सचेतन- 26:तैत्तिरीय उपनिषद् आनन्द की सीढ़ियाँ (आनन्दमिमांसा)
‘मीमांसा’ शब्द का अर्थ है गंभीर मनन, विचार-विमर्श, या किसी विषय के मूल तत्त्वों का गहन ज्ञान प्राप्त करने के लिए किया जाने वाला विवेचन। मीमांसा दर्शन का मुख्य उद्देश्य धर्म के सार को समझना और मानव कर्तव्य को स्पष्ट करना है।
1. मानव-सुख (Manuṣyānanda)
कल्पना करो कि एक 25 वर्ष का युवा है — बलवान, सुंदर, शिक्षित, धन-धान्य से सम्पन्न, राजा की तरह ऐश्वर्यपूर्ण जीवन जी रहा है।
उसके जीवन का सर्वोच्च सुख = 1 इकाई।
यही गणना का आधार है।
2. गंधर्वानन्द (Gandharvānanda)
गंधर्व देवता स्वर्गीय गायक और कलाकार माने जाते हैं।
जैसे आज हम किसी संगीत-सम्मेलन, नृत्य या कला में डूबकर क्षणभर को सुख अनुभव करते हैं, वैसे ही गंधर्वों का आनंद अद्भुत और मानव-सुख से 100 गुना अधिक है।
उदाहरण: जैसे किसी गायक को अपार कला, स्वर और रस का अनुभव हो, वह आनंद अलौकिक होता है।
3. पितृलोकानन्द (Pitṛloka ānanda)
पितृलोक वे लोक हैं जहाँ पूर्वज दिव्य रूप में रहते हैं।
उनका आनंद गंधर्वों से भी गहरा और स्थायी माना गया है।
जैसे हम अपने पूर्वजों को स्वर्गीय शांति में कल्पना करते हैं — वह शांति और सुख गंधर्व-सुख से 100 गुना है।
4. देवानन्द (Deva-ānanda)
सामान्य देवता (जैसे वायु, अग्नि, सूर्य आदि) प्रकृति की शक्तियाँ हैं।
उनका आनंद पितृलोक से भी 100 गुना है।
उदाहरण: जब हम किसी महान प्राकृतिक सौंदर्य — जैसे हिमालय की बर्फ, सागर का विस्तार या तारों भरा आकाश — देखते हैं, तो जो विस्मय और आनंद मिलता है, देवताओं का सुख उससे कहीं अधिक है।
5. इन्द्रानन्द (Indrānanda)
इन्द्र देवताओं के राजा हैं, स्वर्ग का शासन उनके हाथ में है।
उनका सुख सामान्य देवताओं से भी 100 गुना है।
उदाहरण: जैसे कोई सम्राट, जिसके पास अपार शक्ति, ऐश्वर्य और अधिकार हो — उसका आनंद सामान्य व्यक्ति से कहीं अधिक होता है।
6. बृहस्पति-आनन्द (Bṛhaspatyānanda)
बृहस्पति देवताओं के गुरु हैं, ज्ञान और विवेक के प्रतीक।
उनका आनंद इन्द्र से भी 100 गुना है।
उदाहरण: जैसे एक महान गुरु, जिसे केवल ऐश्वर्य ही नहीं, बल्कि गहन ज्ञान और श्रद्धा का अनुभव है — उसका सुख और भी श्रेष्ठ है।
7. प्रजापति-आनन्द (Prajāpati-ānanda)
प्रजापति (ब्रह्मा) सृष्टि के रचयिता हैं।
उनका सुख बृहस्पति से भी 100 गुना है।
उदाहरण: जैसे कोई रचनाकार (creator) अपनी रचना में जो आनंद अनुभव करता है, उसका विस्तार अनंत हो जाता है।
8. ब्रह्मानन्द (Brahmānanda)
सबसे ऊपर है ब्रह्मलोक का आनंद — जो प्रजापति-सुख से भी 100 गुना है।
लेकिन यहाँ उपनिषद् कहता है: यह गणना केवल प्रतीक है।
क्योंकि आत्मा का आनंद (ब्रह्मानन्द) अनंत, अक्षय और पूर्ण है।