सचेतन 2.114 : रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – अंगद की अगुवाई में वानरों का किष्किन्धा आगमन

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सचेतन 2.114 : रामायण कथा: सुन्दरकाण्ड – अंगद की अगुवाई में वानरों का किष्किन्धा आगमन

वीर हनुमान की उड़ान – एक आध्यात्मिक यात्रा

नमस्कार, दोस्तों! आपका स्वागत है हमारे विशेष सचेतन के इस विचार के सत्र  में, जहाँ हम आपको ले चलेंगे रामायण के एक रोमांचक अध्याय की ओर, जहाँ अंगद और हनुमान जी समेत वानरों ने किष्किन्धा की यात्रा की।

वीर हनुमान की उड़ान शुरू होती है वीर हनुमान और उनके साथियों की असीम शक्ति और निष्ठा की कहानी शुरू होती है अंगद और वानरवीर हनुमान को आगे करके, सभी वेगवान वानरों ने आकाश में उड़ते हुए बादलों की भाँति जोर-जोर से गर्जना करते हुए किष्किन्धा के निकट प्रवेश किया।

दधिमुख नामक वानर ने, यह  संदेश को लेकर, श्रीराम, लक्ष्मण, और सुग्रीव को प्रणाम किया और फिर अंगद और हनुमान जी के साथ आकाश मार्ग से उड़ चले। उनकी गति इतनी तीव्र थी कि वे झटपट किष्किन्धा पहुंच गए। वहां पहुंचने पर, उन्होंने मधुवन में प्रवेश किया, जहां उन्होंने देखा कि सभी वानर अब शांत थे और मदरहित हो गए थे। दधिमुख, जिन्होंने पहले उन्हें मधु पीने से रोका था, अब प्रणाम करते हुए अंगद से कहा कि वे किसी भी बात का बुरा न मानें, और आराम से फल और मधु का उपभोग करें।दधिमुख नामक एक अत्यन्त शक्तिशाली वानर, जो एक महान् आत्मा वाला प्रतिष्ठित वानर था तथा सुग्रीव का मामा था, सदैव उस वाटिका की रक्षा करता था।

जैसे ही अंगद किष्किन्धा के निकट पहुंचे, वानरराज सुग्रीव ने शोकसंतप्त कमलनयन श्रीराम से कहा, “प्रभो! धैर्य धारण कीजिये। आपका कल्याण हो। सीता देवी का पता लग गया है, इसमें संशय नहीं है।”

सुग्रीव की यह बातें सुनकर, श्रीराम के चेहरे पर एक आश्वासन की लहर दौड़ गई। उन्हें अंगद की प्रसन्नता से यह स्पष्ट हो गया कि उनकी प्रिया सीता का दर्शन हो गया है। इस बीच, जब अंगद और वानरवीर हनुमान किष्किन्धा के पास पहुंचे, उनके गर्जन से सारा आकाश गूंज उठा। उनके जोश और उत्साह से साफ था कि मिशन सफल रहा है। वानरवीर हनुमान ने श्रीराम के चरणों में मस्तक नवाया और कहा, “देवी सीता पातिव्रत्य के कठोर नियमों का पालन करती हुई शरीर से सकुशल हैं। मैंने उनका दर्शन किया है।”

यह सुनकर, श्रीराम के चेहरे पर प्रसन्नता की एक लहर दौड़ गई। लक्ष्मण और सुग्रीव ने भी राहत की साँस ली। वे सभी महसूस कर सकते थे कि विजय अब उनके निकट है।

अब हनुमान जी का श्रीराम को सीता का समाचार सुनाना प्रारंभ होता है 

महावीर हनुमान जी भगवान श्रीराम को सीता माता का समाचार सुनाते हैं।

कहानी की शुरुआत होती है प्रस्रवण पर्वत से, जहां विचित्र काननों से सुशोभित इस पर्वत पर युवराज अंगद के साथ वानरों की सेना, श्रीराम, महाबली लक्ष्मण और सुग्रीव को प्रणाम करते हैं। इसके बाद, सभी वानर श्रीराम को सीता माता के बारे में जानकारी देने लगते हैं। वे बताते हैं कि “सीता देवी रावण के अन्तःपुर में हैं और उन्हें राक्षसियाँ धमकाती रहती हैं। श्रीराम के प्रति उनका अनन्य अनुराग है।”

थोड़ा उदासी भरा माहोल हो जाता है

रावण ने सीता के जीवित रहने के लिए केवल दो महीने की अवधि दी है। इस खबर को सुनकर श्रीरामचन्द्रजी के मन में विचारों का तूफान उमड़ पड़ता है। वानरों की बात सुनकर श्रीराम उनसे पूछते हैं, “वानरो! देवी सीता कहाँ हैं? मेरे प्रति उनका कैसा भाव है? विदेहकुमारी के विषय में ये सारी बातें मुझसे कहो।”

थोड़ा उत्साह भी आता है

इस पर वानरों ने हनुमान जी को आगे किया, जिन्होंने सीता माता के दर्शन का पूरा वृत्तान्त श्रीराम को सुनाया। हनुमान जी ने बताया कि किस तरह उन्होंने सीता माता को लंका में देखा, जो राक्षसियों के बीच में बैठी अपने पतिदेव के चिंतन में लीन थीं।

अंगद ने इस बात को बड़े ही धैर्य और समझदारी से सुना और सभी वानरों से कहा कि अब उनका कार्य समाप्त हो गया है और उन्हें अब किष्किन्धा में नहीं रुकना चाहिए। अंगद के नेतृत्व में, सभी वानर ने फिर से आकाश की ओर उड़ान भरी। उनकी यह उड़ान न केवल शारीरिक थी, बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा का भी प्रतीक थी, जिसमें वे अपने कर्तव्य की पूर्ति कर चुके थे। 

इस घटनाक्रम से हमें यह सीख मिलती है कि जीवन में जब हमारा कोई कर्तव्य समाप्त हो जाता है, तो हमें नए कर्तव्यों की ओर अग्रसर होना चाहिए। यही जीवन की सच्ची यात्रा है।

हनुमान जी ने श्रीराम के हाथ में एक दिव्य कांचनमणि दी, जो सीता माता ने उन्हें सौंपी थी। यह देखकर श्रीराम की आँखों में आशा की एक नई किरण जगी।

श्रोताओं, यह थी हनुमान जी द्वारा श्रीराम को सीता माता का समाचार सुनाने की कहानी। उम्मीद है आपको यह सचेतन का विचार पसंद आया होगा। अगले सत्र में हम फिर मिलेंगे, नई कहानी के साथ। तब तक के लिए, नमस्ते और धन्यवाद!

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