सचेतन 3.15 : नाद योग: आंतरिक ध्वनि यात्रा
सिद्धासन और वैष्णवी-मुद्रा में योगी की ध्वनि यात्रा
नमस्कार श्रोताओं, और स्वागत है इस हमारे विशेष नाद योग (योग विद्या) पर सचेतन के इस विचार के सत्र में.
सिद्धासन क्या है?
सिद्धासन, योग की एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली मुद्रा है। इसे साधना मुद्रा के नाम से भी जाना जाता है। यह मुद्रा ध्यान के लिए अत्यंत उपयुक्त मानी जाती है क्योंकि इसमें बैठकर ध्यान करना सरल होता है और लंबे समय तक बैठने पर भी शरीर में स्थिरता बनी रहती है।
सिद्धासन करने की विधि:
- सबसे पहले एक योगा मैट या साफ सतह पर बैठें।
- अपने दाएँ पैर को मोड़कर उसकी एड़ी को गुदा और लिंग के बीच स्थित स्थान पर रखें।
- अब बाएँ पैर को मोड़कर उसकी एड़ी को जननेंद्रिय के ऊपर रखें।
- दोनों पैरों की अंगुलियाँ विपरीत दिशा में रहेंगी।
- रीढ़ की हड्डी सीधी रखें और हाथों को घुटनों पर ज्ञान मुद्रा में रखें।
- सिर को सीधा रखें और आँखें बंद कर लें।
वैष्णवी-मुद्रा क्या है?
वैष्णवी-मुद्रा एक विशेष प्रकार की योग मुद्रा है जिसमें योगी अपने दाहिने कान से आंतरिक ध्वनि को सुनने का प्रयास करता है। इस मुद्रा में ध्वनि के माध्यम से ध्यान केंद्रित किया जाता है, जिससे मन की शांति और आत्म-साक्षात्कार की प्राप्ति होती है।
वैष्णवी-मुद्रा करने की विधि:
- सिद्धासन में बैठने के बाद, अपने दाहिने हाथ की उंगली से अपने दाहिने कान को बंद करें।
- अपने बाएँ हाथ को ज्ञान मुद्रा में घुटने पर रखें।
- आँखें बंद करें और अपनी श्वास को सामान्य रखें।
- अब ध्यान को अपने दाहिने कान पर केंद्रित करें और आंतरिक ध्वनियों को सुनने का प्रयास करें।
- शुरुआत में आपको बाहरी ध्वनियाँ सुनाई देंगी, लेकिन धीरे-धीरे आप आंतरिक ध्वनियों को सुनने लगेंगे।
आत्म-साक्षात्कार की यात्रा
ॐ कार की ध्वनि के माध्यम से नाद योगी सभी बाहरी ध्वनियों को छोड़कर आंतरिक ध्वनि पर ध्यान केंद्रित करता है। यह ध्वनि उसे सभी बाधाओं को पार करने में मदद करती है और उसे एक गहन आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाती है। ॐ की ध्वनि मुमुक्षुओं के लिए एक मार्गदर्शक होती है, जो उन्हें मोक्ष की दिशा में अग्रसर करती है।
नाद योग में ॐ की ध्वनि सभी प्रकार की ध्वनियों का स्रोत है। यह ध्वनि योगी को ब्रह्म के साथ एकाकार करती है। ॐ की ध्वनि के माध्यम से, योगी अपने मन और आत्मा को शुद्ध करता है और ब्रह्मांड की अनंत शक्तियों से जुड़ता है। यह ध्वनि उसे आत्म-साक्षात्कार की उच्चतम अवस्था में पहुँचाती है।
जब तक ॐ की ध्वनि है, तब तक मन का अस्तित्व है। लेकिन इस ध्वनि के समाप्त होने के साथ ही योगी उन्मनी अवस्था में पहुँचता है। यह वह स्थिति है जब मन और प्राण (वायु) के साथ उसके कर्म संबंध नष्ट हो जाते हैं और वह आत्मा में लीन हो जाता है। इसमें कोई शक नहीं है कि यह अवस्था ब्रह्म-प्रणव ध्वनि में लीन होने की है।
निष्कर्ष
ॐ कार रूपी एकाक्षर ब्रह्म नाद योग का मूल तत्व है। यह ध्वनि सभी मुमुक्षुओं का लक्ष्य है और उन्हें आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाती है। इस ध्वनि के माध्यम से योगी ब्रह्म के साथ एकाकार होता है और मोक्ष की प्राप्ति करता है।
आज के एपिसोड में इतना ही। हमें आशा है कि आपको नाद योग और ॐ कार रूपी एकाक्षर ब्रह्म के महत्व के बारे में जानकर अच्छा लगा होगा। हम फिर मिलेंगे एक नए विषय के साथ। तब तक के लिए, ध्यान में रहें, खुश रहें और नाद की ध्वनियों से अपने जीवन को मधुर बनाएं।