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सचेतन- बुद्धचरितम् 32 बुद्ध के दस पवित्र स्तूपों की कथा

जब भगवान बुद्ध का महापरिनिर्वाण हुआ, तो उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार किया गया। उनकी अस्थियों (धातु), भस्म और कलश को सम्मानपूर्वक कई भागों में विभाजित किया गया। इन पवित्र अवशेषों को विभिन्न स्थानों पर श्रद्धा और भक्ति से स्थापित किया गया। इस प्रकार पृथ्वी पर कुल दस पवित्र स्तूपों का निर्माण हुआ। अब […]

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सचेतन- बुद्धचरितम् 31 महात्मा बुद्ध का अंतिम सम्मान

जब महात्मा बुद्ध ने संसार से विदा ली और सदा के लिए शांत हो गए, तब उनके भक्तों और अनुयायियों को बहुत दुख हुआ। मल्ल वंश के लोगों ने उनके पार्थिव शरीर को बड़े आदर के साथ सोने की पालकी (स्वर्णमयी शिविका) में रखा। वे पालकी को अपने कंधों पर उठाकर नगर के मुख्य द्वार […]

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सचेतन- बुद्धचरितम् 30 बुद्ध का अंतिम उपदेश और निर्वाण

सुभद्र की भक्ति और बुद्ध का आशीर्वाद बुद्ध के निर्वाण के अंतिम समय में एक त्रिदण्डी मुनि, सुभद्र, उनसे मिलने आए। आनन्द के संकोच के बावजूद, बुद्ध ने उन्हें आने दिया और करुणा से धर्म का मार्ग समझाया — एक ऐसा मार्ग जो दुखों से मुक्ति दिलाता है और निर्वाण तक पहुँचाता है। दुख से […]

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सचेतन- बुद्धचरितम् 29 छब्बीसवाँ सर्ग : दुख से मुक्ति

बुद्ध के निर्वाण के अंतिम समय की बात है। एक त्रिदण्डी मुनि जिसका नाम सुभद्र था, वह बुद्ध को देखने और उनसे मिलने आया। वह बुद्ध से धर्म के बारे में जानना चाहता था, लेकिन उनके प्रमुख शिष्य आनन्द को यह चिंता थी कि शायद सुभद्र धर्म के बहाने वाद-विवाद करेगा, इसलिए उन्होंने उसे मिलने […]

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सचेतन- बुद्धचरितम् 28 पच्चीसवाँ सर्ग प्रेम और शांति से विदाई

जब महात्मा बुद्ध ने निर्वाण (मोक्ष) की इच्छा से वैशाली नगर को छोड़ने का निश्चय किया, तब वहां के लोगों का दिल भर आया। लिच्छवि राजा सिंह और नगर के अनेक लोग गहरे दुःख में डूब गए। राजा सिंह ने बहुत विलाप किया, आँखों में आँसू भर आए। यह क्षण बुद्ध के जीवन का अत्यंत […]

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सचेतन- बुद्धचरितम् 26 बुद्ध का तत्वज्ञान

दुखों से छुटकारा पाने के लिए अष्टांगिक मार्ग (Eightfold Path): यह आठ साधन हैं, जिनसे जीवन में शुद्धि और मुक्ति प्राप्त होती है: सरल शब्दों में निष्कर्ष: जन्म, बुढ़ापा और मृत्यु जैसे दुःख जीवन का स्वाभाविक हिस्सा हैं,परंतु बुद्ध ने सिखाया कि इच्छाओं को त्यागकर, सदाचारी जीवन अपनाकर और गहरे ध्यान द्वारा आत्मा को शुद्ध […]

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सचेतन- बुद्धचरितम् 25- तेइसवाँ सर्ग बुद्ध और आम्रपाली

जब भगवान बुद्ध आम्रपाली के घर पधार गए, तो यह समाचार पूरे वैशाली नगर में फैल गया। लिच्छवि वंश के राजा और उनके साथी यह सुनकर बहुत उत्साहित हुए कि बुद्ध उनके नगर में हैं। वे सभी तुरंत बुद्ध के दर्शन करने आम्रपाली के निवास पर पहुँच गए। आम्रपाली का जन्म और प्रारंभिक जीवन: कहा […]

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सचेतन- बुद्धचरितम् 24- 21 सर्ग बुद्ध और उनका धर्म-प्रसार

सचेतन- बुद्धचरितम् 24- 21 सर्ग बुद्ध और उनका धर्म-प्रसार  भगवान बुद्ध, जिन्हें हम तथागत भी कहते हैं, जब स्वर्ग में अपनी माता और वहाँ के देवताओं को धर्म की दीक्षा दे चुके, तो उन्होंने सोचा कि अब धरती पर चलकर अन्य लोगों को भी सत्य धर्म की शिक्षा दी जाए। “तथागत” शब्द पाली भाषा से […]

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सचेतन- बुद्धचरितम् 23- 19-20 सर्ग – बुद्ध का चातुर्मास तक स्वर्ग में रुकना

जब महात्मा बुद्ध ने अपने ज्ञान और उपदेशों से कई शास्त्रज्ञों को जीत लिया, तब वे राजगृह से अपने जन्म स्थान—अपने पिता राजा शुद्धोदन के नगर कपिलवस्तु की ओर लौटे। पुत्र के आने का समाचार सुनकर राजा शुद्धोदन बहुत प्रसन्न हुए। वे नगरवासियों के साथ बुद्ध से मिलने के लिए निकल पड़े। लेकिन जब उन्होंने […]

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सचेतन- बुद्धचरितम् 22- अष्टादश सर्ग- बुद्ध विहार का निर्माण

एक दिन कोशल देश के प्रसिद्ध और धर्मप्रिय राजा सुदत्त को पता चला कि भगवान बुद्ध (सुगत) अपने अनुयायियों के साथ किसी स्थान पर निवास कर रहे हैं। यह जानकर वे अत्यंत श्रद्धा और विनम्रता के साथ बुद्ध के दर्शन करने पहुँचे। वहाँ पहुँचकर उन्होंने भूमि पर दण्ड की तरह गिरकर बुद्ध को प्रणाम किया। […]