सचेतन- 09: “ऋत” (ऋतम्) — सत्य, नियम, नैतिकता और ब्रह्मांडीय व्यवस्था
“ऋत” (ऋतम्) — यह वेदों का एक अत्यंत गूढ़ और केंद्रीय सिद्धांत है, जो सत्य, नियम, नैतिकता और ब्रह्मांडीय व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करता है। यह केवल एक नैतिक संहिता नहीं, बल्कि संपूर्ण सृष्टि का नैतिक और प्राकृतिक नियम है।
“ऋत” (ऋतम्) का मतलब है — वह सच्चा और अटल नियम, जिस पर पूरी सृष्टि चलती है।यह सिर्फ अच्छे-बुरे का नियम नहीं है, बल्कि प्रकृति, समाज और पूरे ब्रह्मांड की सही व्यवस्था और संतुलन है।जैसे सूरज रोज़ उगता है, नदियाँ बहती हैं, और मौसम बदलते हैं — यह सब ऋत के नियम से ही होता है।इसी तरह, हमारे जीवन में सच बोलना, न्याय करना और सही आचरण भी ऋत का ही हिस्सा है।
ऋत (ऋतम्) का अर्थ:
संस्कृत में: “ऋ” धातु से बना है, जिसका अर्थ होता है — चलना, प्रवाह में रहना, क्रमबद्ध होना।
ऋत वह शाश्वत नियम है, जो ब्रह्मांड, समाज और आत्मा — तीनों को संतुलन और दिशा प्रदान करता है।
इसे चार प्रमुख रूपों में समझा जा सकता है:
1. ब्रह्मांड का शाश्वत सत्य
ऋत वह नियम है जिसके अनुसार सूर्य, चंद्रमा, ग्रह और तारों की गति होती है। यह ब्रह्मांड के भीतर एक दिव्य क्रम और संतुलन बनाए रखता है।
उदाहरण:
- दिन-रात का क्रम
- ऋतुओं का बदलना
- जीवन और मृत्यु का चक्र
2. 🌿 प्राकृतिक और नैतिक व्यवस्था
ऋत केवल भौतिक नहीं, नैतिक भी है।
यह बताता है कि मानव को प्रकृति के साथ सामंजस्य में जीना चाहिए।
ऋत हमें यह संदेश देता है कि हम केवल प्रकृति का उपयोग करने वाले नहीं हैं, बल्कि उसका हिस्सा हैं। इसलिए हमें पेड़-पौधों, जल, वायु, पशु-पक्षियों और धरती का सम्मान करना चाहिए।
जब हम प्रकृति के साथ सामंजस्य में रहते हैं, तो न केवल हमारा जीवन सुखी और संतुलित रहता है, बल्कि पूरी सृष्टि में शांति और व्यवस्था बनी रहती है।
अपने आचरण में न्याय और दया रखो। प्रकृति और उसके सभी जीवों के साथ संतुलन बनाकर चलो।
🌱 उदाहरण:
- जल, वायु, पृथ्वी का संरक्षण
- पर्यावरण के नियमों का पालन
- सत्य, करुणा, और अहिंसा का व्यवहार