सचेतन- 41 वेदांत सूत्र: “मोक्ष: जीते-जी मुक्त होने का आनंद”

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सचेतन- 41 वेदांत सूत्र: “मोक्ष: जीते-जी मुक्त होने का आनंद”

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सचेतन- 41 वेदांत सूत्र: “मोक्ष: जीते-जी मुक्त होने का आनंद”
(The Joy of Realizing Oneness)

 नमस्कार दोस्तों 🌸
स्वागत है “जीवन के सूत्र” में।
आज हम बात करेंगे वेदांत के चौथे अध्याय — फल अध्याय — की,
जहाँ एक साधक की साधना का अंतिम फल बताया गया है।

वह फल है —

जीव और ब्रह्म की एकता का अनुभव,
और ब्रह्मानंद, अर्थात परम आनंद की प्राप्ति।

वेदांत कहता है —
जब साधक अपने भीतर के “मैं” को पहचान लेता है,
तब वह समझता है:

“मैं सीमित नहीं हूँ।
मैं यह शरीर नहीं हूँ।
मैं वही अनंत चेतना — ब्रह्म — का अंश हूँ।”

यह अनुभव कोई कल्पना नहीं,
बल्कि गहरी साधना, समर्पण और जागरूकता का परिणाम है।

इसी अनुभूति को मोक्ष या मुक्ति कहा गया है।

🌿 मोक्ष की सरल व्याख्या 

अक्सर लोग सोचते हैं कि मोक्ष का मतलब मृत्यु के बाद मुक्ति है—
लेकिन वेदांत कहता है—

“मोक्ष जीते-जी मिलता है।”

मोक्ष का अर्थ है अंदर से मुक्त होना
उन बंधनों से जो हमें रोज़ परेशान करते हैं:

  • भय से मुक्ति
    (क्या होगा? लोग क्या कहेंगे? भविष्य कैसा होगा?)
  • क्रोध से मुक्ति
    (बार-बार गुस्सा, चोट, प्रतिक्रियाएँ)
  • लोभ से मुक्ति
    (और चाहिए… और चाहिए…)
  • दुख और असुरक्षा से मुक्ति
    (मैं अकेला हूँ, मैं कमजोर हूँ, यह सोच)
  • “मैं” और “मेरा” के अहंकार से मुक्ति
    (सब कुछ मेरे कारण है, मेरी वजह से है)

जब मन इन रस्सियों से मुक्त हो जाता है,
तभी व्यक्ति ब्रह्मानंद, यानी शांत, स्थिर और अनंत आनंद का अनुभव करता है।

कल्पना कीजिए—
आप सुबह उठते हैं और बाहर पक्षियों का मधुर स्वर सुनते हैं।
क्षण भर के लिए मन बिल्कुल शांत हो जाता है।
उस पल में न भविष्य की चिंता है, न अतीत की याद…
बस एक शांति है, एक सुकून है।

वही एक छोटा-सा अनुभव है “ब्रह्मानंद” का।

जब यह शांति मन में स्थायी हो जाती है,
जब जीवन की समस्याएँ हमें हिला नहीं पातीं,
जब भीतर एक स्थिर उजाला महसूस होता है—
वही मोक्ष की शुरुआत है।

🌼 मोक्ष कब होता है? 

मोक्ष का अनुभव तब होता है जब—

1️⃣ मन शांत हो जाए

विचारों की भीड़ रुक जाए
और भीतर गहरी, कोमल शांति उतर आए।
जैसे सुबह का शांत आकाश—बिना बादलों के।

2️⃣ दृष्टि बदल जाए

जब हर व्यक्ति में वही ईश्वर दिखाई दे।
जब “दूसरा” शब्द ही खत्म हो जाए—
सब अपना लगे, सब एक लगे।

3️⃣ स्वीकार बढ़ जाए

जब जीवन जैसा है, वैसा ही स्वीकार हो जाए—
बिना शिकायत, बिना प्रतिरोध।
जहाँ स्वीकार है, वहीं शांति है।

4️⃣ प्रेम स्वाभाव बन जाए

प्रेम, दया और करुणा
हमारे व्यवहार में सहज रूप से बहने लगें—
बिना किसी प्रयास के।

5️⃣ अहंकार गल जाए

जब भीतर से समझ आए—

“मैं यह शरीर नहीं, मैं वह आत्मा हूँ
जो सबमें समान है।”
यही समझ हमें हल्का करती है, मुक्त करती है।

ब्रह्मानंद का अनुभव 

जब जीव समझता है कि वह ब्रह्म से अलग नहीं—
तब एक ऐसा आनंद जन्म लेता है
जिसे शब्दों में बाँधना कठिन है।

यह आनंद—

  • शांत,
  • स्थिर,
  • नित्य,
  • और परिस्थितियों पर निर्भर नहीं होता।

बाहरी सुख वस्तुओं से आता है—
आज है, कल नहीं होगा।
लेकिन ब्रह्मानंद भीतर के आत्म-प्रकाश से आता है—
जो कभी कम नहीं होता, कभी बदलता नहीं।

 तो दोस्तों,
मोक्ष कोई दूर का लक्ष्य नहीं—
यह हमारी साँसों के बीच छिपा मौन है,
हमारी आँखों के पीछे की शांति है,
हमारे भीतर का प्रकाश है।

यही ब्रह्मानंद है।
यही मुक्ति है।धन्यवाद 🙏
फिर मिलेंगे अगले एपिसोड में।

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