सचेतन- 44 वेदांत सूत्र: वैराग्य: त्याग नहीं, अनासक्ति

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सचेतन- 44 वेदांत सूत्र: वैराग्य: त्याग नहीं, अनासक्ति

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नमस्कार दोस्तों,
आप सुन रहे हैं सचेतन
जहाँ हम जीवन और आत्मा के गहरे सच को
सरल और सहज भाषा में समझते हैं।

आज हम बात करेंगे—
वैराग्य की।
लेकिन वह वैराग्य नहीं जिसे त्याग समझ लिया जाता है…
बल्कि वास्तविक वैराग्य, जो मन की आज़ादी है।

वैराग्य क्या है? हम अक्सर सोचते हैं कि वैराग्य मतलब—
सब छोड़ देना, दुनिया से दूर चले जाना।

पर वेदांत कहता है—
वैराग्य का अर्थ चीज़ों को छोड़ना नहीं,
बल्कि उनके पीछे भागने की आदत को छोड़ना है।

वस्तुएँ रहें, संबंध रहें, काम भी रहे—
पर मन उनसे चिपके न,
उनके बिना बेचैन न हो।

यही है असली वैराग्य।

इच्छाओं का संसार 

हमारा मन रोज़ कई इच्छाएँ पैदा करता है—
नई वस्तुएँ, नई उपलब्धियाँ,
तारीफ़, सम्मान, पद, पैसा…

लेकिन सच यह है कि—
इनमें से कोई भी सुख स्थायी नहीं है।
एक क्षण खुशी,
और अगले क्षण नई चिंता।

जब मन यह अनुभव कर लेता है कि—
“बाहरी चीज़ें चाहे मिलें, चाहे न मिलें,
मन की शांति उनसे नहीं आती”
तो वैराग्य अपने-आप जन्म लेता है।

वैराग्य कैसा महसूस होता है? 

वैराग्य एक तरह की भीतर की हल्कापन है।
यह वह अवस्था है जिसमें व्यक्ति कहता है—
“अगर मिला तो ठीक,
न मिला तो भी ठीक।”

यह मन का संतुलन है।

उदाहरण:

  • मोबाइल नहीं मिला → घबराहट नहीं
  • तारीफ़ नहीं मिली → दुख नहीं
  • पैसा कम हो गया → मन टूटा नहीं
  • मनचाही चीज़ न मिली → चिड़चिड़ापन नहीं

वैराग्य मन को शांत, मज़बूत और संतुलित बनाता है।

वैराग्य क्यों ज़रूरी है?

क्योंकि मन कितनी भी चीज़ें हासिल कर ले—
अगर वह उनसे चिपका रहेगा,
तो भय रहेगा, तनाव रहेगा, दुख रहेगा।

जहाँ चिपकाव है, वहीं दुःख है।
जहाँ अनासक्ति है, वहीं शांति है।

आत्मज्ञान उसी मन में प्रकट होता है
जो हल्का हो चुका हो,
जो इच्छाओं की दौड़ से मुक्त हो चुका हो।

वैराग्य ही वह द्वार है
जो हमें भीतर के सत्य तक पहुँचाता है।

वैराग्य कैसे आए? वैराग्य किसी भगोड़ेपन से नहीं आता,
बल्कि समझ और अनुभव से आता है।

तीन सरल कदम:

  1. देखें — क्या चीज़ आपको बेचैन करती है?
  2. समझें — यह सुख अस्थायी है।
  3. छोड़ें नहीं, ढीला पकड़ें
    चीज़ रहे, पर मन उसकी पकड़ में न रहे।

धीरे-धीरे मन की पकड़ ढीली पड़ जाती है।
यही वैराग्य है।

 वैराग्य जीवन से भागना नहीं है—
यह जीवन को और गहराई से जीने की कला है।
यह मन को आज़ाद करता है
और हमें अपने असली स्वरूप के करीब ले जाता है।

धन्यवाद,
आप सुन रहे थे सचेतन
अगले एपिसोड में फिर मिलेंगे
एक नई समझ, एक नई जागृति के साथ।

शांति… शांति… शांति…

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