सचेतन- 43 वेदांत सूत्र: विवेक : क्या सच में हमारा है, और क्या सिर्फ़ कुछ समय का अतिथि
नमस्कार,
मैं आपका स्वागत करता हूँ सचेतन की इस कड़ी में।
आज हम बात करेंगे—
विवेक, यानी वह आंतरिक प्रकाश जो हमें दिखाता है कि
जीवन में क्या वास्तव में हमारा है
और क्या केवल कुछ समय के लिए आया हुआ अतिथि।
1. विवेक क्या है?
विवेक का अर्थ है—
जीवन में होने वाली हर घटना, हर संबंध, हर वस्तु को ध्यान से देखना
और यह पहचानना कि—
क्या स्थायी (नित्य) है, और क्या अस्थायी (अनित्य)।
हम रोज़ अनुभव करते हैं कि—
- शरीर बदलता है,
- रूप-रंग बदलता है,
- मन के भाव बदलते हैं,
- सुख-दुख आते-जाते रहते हैं,
- और धन, सत्ता, पद—इनका कोई ठिकाना नहीं।
👉 इसलिए ये सब अस्थायी हैं—कुछ समय के लिए आए अतिथि।
लेकिन इसके विपरीत—
- आत्मा नहीं बदलती।
- चेतना नहीं बदलती।
- ब्रह्म, जो सबका आधार है, वह अटल, स्थिर और नित्य है।
👉 यही है स्थायी सत्य।
जब यह स्पष्ट हो जाता है कि
क्या बदलता है और क्या नहीं,
तो मन सही दिशा में चलने लगता है।
2. विवेक से जीवन में क्या बदलता है?
विवेकशील व्यक्ति—
- छोटी-छोटी बातों में नहीं उलझता
- चिंता, डर, और ग़ुस्से से धीरे-धीरे मुक्त होने लगता है
- बाहरी चीज़ों को देखकर बेचैन नहीं होता
- और जीवन का गहरा, स्थायी सुख महसूस करता है
वह समझ लेता है कि—
जो चीज़ बदलने वाली है, उस पर अपना पूरा जीवन नहीं टिकाना चाहिए।
3. विवेकशील कैसे बनें?
विवेक जन्म से नहीं आता…
इसे अर्जित किया जाता है—दैनिक अभ्यास से।
1️⃣ मन को शांत करने की क्षमता
मन शोर में चलता रहे तो विवेक नहीं उभरता।
दिन में 5–10 मिनट
साँसों को देखना,
थोड़ी देर मौन,
या प्रकृति के पास बैठना—
मन को शांत करता है।
2️⃣ जीवन को गहराई से देखना
हर फैसले पर एक सरल प्रश्न—
“क्या यह स्थायी है, या बस समय का मेहमान?”
यह प्रश्न धीरे-धीरे मन के विचारों को बदल देता है।
3️⃣ इच्छाओं पर संयम
इच्छाएँ अनंत हैं।
विवेक बंद हो जाता है जब मन सिर्फ़ “मुझे चाहिए” की धुन में फँस जाए।
संयम का अर्थ त्याग नहीं—
संयम का अर्थ है,
सही समय पर सही चीज़ चुनना।
4️⃣ सत्य को स्वीकार करने की हिम्मत
विवेक का सबसे बड़ा आधार ईमानदारी है—
अपने आप से भी, और संसार से भी।
5️⃣ अच्छी संगति
जैसी संगति, वैसा मन।
सत्संग, अच्छी पुस्तकों का साथ,
और शांत लोगों के विचार—
विवेक को तेज कर देते हैं।
4. चेतना और विवेक का संबंध
चेतना और विवेक का संबंध
सूरज और प्रकाश जैसा है।
- जब चेतना नीचे हो—
मन भ्रमित, भावनाएँ हावी, निर्णय कमजोर। - जब चेतना मध्यम हो—
कभी सही, कभी गलत—आधा-अधूरा विवेक। - जब चेतना ऊँची हो—
विवेक तीक्ष्ण हो जाता है।
निर्णय स्पष्ट हो जाते हैं।
जीवन हल्का, सरल और शांत हो जाता है।
ऊँची चेतना = गहरा विवेक।
5. मानव जीवन और विवेक
मनुष्य इसलिए महान है
क्योंकि उसके भीतर विवेक की क्षमता है।
विवेक हमारे जीवन में—
- दिशा देता है,
- संतुलन देता है,
- संबंधों में गहराई देता है,
- कठिन समय में शक्ति देता है,
- और अंदर एक स्थायी शांति लाता है।
अगर जीवन एक नाव है,
तो विवेक उसका पतवार है—
जिससे दिशा मिलती है।
विवेक को जगाने का छोटा संकल्प
आज से एक छोटा सा अभ्यास शुरू करें—
- हर दिन कुछ मिनट मन को शांत करें
- हर निर्णय से पहले एक प्रश्न—
“यह स्थायी है या अस्थायी?” - और हर रात सोने से पहले
एक बात याद करें—
मेरे जीवन में बहुत कुछ बदलता है…
लेकिन मेरा सत्य, मेरी आत्मा, मेरी चेतना—नित्य है।
धीरे-धीरे,
यह जागरूकता ही विवेक बन जाएगी—
और हमारा जीवन सच में—सचेतन।
