सचेतन- 12:  आत्मबोध की यात्रा – “यह शरीर मेरा घर है, मैं घर नहीं हूँ”

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सचेतन- 12:  आत्मबोध की यात्रा – “यह शरीर मेरा घर है, मैं घर नहीं हूँ”

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“कभी आपने अपने शरीर से कहा है—
तुम थक गए हो…
तुम बीमार हो…
तुम बूढ़े हो रहे हो…

लेकिन कभी आपने खुद से पूछा—
क्या मैं ही यह शरीर हूँ?

अगर शरीर बदलता है,
बीमार होता है,
थकता है…
तो क्या मैं भी बदल जाता हूँ?

आज की बात बहुत छोटी है,
लेकिन जीवन को हल्का कर देने वाली है।”

पञ्चीकृतमहाभूतसंभवं कर्मसंचितम्।
शरीरं सुखदुःखानां भोगायतनमुच्यते॥

सरल अर्थ

यह शरीर
पाँच तत्वों से बना है—
मिट्टी, पानी, आग, हवा और आकाश।

यह शरीर हमें
हमारे पुराने कर्मों के अनुसार मिलता है।

और यह शरीर
सुख और दुःख को अनुभव करने का
एक घर है।

शरीर एक घर की तरह है 

“अब एक बहुत आसान बात समझो।

मान लो
आप एक घर में रहते हो।

घर बड़ा हो सकता है,
छोटा हो सकता है,
पुराना या नया हो सकता है।

अगर घर की दीवार टूट जाए—
क्या आप टूट जाते हो?
नहीं।

अगर घर में ठंड हो—
क्या आप ठंड बन जाते हो?
नहीं।

उसी तरह—
यह शरीर एक घर है।
और आप इस घर में रहने वाले हो।

शरीर बदलता है,
लेकिन रहने वाला नहीं बदलता।”

शरीर कैसे बनता है?

“शंकराचार्य बताते हैं—

यह शरीर
पाँच चीज़ों से बनता है—

• मिट्टी से हड्डियाँ
• पानी से खून
• आग से गर्मी
• हवा से साँस
• आकाश से जगह

और हर इंसान का शरीर
अलग क्यों है?

क्योंकि
हर किसी के पुराने कर्म
अलग हैं।

लेकिन याद रखो—
कर्म से शरीर मिलता है,
आत्मा नहीं बनती।

हम गलती कहाँ करते हैं? 

“हम क्या कहते हैं?

• मैं मोटा हूँ
• मैं पतला हूँ
• मैं बीमार हूँ
• मैं बूढ़ा हूँ
• मैं जवान हूँ

ये सब बातें
शरीर की हैं।

लेकिन हम कह देते हैं—
‘मैं ही ऐसा हूँ।’

यही भूल है।

जैसे घर टूटा है
तो यह नहीं कहते—
‘मैं टूटा हूँ।’

उसी तरह—
शरीर में जो हो रहा है
वह शरीर की कहानी है,
आपकी नहीं।

इससे क्या बदलता है?

“जब यह बात समझ में आ जाती है—

तो बीमारी में भी
मन हल्का रहता है।

बुढ़ापे में भी
डर कम हो जाता है।

सुख आए—
तो आप खुश रहते हैं।

दुःख आए—
तो आप टूटते नहीं।

क्योंकि तब पता होता है—
यह अनुभव घर में हो रहा है,
मैं सुरक्षित हूँ।

“दोस्तों,
यह शरीर आपका घर है—
आप नहीं।

घर बदलता रहेगा,
घर पुराना होगा,
घर कभी-कभी दुख देगा।

लेकिन आप—
वही रहेंगे।

शांत…
स्थिर…
साक्षी।

यही आत्मबोध है।
यही सचेतन है।Stay Sachetan…
Stay Gentle…
Stay Free…

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