सचेतन- 33 तैत्तिरीय उपनिषद् आत्मसंयम और ब्रह्मा

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सचेतन- 33 तैत्तिरीय उपनिषद् आत्मसंयम और ब्रह्मा

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नमस्कार मित्रों,
आज हम बात करेंगे उपनिषदों के तीन अमूल्य रत्नों की —
सत्य, आत्मसंयम, और आनंद की।
ये तीनों हमारे जीवन को भीतर से उजाला देते हैं।
उपनिषद् हमें बताते हैं —
सच्चा सुख न बाहर है, न वस्तुओं में,
बल्कि हमारे भीतर की शांति और सत्य में है।

1. सत्य — जीवन का दीपक 

उपनिषद् कहते हैं — “सत्यमेव जयते, नानृतम्।” — मुण्डकोपनिषद्
अर्थात् — सत्य ही जीतता है, असत्य नहीं।

सत्य केवल बोलने की बात नहीं है।
यह हमारे विचार, भावना और आचरण — तीनों का मेल है।
जब व्यक्ति सत्य में स्थित होता है,
उसके जीवन में ईमानदारी, निडरता और स्पष्टता होती है।

जैसे अंधेरी रात में दीपक राह दिखाता है,
वैसे ही सत्य हमारे जीवन का दीपक है।
सत्य से आत्मा में प्रकाश आता है,
और मन का भ्रम मिट जाता है।

2. आत्मसंयम — भीतर की शक्ति 

तैत्तिरीय उपनिषद् कहता है —

“तपसा ब्रह्म विजिज्ञासस्व।”
अर्थात् — तप या आत्मसंयम से ही ब्रह्म को जाना जा सकता है।

आत्मसंयम का अर्थ है —
अपनी इंद्रियों, मन और इच्छाओं पर नियंत्रण।
यह नियंत्रण दबाव नहीं, बल्कि समझ से आता है।

जब हम अपने भीतर की इच्छाओं को दिशा देते हैं,
तो ऊर्जा बिखरती नहीं, बल्कि केंद्रित होती है।
संयम से व्यक्ति स्थिर, शांत और विवेकवान बनता है।

सत्य और संयम —
जब दोनों साथ चलते हैं,
तब मन में शुद्धि,
बुद्धि में प्रकाश,
और आत्मा में आनंद प्रकट होता है।

उपनिषद् कहता है —

“सत्यं तपः, तपः सत्यं।”
यानी सत्य ही तप है, और तप ही सत्य है।

3. ब्रह्म ही आनंद है 

तैत्तिरीय उपनिषद् आगे कहता है — “आनंदो ब्रह्मेति व्यजानात्।”
अर्थात् — आनंद ही ब्रह्म है।

ब्रह्म — यानी परम सत्य —
कोई बाहरी वस्तु नहीं,
बल्कि हमारे भीतर का शुद्ध, चैतन्य और आनंदस्वरूप अस्तित्व है।

जब मन शांत होता है,
इच्छाएँ मिट जाती हैं,
और आत्मा अपनी असली अवस्था में रहती है,
तभी सच्चा आनंद प्रकट होता है।

यह आनंद इंद्रियों का नहीं,
बल्कि आत्मा का अनुभव है —  जो न घटता है, न बढ़ता है,
न किसी कारण से आता है, न खोता है।

ब्रह्मानंद की पहचान:

  • वह स्थायी है, क्षणिक नहीं।
  • वह भीतर से आता है, बाहर से नहीं।
  • वह सबमें समान रूप से विद्यमान है।

जब साधक जान लेता है कि —

“मैं ही वह आनंद हूँ,
जो सबमें व्याप्त है,”

तो उसे न कुछ पाने की चाह रहती है,
न कुछ खोने का भय।
वह हर पल में शांत, संतुष्ट और पूर्ण होता है।

यही अवस्था है — ब्रह्म ही आनंद। ✨

मित्रों,
सत्य से जीवन में प्रकाश आता है,
संयम से स्थिरता,
और ब्रह्मानंद से पूर्णता।

इन तीनों को अपनाना ही उपनिषदों का संदेश है।
याद रखिए —

“सुख बाहर से नहीं, भीतर से आता है।”तो आइए,
अपने भीतर उस सत्य को पहचानें,
उस संयम को साधें,
और उस आनंद को जिएँ —  जो स्वयं ब्रह्म है।

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