सचेतन- 11: आत्मबोध की यात्रा – “मैं कौन हूँ? – पानी, रंग और मैं”
“अगर मैं आपसे पूछूँ—
आप कौन हैं?
आप कहेंगे—
मैं इस नाम का हूँ…
मैं इस काम का हूँ…
मैं इस परिवार से हूँ…
लेकिन अगर ये सब एक दिन हट जाए—
नाम… काम… पहचान…
तो क्या आप तब भी होंगे?
आज की बात बहुत छोटी है…
लेकिन दिल को छू लेने वाली है।
आज हम जानेंगे—
हम सच में कौन हैं।”
नानोपाधिवशादेव जातिनामाश्रमादयः।
आत्मन्यारोपितास्तोये रसवर्णादिभेदवत्॥
सरल अर्थ
हम अपने ऊपर
जाति, रंग, नाम, पद, पैसा
जैसी बहुत सारी बातें
चिपका लेते हैं।
लेकिन ये सब
आत्मा की नहीं हैं।
ये सब वैसे ही हैं
जैसे पानी में
रंग या स्वाद मिलाया जाए।
पानी की कहानी
“अब एक बहुत आसान कहानी सुनो।
मान लो
एक गिलास साफ़ पानी है।
मैं पानी से पूछता हूँ—
👉 ‘तुम किस रंग के हो?’
पानी कहता है—
‘मैं किसी रंग का नहीं हूँ।’
अब हम उस पानी में
लाल रंग डाल देते हैं।
पानी कैसा दिखता है?
➡️ लाल।
अब नीला रंग डालो—
➡️ नीला।
अब शरबत डालो—
➡️ मीठा।
लेकिन एक सवाल—
❓ क्या पानी सच में बदल गया?
नहीं।
पानी वही है।
बस ऊपर से
कुछ मिल गया है।”
आत्मा भी पानी जैसी है
“शंकराचार्य कहते हैं—
हमारी आत्मा भी पानी जैसी है।
आत्मा का
कोई रंग नहीं,
कोई जाति नहीं,
कोई अमीर-गरीब नहीं,
कोई बड़ा-छोटा नहीं।
लेकिन जब आत्मा
शरीर और मन के साथ जुड़ती है,
तो हम कहते हैं—
• मैं लड़का हूँ
• मैं लड़की हूँ
• मैं अमीर हूँ
• मैं गरीब हूँ
• मैं बड़ा हूँ
• मैं छोटा हूँ
ये सब
रंग हैं।
आत्मा नहीं।”
हम गलती कहाँ करते हैं?
“हम सबसे बड़ी गलती क्या करते हैं?
हम कहते हैं—
‘मैं यही हूँ।’
जबकि सच यह है—
‘मेरे पास यह है।’
मेरे पास शरीर है,
पर मैं शरीर नहीं हूँ।
मेरे पास नाम है,
पर मैं नाम नहीं हूँ।
जैसे पानी कहता है—
‘मेरे अंदर लाल रंग है’
लेकिन पानी कभी नहीं कहता—
‘मैं लाल हूँ।’
हम यही भूल जाते हैं।”
इससे क्या बदलता है?
“जब यह बात समझ में आ जाती है—
तो कोई अपने आप को
बड़ा नहीं समझता।
कोई अपने आप को
छोटा नहीं समझता।
कोई किसी से
नफरत नहीं करता।
क्योंकि तब दिखता है—
सबका पानी एक है।
सिर्फ रंग अलग हैं।”
“दोस्तों,
तुम पानी हो।
रंग आते-जाते रहेंगे।
नाम बदलते रहेंगे।
हालात बदलते रहेंगे।
लेकिन तुम—
वही रहोगे।
यही आत्मबोध है।
यही सचेतन है।Stay Sachetan…
Stay Simple…
Stay True…”
