कर दिया है। वानरेश्वर! मैं आपसे एक सच्ची बात कहती हूँ आप इसे सुनिये साक्षात् स्वयम्भू ब्रह्माजी ने मुझे जैसा वरदान दिया था, वह बता रही हूँ। उन्होंने कहा था—’जब कोई वानर तुझे अपने पराक्रमसे वशमें कर ले, तब तुझे यह समझ लेना चाहिये कि अब राक्षसों पर बड़ा भारी भय आ पहुँचा है। सौम्य! आपका दर्शन पाकर आज मेरे सामने वही घड़ी आ गयी है। ब्रह्माजी ने जिस सत्य का निश्चय कर दिया है, उसमें कोई उलट-फेर नहीं हो सकता। तात मोर अति पुन्य बहूता। देखेउँ नयन राम कर दूता।। दो0-तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग। तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग।।4।। अब सीता के कारण दुरात्मा राजा रावण तथा समस्त राक्षसों के विनाश का समय आ पहुँचा है। कपिश्रेष्ठ! अतः आप इस रावणपालित पुरी में प्रवेश कीजिये और यहाँ जो-जो कार्य करना चाहते हों, उन सबको पूर्ण कर लीजिये। जो व्यक्ति अपना कल्याण, सुंदर यश, सुबुद्धि, शुभ गति और नाना प्रकार के सुख चाहता हो, उसे स्त्री के सम्मान को प्राथमिकता देना चाहिए। प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कौसलपुर राजा।। निशाचरी लंका ने अपने आपको सुरक्षित पाकर कहा की ही वानरेश्वर! राक्षसराज रावण के द्वारा पालित यह सुन्दर पुरी स्त्री अभिशाप से ही नष्टप्राय हो चुकी है। अतः इसमें प्रवेश करके आप स्वेच्छानुसार सुखपूर्वक सर्वत्र सती-साध्वी जनकनन्दिनी सीता की खोज कीजिये। नारीत्व या स्त्रीत्व को कोमलता के भाव से हम महसूस कर सकते हैं ज़रूरत है उनके स्वेच्छा से स्वीकृत नारीत्व की गरिमा का आदर करने की। अगर आप देखेंगे तो माता सीता या निशाचरी लंका के उदाहरण से स्पष्ट है। इस प्रकार श्रीवाल्मीकि निर्मित आर्षरामायण आदिकाव्य के सुन्दरकाण्ड में तीसरा सर्ग पूरा हुआ॥३॥