सचेतन- 01: साधना (Spiritual Practice)

SACHETAN  > Consciousness, Gyan-Yog ज्ञान योग, sadhna, Special Episodes >  सचेतन- 01: साधना (Spiritual Practice)

सचेतन- 01: साधना (Spiritual Practice)

| | 0 Comments

नमस्कार! स्वागत है आपका सचेतन के इस खास एपिसोड में। आज हम बात करेंगे साधना (Spiritual Practice) का वेदों और पुराणों में अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है। वेद इसे आत्मा की खोज, ईश्वर की प्राप्ति, और मनुष्य जीवन की सर्वोच्च साधना मानते हैं। यह केवल धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि आत्मिक विकास और परम सत्य के अनुभव का मार्ग है।

यहाँ हम वेदों और पुराणों में साधना के स्वरूप और महत्व को सरल भाषा में समझते हैं:

वेदों में साधना का वर्णन

“ऋतम् च सत्यम् च अभिध्धात तपसः अधिजायत” (ऋग्वेद 10.190.1)
– “ऋत (धर्म/सदाचार) और सत्य, तप (साधना) से उत्पन्न हुए।”

अर्थ: सत्य और धर्म का मूल आधार साधना है। जो तप करता है, वही सत्य को जान सकता है।

“तपसा ब्रह्म विजिज्ञासस्व”
– “तप (साधना) के द्वारा ब्रह्म को जानने का प्रयास करो।”

अर्थ:  परमात्मा को केवल बौद्धिक ज्ञान से नहीं, बल्कि साधना से अनुभव किया जा सकता है।

“श्रद्धया तपसा विद्या निवृत्त्या च ब्रह्मणः पथ:”
– श्रद्धा, तप, विद्या और संयम ही ब्रह्म प्राप्ति के मार्ग हैं।

अर्थ: साधना श्रद्धा, ज्ञान, संयम और त्याग से जुड़ी हुई है। यह ईश्वर से मिलन की प्रक्रिया है।

पुराणों में साधना का महत्व

भागवत पुराण:

“साधवः साधु-भूषणा:”
– साधु वे हैं जो साधना करते हैं, और उनका जीवन स्वयं एक प्रेरणा है।

वर्णन: भागवत में नवधा भक्ति (श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन, वंदन, दास्य, साख्य, आत्मनिवेदन) को साधना के रूप में बताया गया है।

शिव पुराण:

“ध्यानं मूलं गुरोर्मूर्ति, पूजामूलं गुरोः पदम्। मंत्रमूलं गुरोर्वाक्यं, मोक्षमूलं गुरोः कृपा॥”
– ध्यान, पूजन, मंत्र और मोक्ष – सभी साधना के अंग हैं, और गुरु की कृपा से प्राप्त होते हैं।

अर्थ: साधना का केंद्र है गुरु की कृपा और समर्पण। ध्यान, जप, पूजा – ये सभी साधना के माध्यम हैं।

देवी पुराण, नारद पुराण, गरुड़ पुराण में:

तप (austerity), जप (chanting), ध्यान (meditation), यज्ञ (sacrifice), सेवा (service) — ये सभी को साधना के रूप में वर्णित किया गया है।
“मनः शुद्धिर् विना मोक्षो न सिध्यति कथंचन” – मन की शुद्धि के बिना मोक्ष संभव नहीं, और साधना ही मन को शुद्ध करती है।
साधना = तप + श्रद्धा + अनुशासन + समर्पण

यह आत्मा को शुद्ध करके परमात्मा से जोड़ने वाला सेतु है।🙏 “न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते” (भगवद्गीता 4.38)
— इस संसार में ज्ञान से बढ़कर कोई पवित्र वस्तु नहीं, और वह ज्ञान साधना से ही प्राप्त होता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *