सचेतन 221: शिवपुराण- वायवीय संहिता – आध्यात्मिक मार्ग पर चलना

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वाकई आप आध्यात्मिक मार्ग पर हैं तो आपके चारों ओर उथल-पुथल है।

हमारे कर्म सिर्फ़ एक सीमित संभावना को खोज कर सकता है और एक सीमित इंसान बनाए रखने में मदद करता है। अगर आप आध्यात्मिक मार्ग पर हैं, तो आपको सब कुछ धुंधली नज़र आएगी। इसको साफ़ देखने के लिए आपको अपने कर्म की बेड़ियों को ढीला करना होगा और यह आप शारीरिक स्तर पर आसानी से कर सकते हैं। जो आपको पसंद है उसे आप अचेतना में कर सकते हैं, और जो आपको नापसंद है, उसे आपको सचेतन होकर करना होता है। 

आप जब आध्यात्मिक मार्ग पर होते हैं तो आप अपने परम लक्ष्य तक पहुंचने की जल्दी में होते हैं, आप स्वयं के साक्षात्कार को जल्दी पूरा करना चाहते हैं। यह निश्चित है की एक बार जब आध्यात्मिक प्रक्रिया शुरू होती है, बहुत सारे आयाम खोल देती है।जब आप आध्यात्मिक मार्ग पर होते हैं, तो आपके साथ सारी नकारात्मक चीजें भी होती हैं। आपका जीवन एक जबरदस्त गति से बढ़ता है – एक ऐसी गति जो आपके आस-पास के लोगों से कहीं ज्यादा तेज है – तो आपको लगता है कि आपके साथ कोई त्रासदी हो रही है। आप सिर्फ़ एक साधक बन कर इसका  आनंद लेते रहिए। 

बहुत से लोगों को यह गलतफहमी है कि एक बार जब आप आध्यात्मिक मार्ग पर आते हैं, तो आप शांत बन जाएंगे और हर चीज स्पष्ट होगी। अगर आप एक सुविधाजनक विश्वास प्रणाली अपनाते हैं और एकाग्र बन जाते हैं, तब हर चीज स्पष्ट लगेगी। लेकिन अगर आप ईमानदारी से आध्यात्मिक मार्ग पर हैं, तो कुछ भी स्पष्ट नहीं होगा। हर चीज धुंधली होगी। आप जितनी तेजी से चलते हैं, दृश्य उतना ही धुंधला हो जाता है। 

पिछले दिनों मैं सड़क मार्ग से यात्रा कर रहा था तो मुझे गंतव्य तक जल्दी पहुँचना था तो मैंने स्पीड बढ़ा दी और हम 100 किमी प्रति घंटे की स्पीड से जा रहे थे। सड़क के दोनों ओर धान के हरे भरे खेत बहुत मनमोहक थे बड़ा ही मनोरम दृष्य था। और मैंने सोचा कि मैं उनको देखूंगा। मैंने अपनी नजरें डालने की कोशिश की लेकिन हर चीज धुंधली थी और मैं एक पल के लिए भी सड़क से नजरें नहीं हटा सका क्योंकि हम बहुत तेज स्पीड से जा रहे थे। 

आप जितनी तेज जाते हैं, हर चीज उतनी ही धुंधली हो जाती है और आप जो कर रहे हैं, उससे आप एक पल के लिए भी अपनी नजरें नहीं हटा सकते। अगर आप धान के हरे भरे खेत का आनंद लेना चाहते हैं, तो आपको आराम से और धीरे चलना चाहिए। अगर आपको अपनी मंजिल पर पहुंचने की जल्दी है, तो आप गति बढ़ा देते हैं। आपको कुछ नहीं दिखता। आप बस चलते जाते हैं। आध्यात्मिक मार्ग इसी तरह है। अगर आप वाकई आध्यात्मिक मार्ग पर हैं तो आपके चारों ओर हर चीज उथल-पुथल में लगती है। लेकिन आप फिर भी बढ़ रहे हैं, तो यह ठीक है। 

प्रश्न स्वयं से है की क्या यह ठीक है? अगर यह ठीक नहीं है तो आप विकास की गति से बढ़ सकते हैं। हो सकता है कि इसमें समय ज़्यादा और कई साल लग जाये और तब आप वहां पहुंचें। 

जो लोग जल्दी में हैं, उनके लिए एक तरह का मार्ग है। जिनको जल्दी नहीं है, उनके लिए एक दूसरे तरह का मार्ग है। आपको स्पष्ट होना चाहिए कि आप क्या चाहते हैं। अगर आप तीव्र मार्ग पर आ जाते हैं और धीरे चलने की कोशिश करते हैं तो आप कुचले जाएंगे। अगर आप धीमे मार्ग पर हैं और आप तेज चलते हैं तो आपका चालान हो जाएगा। हर साधक को हमेशा तय करना चाहिए – क्या वह बस सड़क का आनंद लेना चाहता है या वह मंजिल पर जल्दी पहुंचना चाहता है?

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