सचेतन- 47 वेदांत सूत्र: शम: मन को शांत करने की कला
वेदांत कहता है—
“मन तैयार हो जाए, तो सत्य का अनुभव सहज हो जाता है।”
सत्य कोई दूर की चीज़ नहीं है,
और न ही यह किसी विशेष स्थान में छुपा हुआ है।
सत्य तो हमारे भीतर ही है—
बस मन की चंचलता, अशांति और इच्छाओं की धूल उसे ढँक देती है।
इसीलिए आत्मज्ञान की यात्रा में कहा गया है कि
“पहले मन को तैयार करो।”
और मन को तैयार करने के लिए वेदांत छह आवश्यक गुण बताता है—
इन्हें षट्सम्पत्ति कहा जाता है।
ये गुण मन, इंद्रियों, बुद्धि और चित्त—
सभी को शांत, स्थिर और पवित्र बनाते हैं,
ताकि आत्मा का प्रकाश सहज रूप से दिखाई देने लगे।
“शम: मन को शांत करने की कला”
नमस्कार साथियो,
आज हम वेदांत के एक बेहद सुंदर गुण पर बात करेंगे—
शम (Shama)
अर्थात मन की शांति।
हम सब जानते हैं कि मन कितना चंचल है—
कभी भविष्य की चिंता में उलझा,
कभी अतीत की यादों में अटका,
कभी छोटी-सी बात पर परेशान,
कभी किसी इच्छा के पीछे भागता हुआ।
ऐसा मन
सत्य को नहीं देख पाता,
खुशियों को पकड़ नहीं पाता,
और शांति तो क्षणभर भी टिक नहीं पाती।
इसीलिए वेदांत कहता है—
“सब साधना का पहला कदम है—शम।”
शम क्या है?
शम का अर्थ है—
मन को बार-बार भटकने से रोकना
और उसे धीरे-धीरे शांत दिशा देना।
ध्यान दें—
यह मन को दबाने का प्रयास नहीं है।
यह मन को मारना नहीं है।
यह मन को समझाना है।
जैसे एक बच्चे का हाथ पकड़कर हम उसे प्यार से रास्ते पर ले जाते हैं,
वैसे ही मन को भी प्यार से समझाना पड़ता है—
“शांत हो… चलो थोड़ा रुकते हैं… देखते हैं भीतर क्या है…”
समुद्र का सुंदर उदाहरण
वेदांत एक बहुत सुंदर उपमा देता है—
“लहरों से भरा समुद्र
चाँद का प्रतिबिंब नहीं दिखा सकता।”
चाँद तो ऊपर हमेशा है,
लेकिन समुद्र की लहरें इतनी बेचैन होती हैं
कि उसका प्रतिबिंब टूट जाता है।
हमारा मन भी ऐसा ही है।
चाँद — सत्य है, आत्मा है, आनंद है।
लेकिन लहरें —
हमारे विचार, इच्छाएँ, डर और चिंताएँ हैं।
जब ये लहरें शांत होती हैं,
तो भीतर वही प्रकाश दिखता है
जिसे हम जीवनभर खोजते रहते हैं।
शम कैसे आता है?
शम किसी एक दिन नहीं आता।
यह कोई एक बार का अभ्यास नहीं है।
यह एक धीमी, सुंदर, और धीरे-धीरे खिलती हुई प्रक्रिया है।
1. रुकना
दिन में कई बार बस 10 सेकंड रुककर पूछिए—
“अभी मेरे मन में क्या चल रहा है?”
बस इतना पूछना ही मन को आधा शांत कर देता है।
2. श्वास पर ध्यान
धीरे से 3–4 गहरी साँसें लेना…
जैसे मन का तापमान कुछ मिनट में उतर जाता है।
3. मन को दिशा देना
अपने आप से कहें—
“जो मेरे नियंत्रण में है, वही करूंगा।
जो नहीं है, उसे छोड़ता हूँ।”
यह वाक्य मन को बेहद शांत करता है।
4. स्वीकार
मन सबसे ज़्यादा तब भड़कता है
जब वह किसी बात को स्वीकार करने से मना करता है।
स्वीकार = मन की दवा।
जैसे ही स्वीकार आता है, शांति भीतर उतर जाती है।
शम का फल — मन का खुलना
जब मन शांत होता है,
तो तीन अद्भुत परिवर्तन होते हैं:
1. चीजें पहले से साफ दिखने लगती हैं
भटका हुआ मन हमेशा धुँधला दिखाता है।
शांत मन सबकुछ साफ दिखाता है।
2. भावनाएँ स्थिर होने लगती हैं
जब मन शांत,
तो चाहे बाहर तूफ़ान हो—
भीतर एक ठहराव रहता है।
3. अपनी असली प्रकृति झलकने लगती है
शांत मन में धीरे-धीरे
चेतना का प्रकाश दिखने लगता है—
वही जिसे वेदांत “आत्मा” कहता है।
शम का अभ्यास हमें थोड़ी-थोड़ी करके बदलता है।
हमें भीतर मजबूत बनाता है,
स्पष्टता देता है,
और धीरे-धीरे मन को उस शांति में ले जाता है
जहाँ सत्य का प्रकाश दिखने लगता है।
आज से एक छोटा-सा अभ्यास शुरू करें—
दिन में सिर्फ कुछ पल अपने मन से कहें:
“शांत हो… मैं यहाँ हूँ।”
देखिए,
शांति आपके भीतर कैसे बहने लगती है।
