सचेतन- 02: मनुष्य जन्म: चेतना की उच्चतम अवस्था

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सचेतन- 02: मनुष्य जन्म: चेतना की उच्चतम अवस्था

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सचेतन का कार्यक्रम धार्मिक शिक्षा नहीं, बल्कि जीवन का दिशा–सूचक तारा है।
यह हमें आलस्य, भ्रम और अज्ञान से मुक्त करके ज्ञान, कर्म और आत्मोन्नति की ओर ले जाता है।

मनुष्य जन्म का आध्यात्मिक अर्थ क्या है?

  • मनुष्यत्व केवल शरीर नहीं है, यह बुद्धि और विवेक से युक्त होने का अवसर है।
  • मुमुक्षुत्व वह जिज्ञासा है जो हमें रोज़मर्रा के सुख–दुख से आगे ले जाकर सत्य की खोज करवाती है।
  • महापुरुषों का संग वह मार्गदर्शन है जो अज्ञान के अंधकार से निकालकर आत्मज्ञान की ओर ले जाता है।

मनुष्य जन्म कोई सामान्य बात नहीं है। यह परमात्मा का दिया हुआ एक विशेष अवसर है — स्वयं को जानने, जीवन के अर्थ को समझने और मोक्ष प्राप्त करने का।
इसलिए — इस जीवन का सदुपयोग करो, सत्संग से जुड़ो और भीतर की यात्रा शुरू करो।

मनुष्यत्व, मुमुक्षुत्व और महापुरुषों का संग — ये तीन चीज़ें भगवान के अनुग्रह से ही मिलती हैं।

तो सबसे पहले बात करते हैं — मनुष्य जन्म की दुर्लभता
🌿 मनुष्य जन्म: चेतना की उच्चतम अवस्था

संसार के करोड़ों प्राणियों में, मनुष्य की संख्या बहुत कम है —
पर उसकी योग्यता सबसे अधिक है।

क्यों?

क्योंकि केवल मनुष्य ही आत्म-विकास और ब्रह्मज्ञान की दिशा में अग्रसर हो सकता है।
वेदों और उपनिषदों में जीवों की चार मुख्य योनियाँ बताई गई हैं:

  1. उद्भिज्ज – जो मिट्टी या बीज से उत्पन्न होते हैं (वनस्पति)
  2. स्वेदज – जो पसीने या नमी से उत्पन्न होते हैं (कीट, कृमि)
  3. अण्डज – अंडों से उत्पन्न (पक्षी, सरीसृप)
  4. जरायुज – गर्भ से जन्म लेने वाले (स्तनपायी, जैसे गाय, सिंह आदि)

इन सभी योनियों में जैविक जीवन तो है, लेकिन
ब्रह्म को जानने की चेष्टा, मोक्ष की जिज्ञासा और धर्म–कर्म का विवेक
यह केवल मनुष्य में ही संभव है।

केवल मनुष्य शरीर ही ऐसा है
जिसमें चेतना की पाँच या उससे अधिक कलाएँ विकसित हो सकती हैं।
यानी — सोचने, समझने, अनुभव करने, भक्ति करने, और आत्मा को जानने की पूर्ण सामर्थ्य
यह शरीर यूँ ही नहीं मिला।
यह तो पूर्व जन्मों के पुण्य,
गुरु और सत्संग की कृपा,
और सबसे बढ़कर — ईश्वर की अनुकंपा का परिणाम है।इसलिए, उपनिषदों में कहा गया है —
“दुर्लभं मनुष्य जन्म” — मनुष्य जीवन दुर्लभ है।
और विवेकचूड़ामणि में — “देवानुग्रह हेतुकम्” — यह जीवन ईश्वर की कृपा से ही संभव है।
तो आइए — इस दुर्लभ जीवन को केवल भोग में न बिताएँ,
बल्कि इसे आत्मज्ञान, सेवा, और मोक्ष की ओर मोड़ें।

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